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Albela Khatri

तो कुछ ऐसे दीवाने हैं कि बस पल भर में पाया है

मन्दिर में, मस्जिद में, गिरजाघर में पाया है

इसी नरदेह में, अनहद के सच्चे घर में पाया है

कई रोते-भटकते, एड़ीयां घिसते रहे युग-युग

तो कुछ ऐसे दीवाने हैं कि बस पल भर में पाया है

5 comments:

Mithilesh dubey August 13, 2009 at 10:58 PM  

कई रोते-भटकते, एड़ीयां घिसते रहे युग-युग
तो कुछ ऐसे दीवाने हैं कि बस पल भर में पाया है

भाई वाह अलबेला जी क्या रचना है, लाजवाब। कुछ ही लाइनों मे बहुत कुछ कह डाला आपने।

Chandan Kumar Jha August 13, 2009 at 11:41 PM  

बहुत सुन्दर....आध्यात्मिक रचना....कम शब्दो में सार्थक अभिव्यक्ति. आभार

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद August 13, 2009 at 11:44 PM  

वाह अलबेलाजी, कुछ अलग ही तेवर दिख रहे हैं आज तो!!!

राजीव तनेजा August 14, 2009 at 12:27 AM  

सत्य वचन

M VERMA August 14, 2009 at 5:04 AM  

बहुत खूब

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