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प्रवीण जाखड़जी, आपका आभार स्वीकार किया मैंने..........

भाई प्रवीण जाखड़जी ,

आपका आलेख पढ़ाआपका आभार भी साभार स्वीकार किया और अब

आपको बड़ी विनम्रता से कुछ जानकारियां देना चाहता हूँ , कृपया नोट

कर लें, तत्पश्चात अगला आलेख लिखने की कृपा करें :



आपने खोजी पत्रकार बन कर कोई मामला उजागर करने के लिए मुझे

सलाह दी है तो मुझसे रहा नहीं गया और मैं जवाब देने को बाध्य हो गया



पता चला कि आप राजस्थान पत्रिका में उप सम्पादक हैंआज एक काम

कीजियेगा ......पत्रिका की फाइल कॉपियां खंगालियेगा और उसमे 1986

से 1988 तक के अंक पढियेगा ..........आपको कुछ विशेष रिपोर्टें पढने

को मिलेंगीकुछ रिपोर्टें मेरे नाम से प्रकाशित हुई थीं और कुछ स्वर्गीय

कमल नागपाल के नाम से ....क्योंकि उन दिनों मैं श्री गंगानगर से

प्रकाशित होने वाले दैनिक प्रताप केसरी का समाचार सम्पादक हुआ

करता था और मेरे बॉस यानी प्रधान सम्पादक कमलजी 'पत्रिका' के लिए

भी अपनी सेवायें देते थे तो ज़ाहिर है मैं मुलाज़िम था और वे मालिक थे

इसलिए कुछ ख़ास आलेख वे अपने नाम से छपवा लेते थे जबकि उनकी

खोज ख़बर और लेखनीय प्रक्रिया मैं ही पूर्ण करता था


आपको चौंका देने वाली जानकारी मिलेगी उन रिपोर्टों में


इसके बाद आप 'भूमि विकास बैंक श्री गंगानगर' के तत्कालीन अध्यक्ष

श्रीमान चौधरी सन्तोष सहारण से संपर्क करके गंगानगर से प्रकाशित

होने वाले "दैनिक गोलबाज़ार पत्रिका" के 1988-89 वाले अंक प्राप्त करना

और पढ़नाआपकी जानकारी के लिए बतादूँ कि वह अखबार मैंने ही

शुरू किया था जो कि उस क्षेत्र का पहला सांध्य दैनिक अखबार थाआज

पत्रिका से जुड़े हुए बहुत से लोग मसलन श्री कृष्ण कुमार "आशु" , नरेन्द्र

उपाध्याय , श्री त्रिभुवन सारस्वत तथा और भी जिनके नाम इस समय याद

नहीं रहे , उन दिनों मेरे उसी अखबार में सहयोगी सम्पादक थेउस

अखबार में आप को अनेक ऐसे मामले मिल जायेंगे जिन्हें खोजी पत्रकार

किया करते हैं और अपनी जान जोखिम में डाल कर किया करते हैं



प्रवीणजी,

क्या आपने कभी भारत-पाक सीमा पर सीमा सुरक्षा दल की धान्दली का

परदा फ़ाश किया है ?



क्या आपने किसी दुर्दांत आतंकवादी सरगना का साक्षात्कार ऐसे समय

किया है जब वह पूरे के पूरे गुरूद्वारे को अपने कब्ज़े में ले चुका हो और

पुलिस वाले भी गुरुद्वारे में जाने से डरते हों ....नाम है सरदार सिमरनजीत

सिंह मान और शहर का नाम गंगानगर , जिस गुरूद्वारे पर कब्ज़ा किया

गया था वह रेलवे स्टेशन रोड पर स्थित है......... याद रहे उनदिनों

आतंक का सबसे खतरनाक नाम था सर. सिमरनजीत सिंह मान



क्या आपने किसी आत्महत्या के मामले को दुबारा खुला कर उसे हत्या

का मामला सिद्ध करके पुलिस और हत्यारों के बीच ख़ुद को खड़ा किया है

........गाँव का नाम मटीली राठान ..और हत्या हुई थी एक महिला की



क्या आपने किसी ऐसे लाचार बाप को न्याय दिलाया है जिसके इकलौते

बेटे को सेना के एक चालक ने अपने शक्तिमान ट्रक के नीचे कुचल कर

मार दिया हो और उस के ख़िलाफ़ कोई गवाह बनने को तैयार हो.......

घटना स्थल ..रवीन्द्र पथ श्री गंगा नगर और ट्रक था लालगढ़ छावनी का



और भी बहुत से मामले हैं लेकिन फिलहाल मुझे एक प्रोग्राम में प्रस्तुति

के लिए निकलना है इसलिए मैं जल्दबाजी में हूँ . अभी इतने ही....



ज़रा सोचना, क्या ये काम आपने कभी किए हैं ? पूछ इसलिए रहा हूँ

क्योंकि मैंने किए हैं ..........डंके की चोट पर किए हैं



वो तो फ़िल्मों में गाने लिखने का शौक था इसलिए पत्रकारिता को

छोड़ कर मुंबई चला आया ....लेकिन आज भी मैं भलीभान्ति जानता

हूँ कि पत्रकारिता क्या होती है और कैसे की जाती है



रजिस्ट्रार ऑफ़ न्यूज़ पेपर्स , आर के पुरम , नई दिल्ली से टाइटल

प्राप्त करने से लेकर जयपुर में डी . पी. आर. और दिल्ली में DAVP

और INS से कैसे निपटा जाता है , विज्ञापन का रेट बढ़वाने के लिए

कितना रुपया खिलाना पड़ता है..............सब जानता हूँ भाई !


आज मैंने मेरे ब्लॉग पर एक कविता पोस्ट की है पत्रकार पर

हो सके तो पढ़ लेना,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


आपके लिए शुभकामनाओं सहित,

-अलबेला खत्री

8 comments:

सुधीर कुमार August 18, 2009 at 2:15 PM  

प्रवीण जाखड़ जी के लिये खोजी पत्रकारिता के क्या मायने हैं?
कोई भी अखबार उठाकर एक लैंस से देखना, बस्स

न मानो तो इनकी ब्लाग में देख लो

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद August 18, 2009 at 3:20 PM  

इतने छोटे जीवन में इतने अलबेले कारनामें!! भई वाह!!!!!

Anonymous August 18, 2009 at 5:42 PM  

वाह जी! सही ज़वाब!!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" August 18, 2009 at 5:58 PM  

वाह्! आप तो सचमुच के अल्बेले आदमी हो!!!

Gyan Darpan August 18, 2009 at 7:28 PM  

वाह खत्री जी आपतो वाकई अलबेले हो | वैसे मेरा वास्ता जोधपुर के खत्रियों से भी बहुत पड़ा है वहां भी मुझे महेश जी खत्री जैसे कई अलबेले खत्री मिले |

आपने प्रवीण को सही जबाब दिया |

Mithilesh dubey August 18, 2009 at 7:33 PM  

जानकर अच्छा लगा अलबेला जी की बहुत कुछ कर लिए है कम समय मे। आपकी राय अच्छी लगी पवीण जी के लिए शायद इससे वे कुछ समझेगें।

राजीव तनेजा August 18, 2009 at 10:23 PM  

यार!...आप तो छुपे रुस्तम निकले

Publisher August 19, 2009 at 11:13 PM  

खत्री साहब मैंने सलाह नहीं दी है। निवेदन किया है। सलाह उम्र में बड़े देते हैं। बहुत ही अच्छा लगा जानकर की आप एक तो राजस्थान से हैं, दूसरे आप खुद पत्रकार और एक खोजी पत्रकार रहे हैं।

आपने एक सवाल किया है अपनी खोजी खबरों के बारे में बताते हुए कि 'जरा सोचना क्या ये काम आपने भी किए हैं?Ó सिर्फ एक बात कहना चाहंूगा, अगर यही खबरें करूंगा तो लोग कहेंगे किसी दूसरे पत्रकार की कॉपी कर रहा है जाखड़। हर पत्रकार जो मुद्दे उठाता है, वह उसकी उस समय ड्यूटी, दिलचस्पी पर निर्भर करता है। ....और मैं कॉपी-पेस्ट में दिलचस्पी नहीं रखता। मैंने सारी खोज पत्रकारिता में अपने रिस्क अपने अंदाज में की हैं। आपका अपना अंदाज था। अपना समय था। इसलिए यह तो संभव ही नहीं है कि मैं उन मुद्दों पर काम करता या करूंगा ही, जिन में आपकी दिलचस्पी है या जिन्हें आपने उठाया है। मैंने भी ऐसे कई मामले उठाए हैं। अगर यहां मैं ही पूछ लूं आपसे कि तेलगी के बाद देश के सबसे बड़े स्टाम्प घोटाले का खुलासा क्या आपने क्या है? तो इस पूरे संदर्भ में ऐसे सवाल का कोई औचित्य नहीं रह जाता। क्योंकि वह मैंने किया है और जो मैंने किया है जरूरी नहीं वही आप करें या कोई दूसरा पत्रकार करे।

...और यह बहुत ही अच्छी बात है कि आप जानते हैं कि पत्रकारिता क्या होती है कैसे की जाती है? तो जाहिर है मैं यहां क्यों बोलूं? क्योंकि आप तो जानते ही हैं। अनुभवी हैं। लेकिन अपना-अपना नजरिया है। अपने-अपने संस्कार हैं। आपने वह सब लिखा है, जो आपने देखा है। भई अभी तक मेरे साथ तो ऐसा हुआ नहीं कि मेरे बॉस ने मेरी खबरों पर अपनी बाईलाइन ले ली हो, या खोजी पत्रकार होने के नाते मुझे किसी रुपए-पैसे के लेनदेन में अपने हाथ खराब करने पड़े हों, तो इसलिए इतना ही कहंूगा कि फर्क समय और परिस्थितियों का है। मेरे आठ सालों के अनुभव बेहद अच्छे हैं और मुझे बहुत ही अच्छे लोगों के साथ काम की संगत मिली है।

मेरा उद्देश्य और मंतव्य सिर्फ इतना ही था कि पत्रकारिता में बदलाव तो हर रोज आ रहे हैं। अगर आप पत्रकार रहे भी हैं, तो उस जमाने में और इस जमाने में रात-दिन का अंतर आ गया है। हमसे दो साल बाद इस क्षेत्र में आए लोग या पांच साल बाद आए लोग हमसे भी अच्छा काम कर रहे हैं। यही तो सृष्टि का नियम भी है, बेहतर से बेहतर होते जाना। तो इसमें अगर मैं गिनाने बैठ जाऊं कि मैंने यह कर दिया वह कर दिया उसका कोई औचित्य न होगा।

आपने खोजी पत्रकार, पत्रकार, कवि और कथाकारों के बारे में बहुत कुछ लिखा था। मुझे जानकारी नहीं थी कि आप भी पत्रकार रह चुके हैं। अब पता चला है, तो इतना ही कहंूगा आपने जो भी शब्द किसी पत्रकार, खोजी पत्रकार के लिए कहे, सब आप पर भी लागू हुए हैं कभी न कभी। तो बस मुझे तो यही लगता है आप अपने ही शब्दों में उलझ गए हैं। आप खुद पत्रकार रहे हैं, खोजी पत्रकार रहे हैं और खुद ही पत्रकारों की बुराईयां आपने उस पोस्ट में लिख दी थी। भई हर ब्लॉगर स्वतंत्र है। आप भी स्वतंत्र है। किसी को क्या फर्क पड़ता है।

लेकिन कुल मिलाकर अच्छा लगा यह जानकर कि आप पत्रकार रहे हैं। मैंने तो संगीता पुरी जी के ब्लॉग पर भी लिखा था और स्वीकार किया था कि पत्रकारिता में आपसे एक दिन पहले आने वाले को भी वरिष्ठा और पूरा सम्मान दिया जाता है। मैं अब भी कायम हंू। आप पहले दिन भी उतना ही सम्मान रखते थे, आज उससे ज्यादा ही रखते हैं। पर क्या करें, सब शब्दों की माया है।

शुक्रिया आपने जाखड़ के लिए इतना समय निकाला।

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