मौसम सुहावना था। धरती पर प्रकृति का धवल आँचल बिछा था। अम्बर पूरी
उदारता से हिमपात कर रहा था। तन-बदन को मदमस्त कर देने वाली शीतल-
सुगन्धित समीर भी कभी मन्द तो कभी तीव्र स्पर्श से देह को स्पन्दित कर
आनन्द दे रही थी। लग रहा था मानो सृष्टि का सारा नैसर्गिक सौन्दर्य आज
भगवान भोलेनाथ के धाम में सिमट आया था। समूचे कैलाश पर दिव्य ऊर्जा
और वैभव का महोत्सव हो रहा था। माता पार्वती भांग घोट रही थी, महादेवजी
ध्यान मग्न थे, गणेशजी अपने भ्राता कार्तिकेय के साथ गुल्ली डंडा खेलने में
व्यस्त थे और नन्दी महाराज अख़बार बाँच रहे थे। अचानक नन्दी हँसे, बहुत
ज़ोर से ठहाका लगा कर हँसे तो शिवजी की समाधि टूटगई। 'क्या हो गया नन्दी?
क्यूं इतना शोर कर रहे हो?' 'क्षमा करें प्रभो, लेकिन बात ही कुछ ऐसी है कि
मेरी हँसी रुक नहीं रही है,' नन्दी ने निवेदन किया। 'अभी रुक जाएगी एक
सैकण्ड में, ये डमरू तुम्हारे मुंह में ठूंस दूंगा तो ज़िन्दगी भर नहीं हँस पाओगे।'
भोलेनाथ ने चेतावनी दी
'आप मालिक हैं प्रभो, डमरू क्या डामर का पूरा ड्रम मेरे मुंह में घुसेड़ सकते हैं ,
लेकिन उस कार्यक्रम के पहले वह समाचार तो सुन लो जिस पर मैं इतना हँस
रहा हूं। ' नन्दी ने विन्रमता पूर्वक कहा तो भोले बाबा बोले, 'अच्छा सुनाओ,
क्या समाचार है?' 'श्रीमान नरेन्द्र मोदी ने बयान दिया है कि कांग्रेस पार्टी 125
साल की बुढिया हो गई है और वह अब किसी काम की नहीं रही।' 'तो इसमें
इतना हँसने वाली क्या बात है?' माता पार्वती ने मुंह बिचका कर
नन्दी को देखा
'हँसने की ही तो बात है माताश्री। मोदी इतने वरिष्ठ नेता होकर कैसी बचकानी
बात करते हैं' नन्दी ने ज्ञान बघारना शुरू किया। 'उन्हें इतना भी भान नहीं
रहा कि जिस कांग्रेस की वे बात कर रहे हैं, खमण खा-खा कर कोस रहे हैं
और 125 साल की बुढिय़ा बता रहे हैं वो तो कब की खत्म हो चुकी है। वो to
महात्मा गांधी की पार्टी थी जिसका निशान भी चरखा था जबकि अब जो कांग्रेस
दिख रही है उसका निशान पंजा है और ये पंजा महात्मा गांधी का नहीं इन्दिरा
गांधी का है। देखा जाए तो ये ओरिजिनल कांग्रेस है ही नहीं, बल्कि
कांग्रेस (आई) है, जो अभी कुछ ही वर्ष पूर्व मार्केट में आई है। उस चरखे और
इस पंजे के बीच एक लम्बा अन्तराल है जिसमें कितनी ही बार कांग्रेस का
ढांचा, नेतृत्व और निशान बदले गए। कभी बैलों की जोड़ी आई तो कभी
गाय-बछड़ा आए। कभी संजय गांधी ने चार सूत्र दिए तो कभी इन्दिरा ने
बीस सूत्र दिए। कभी राजीव गांधी ने दोनों को 4+20=420 बताया तो कभी
स्वयं ही इसका हिस्सा बनकर 'हम देख रहे हैं, हमने देखा है, हमें देखना है
और हम देखेंगे' बोल-बोल कर जनता का मनोरंजन करते रहे। कभी
लालक़िले की प्राचीर से पाकिस्तान को नानी याद दिलाने की धमकी देते
रहे तो कभी अपनी ही सरकार में फैले भ्रष्टाचार का पब्लिकली ऐलान करते
रहे कि मैं क्या करूं, मैं तो दिल्ली से पूरा एक रुपया भेजता हूं विकास के
लिए लेकिन उसमें से 15 पैसे ही जनता तक पहुंचते हैं, 85 पैसे तो नेता
और अधिकारी लोग खा जाते हैं।
उस कांग्रेस में और इस कांग्रेस (आई) में बहुत फ़र्क है भोलेनाथ, मज़े की
बात तो यह है कि पुराने पंजे पर इन दिनों सोनिया गांधी ने अपना पंजा
स्कैन करके चिपका दिया है। यह पार्टी तो अब सोनिया एण्ड पार्टी है जो
किसी भी एंगल से बुढिय़ा नहीं लगती है। सबसे बड़ी बात तो ये है बाबा कि
महात्मा गांधी वाली कांग्रेस का सूत्रवाक्य स्वदेश और स्वदेशी था जबकि
इसका तो ट्रेडमार्क ही विदेशी है। महात्मा गांधी वाली कांग्रेस ने विदेशियों
को भारत से भगाकर ही दम लिया जबकि आज की कांग्रेस ग्लोबलाइजेशन
के नाम पर विदेशियों को बुलाकर उनके स्वागत में लालकालीन
बिछा रही है।'
'तुम हो तो मोटी बुद्धि के लेकिन बात ठीक कहते हो नन्दू। भारत अब नाम
का भारत रह गया है, स्वरूप तो पूरा इण्डियन हो चुका है जिसमें आजकल
हर क्षेत्र में विदेशियों का कब्जा हो चुका है।' शिवजी ने भी अपना दुःख व्यक्त
करना शुरू किया। 'शासक विदेशी, शासन विदेशी, शिक्षा विदेशी, संविधान
विदेशी, पत्र-पत्रिकाएं विदेशी, टीवी चैनल विदेशी , चैनल में प्रोग्राम विदेशी,
देवी देवताओं की प्रतिमाएं विदेशी, घर का सजावटी सामान विदेशी, खान-
पान सब विदेशी और विदेशी आतंकवादियों से लड़ने के लिए हथियार भी
विदेशी अर्थात सब कुछ विदेशी... खेल भी विदेशी खेलते हैं क्रिकेट।'
'सवाल यह नहीं प्रभो कि खेल विदेशी क्यों खेलते हैं, सवाल ये है कि देश की
क्रिकेट टीम का कोच भी विदेशी क्यों होता है?' नन्दी महाराज ने फिर बोलना
शुरू किया, 'ये सब सिर्फ़ इसलिए हो रहा है क्योंकि वो 125 सालवाली
पुरानी कांग्रेस नहीं रही। यदि आज वो होती तो कदाचित ऐसा न होता। काश...
ऐसा न होता...।'
कहते-कहते नन्दी उदास हो गया। थोड़ी देर पहले कैलाश पर जो सुहावने दृश्य
थे वे सब अब गायब हो चुके थे।नन्दी ने अख़बार पटक दिया। अखबार में
नरेन्द्र मोदी और सोनिया के साथ-साथ साहित्यकार विष्णु प्रभाकर का भी
फोटो छपा था जो अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन किसी का भी ध्यान उनकी
taraf नहीं गया।
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
8 comments:
अच्छा कटाक्ष --
बहुत खूब
सही व्यंग्य..यही हालत है.
लाजवाब व्यगं।
ये आज इतना लम्बा छौडा भाशन ? अच्छा लगा आभार राखी की शुभकामनायें
बढिया व्यंग्य
वाह!!!!! बहुत अच्छे.... उत्कृष्ट व्यंग.आभर.
गुलमोहर का फूल
Vah Bahut Khoob puri kahani hi bata di
लगे रहो गुरु ,सही जा रहे हो |
बहुत बढ़िया व्यंग्य |
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