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Hindi Hasya kavi Albela Khatri's blog

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Albela Khatri

रफ़्ता रफ़्ता उभर रही है ...........

उनकी किस्मत में हँसना, अपनी किस्मत में रोना था

क्योंकि अपने अरमानों का बोझ हमीं को ढोना था


बेशक मेरे घर की हर दीवार मुझ ही पर टूट पड़ी

लेकिन कुछ अफ़सोस नहीं है, हुआ वही जो होना था


समझे थे जिसको हम दिल और ख़्वाब बुने थे बड़े-बड़े

आज हुआ मालूम हमें वह ख़ाक का एक खिलौना था


सिगरेट पी कर जब सोचें तो धुआं आड़े जाता है

बिस्तर सारा सुलग चुका है जिस पे मुझको सोना था


रफ़्ता-रफ़्ता उभर रही है 'अलबेला' उनकी तस्वीर

सूना-सूना सा अब तक लगता दिल का हर कोना था

4 comments:

ओम आर्य August 4, 2009 at 5:23 PM  

समझे थे जिसको हम दिल और ख़्वाब बुने थे बड़े-बड़े

आज हुआ मालूम हमें वह ख़ाक का एक खिलौना था
इन पंक्तियो मे जो दर्द है उसे एक आत्मा ही समझ सकती है यह दर्द जब आखिरकर मे पता है इन्सान जब सभी तरह की कोशिशे बेकार हो जाती है .........पर मै यही दुआ करुन्गा की खुदा बस एक बार आप्की उन आरमानो को पंख दे और उडान भरे भी उसकी ताकत खुदा बख्से.......आमीन

Chandan Kumar Jha August 4, 2009 at 7:18 PM  

बहुत सुन्दर....

गुलमोहर का फूल

दिनेशराय द्विवेदी August 4, 2009 at 9:10 PM  

अच्छी रचना!

राजीव तनेजा August 5, 2009 at 12:15 AM  

"बेशक मेरे घर की हर दीवार मुझ ही पर टूट पड़ी

लेकिन कुछ अफ़सोस नहीं है, हुआ वही जो होना था"

अति उत्तम

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