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Albela Khatri

मद मोहब्बत का उतर जाए तो कुछ आराम हो....


दर्द गर हद से गुज़र जाए तो कुछ आराम हो

ज़िन्दगी अब भी संवर जाए तो कुछ आराम हो


उसने मेरी शायरी में मस्तियां भर दीं मगर

मद मोहब्बत का उतर जाए तो कुछ आराम हो


दर्द--ग़म की तो शफ़ा मिल सकी लेकिन अगर

टूट कर यह दिल बिखर जाए तो कुछ आराम हो


अन्जुमन में यों तो लाखों पैक़र--अहबाब हैं

अक़्स उसका भी उभर जाए तो कुछ आराम हो


आज तक 'अलबेला' सहते जा रहे हैं हम जिसे

कुछ घड़ी यह ग़म उधर जाए तो कुछ आराम हो

3 comments:

ओम आर्य August 3, 2009 at 11:43 PM  

kya baat kahi hai guru maan gaye ........sahi hai dard hi dard hai ........kya kahe aaram lagata hai is dour me sirf aaram hi farmaa raha hai ......bahut hi sundar

राजीव तनेजा August 3, 2009 at 11:48 PM  

उसने मेरी शायरी में मस्तियां भर दीं मगर

मद मोहब्बत का उतर जाए तो कुछ आराम हो

बहुत ही उम्दा रचना....

Udan Tashtari August 4, 2009 at 8:08 AM  

बेहतरीन!!

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