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Albela Khatri

सृजन का आदित्य अमर है, कभी अस्त नहीं होगा

चलो माना

काल तो काल है

सचमुच काल है

उसके नाख़ून भयनाक हैं विकराल हैं

दान्त पैने और जबड़े विशाल हैं

इक बार जो जीव काल के गाल में चला जाता है

यह प्राणाहारी उसे नख से शिख तक खा जाता है

परन्तु किसको?


इस प्रश्न पर

काल बड़ा बौना नज़र आता है

आदमी के समक्ष

इससे भी पौना नज़र आता है

क्योंकि काल के दान्त का ज़ोर

सिर्फ़ व्यक्ति पर चलता है,

व्यक्तित्व पर नहीं

व्यक्ति के कृतित्व पर नहीं

रचनात्मक अस्तित्व पर नहीं

सो

कवि पर भी इसका ज़ोर नहीं चल पाएगा

यह अन्धेरा, उजाले को नहीं छल पाएगा

सूरज, भला किस आँच में जल पाएगा

हमें विश्वास है

कवि के कृतित्व का दुर्ग

कभी ध्वस्त नहीं होगा

सृजन का आदित्य अमर है,


कभी अस्त नहीं होगा

7 comments:

Rakesh Singh - राकेश सिंह September 3, 2009 at 8:02 PM  

अलबेला जी आपने बेहतरीन रचा है | ग़ज़ब की ऊर्जा बिखेरती है आपकी ये रचना |

मुकेश पाण्डेय चन्दन September 3, 2009 at 8:21 PM  

waah wah !
vajpayee ji ki yad dila di apne
kaal ke gaal par likhta aur mitata hoon
geet nya koi gata hoon
bahut khoob !!

kulwant happy September 3, 2009 at 9:04 PM  

जिस्म ही जला पाती हैं, वक्त की तीलियाँ
हवा में रहेंगी तेरे ख्यालों की बिजलियाँ

राजीव तनेजा September 3, 2009 at 11:28 PM  

हम ना रहेंगे..तुम ना रहोगे...

हमारा लिखा हमेशा रहेगा

Chandan Kumar Jha September 3, 2009 at 11:38 PM  

बहुत ही उर्जापूर्ण रचना. आभार

Udan Tashtari September 4, 2009 at 6:18 AM  

सृजन का आदित्य अमर है,

कभी अस्त नहीं होगा

--बिल्कुल...जिंदाबाद!!

Dr. Sudha Om Dhingra September 4, 2009 at 7:53 AM  

बंधू, कमाल कर दिया. नई ऊर्जा भरती बढ़िया रचना.

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