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Albela Khatri

यह तो कोई और जगह है, अपना हिन्दुस्तान नहीं ...

नूर आँख में,

खून में हिम्मत,

दिल में दीन-ईमान नहीं


कहने को क्या है,

कह देंगे,

लेकिन वो इन्सान नहीं


भूखे को

रोटी की मुश्क़िल ,

नंगे को कपड़ा मुश्क़िल


यह तो कोई

और
जगह है

अपना
हिन्दुस्तान नहीं

12 comments:

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" September 15, 2009 at 8:43 PM  

लाजवाब रचना!

भई हमारे काजू कहां गये?:)

शिवम् मिश्रा September 15, 2009 at 10:42 PM  

Welcome Back !!

बहुत बहुत बधाई ||

सुन्दर रचना,हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ||

राजीव तनेजा September 15, 2009 at 10:57 PM  

खरी बात...


पूरे पाँच दिन आप गायब रहे हैँ ब्लॉगिंग की दुनिया से...इसका हरजाना कौन भरेगा?

Mithilesh dubey September 15, 2009 at 11:11 PM  

बहुत खुब। सुन्दर रचना के लिए बधाई।

राज भाटिय़ा September 15, 2009 at 11:14 PM  

अलबेला जी , काजू ? हमारे एक मित्र जर्मन से भारत अपने घर वालो को मिलने के लिये चले, जाने से दो महीने पहले सब जानपहचान वालो को बोल दिया कि हम फ़ंला दिन भारत जा रहे है, अब मेरे जेसे वेबकुफ़ उन के पास बारी बारी गये, भाई मेरा केमरा ले जा सकते है, तो कोई वी सी आर तो कोई कुछ , दोस्त बडे दिल का था, उस ने सब को हां कर दी, सभी का समान दोस्त के एक बडी आटेची मै रखा, फ़िर सब ने उसे बारी बारी पार्टी दी, ओर फ़िर निशचित दिन हम दोस्तो की बारात एयर पोर्ट पर उसे छोडने गये, दुसरे दिन दोस्त का फ़ोन आया कि भाई हमारा अटेची खो गया है..... तो आप भी पहले १४४ किलो काजू के पेसे लो लो फ़िर... मोजा ही मोजा
आप की कविता बहुत सुंदर लगी

शिवम् मिश्रा September 15, 2009 at 11:25 PM  

कहाँ थे महाराज ?? आपकी कमी खूब खली !!

वापसी बहुत उम्दा रचना से हुयी ,
बधाई |

शरद कोकास September 15, 2009 at 11:52 PM  

बहुत बढ़िया रचना है अलबेला भाई "यह तो कोई और जगह है अपना हिन्दुस्तान नहीं " यह दुर्दम्य आशावाद है। काश! हमारे देश के कर्णधार इस बात को समझ पाते ।

Anil Pusadkar September 16, 2009 at 12:51 AM  

बहुत ही बढिया।मगर अफ़सोस तो ये है कि अलबेला जी यही अपना हिंदोस्तान है।

Sudhir (सुधीर) September 16, 2009 at 6:18 AM  

भारत की वर्तमान स्थिति को उकेरती अभिव्यक्ति

Murari Pareek September 16, 2009 at 8:09 AM  

सचमुच ही अपना हिन्दुस्तान नहीं है वो तो खो गया ये तो कोई और ही जहां है | बहुत सुन्दर |

Unknown September 16, 2009 at 9:19 AM  

कहीं आप भूल तो नहीं कर रहे हैं खत्री जी, मुझे तो लग रहा है कि यह अपना हिन्दुस्तान ही है।

रज़िया "राज़" September 16, 2009 at 3:04 PM  

क्या बात है। आप तो बहोत दिनों तक गायब थे। और फिर आते ही.........

सुंदर रचना।

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