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Albela Khatri

किसकी तलाश में भटक रहे हो दर-ब-दर.....

वो धूप में, दीये में, वो ही पूजा-पाठ में

वो सोमनाथ में, वो ही केदारनाथ में

किसकी तलाश में भटक रहे हो दर--दर

वो रब तो हर घड़ी है हर बशर के साथ में

11 comments:

Gyan Darpan September 1, 2009 at 8:14 AM  

क्या खूब कही है | सत्य वचन |

Meenu Khare September 1, 2009 at 8:23 AM  

बहुत खूब. क्या बात कही है.

Sudhir (सुधीर) September 1, 2009 at 8:59 AM  

वाह !! क्या खूब कही

ओम आर्य September 1, 2009 at 9:37 AM  

sundar bhaw

Shruti September 1, 2009 at 10:40 AM  

wo hai mere pal pal mein
aur ek main hu
jo dhoondta hu use
kabhi madiro mein
kabhi shivaalo mein

-Sheena

रज़िया "राज़" September 1, 2009 at 11:28 AM  

अभी तक की सारी रचनाओं में से श्रेश्ठ आपकी रचना। बधाई।

शिवम् मिश्रा September 1, 2009 at 11:46 AM  

मन्दिर तोड़ो, मज्जिद तोड़ो ,
इस में नहीं "वो" जाता है |
दिल मत तोड़ो किसका बन्दे ,
यह घर खास "खुदा" का है ||

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" September 1, 2009 at 6:40 PM  

लाजवाब्! उम्दा!!!
श्रेष्ठ रचना!!!

Chandan Kumar Jha September 2, 2009 at 2:10 AM  

बहुत सुन्दर रचना.......कण कण मे है वही जिसे हम ढूंढते है....

Nitish Raj September 2, 2009 at 3:12 AM  

बहुत खूब...।

Unknown October 16, 2013 at 9:44 PM  

so good .....

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