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Albela Khatri

तुम्हारी चाह का चाकू .......बड़ी मुश्क़िल से निकलेगा

मुन्सिफ़ से ही निकलेगा,

ये क़ातिल से निकलेगा


बनवारी से निकलेगा,

ये बिस्मिल से निकलेगा


तुम्हारी चाह का चाकू .......

बड़ी
मुश्क़िल से निकलेगा


कि दिल भी साथ निकलेगा

अगर ये दिल से निकलेगा

13 comments:

शिवम् मिश्रा September 7, 2009 at 2:07 PM  

वो नौबत ही क्यों आये कि यह चाकू दिल तक जाये ??

इष्ट देव सांकृत्यायन September 7, 2009 at 2:44 PM  

बड़ा फ़ालतू टाइप का चाकू है.

निर्मला कपिला September 7, 2009 at 3:29 PM  

वाह वाह अब चाकू चलने तक नौबत आ गयी?

ओम आर्य September 7, 2009 at 3:32 PM  

क्या बात है लगन भर लगने की देर है ......अतिसुन्दर

रज़िया "राज़" September 7, 2009 at 3:43 PM  

हाँ शिवम की बात भी सही लगती है। वो नौबत ही क्यों आये?

पी.सी.गोदियाल "परचेत" September 7, 2009 at 4:28 PM  

निकालते क्यों हो खत्री साहब, घुसा रहने दो !

M VERMA September 7, 2009 at 7:01 PM  

दिल मे गर चाहत का चाकू है तो फिर क्या कहने --
और पैबस्त कर दो इस चाकू को
बहुत खूब लिखा है आपने -- बहुत खूब

राज भाटिय़ा September 7, 2009 at 9:02 PM  

अरे क्यो इन चाकू वाजो से दोस्ती करते है....वेसे अब तक तो निकल गया होगा ? वेसे मुझे लगता है यह चाकू २०,२२ साल पुराना ही घुसा है... लेकिन अगले हसीन चाकू वाज से अब पंगा ना लेना, पुराने वाले को घुसा रहने दो

Kulwant Happy September 7, 2009 at 9:30 PM  

अद्भुत...*****

Chandan Kumar Jha September 7, 2009 at 10:43 PM  

बेज़ोड रचना………

Anjelanima_एंजेला एनिमा September 7, 2009 at 11:35 PM  

वाह क्या चाकू है....मानना पड़ेगा..थोड़ा अजीब है न...

Satya Vyas September 8, 2009 at 12:30 AM  

bahut khoob .........
beyond comparision. albela jii aisi hi kuch or rachnaye post karen. hame intezar hai.

Sudhir (सुधीर) September 12, 2009 at 8:24 AM  

क्या बात है अलबेला जी....सुन्दर

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