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Albela Khatri

आदमी की सूरत के नाग मेरे देश में..........

बीते हुए दौर की


कहानी जैसे लगते हैं


प्रेम-प्रीत-प्यार-अनुराग मेरे देश में



आज का ये हाल है कि


रात-दिन कटते हैं


बेटा-बाप-भाई व सुहाग मेरे देश में



बीड़ी सुलगाने को


लगा रहे हैं लोग देखो,


अपने ही आंगन को आग मेरे देश में



मानो या न मानो किन्तु


मैं तो रोज़ देखता हूं


आदमी की सूरत के नाग मेरे देश में


10 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" September 21, 2009 at 2:35 PM  

मै तो रोज देखता हूँ
आदमी की सूरत के
नाग मेरे देश में

बहुत सुन्दर खत्री साहब !
BTW: मैं कैसा दीखता हूँ आपको :-)

राज भाटिय़ा September 21, 2009 at 3:04 PM  

आदमी की सूरत के नाग मेरे देश में... अलबेला जी आप की कविता से सहमत है जी

शिवम् मिश्रा September 21, 2009 at 4:04 PM  

भाई जी ,
आज सच में बहुत कमाल किये हो !! आनंद आ गया |

M VERMA September 21, 2009 at 5:19 PM  

आदमी की सूरत के नाग मेरे देश में
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति दी है आपने
बेहतरीन

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" September 21, 2009 at 8:49 PM  

आदमी की सूरत में तो यहाँ बडे बडे अजगर,डायनासोर भी मिल जाएंगे

प्रकाश पाखी September 21, 2009 at 11:12 PM  

आदमी की सूरत के नाग मेरे देश में,
लोग लुटते होती बरबाद रोज बस्तियां,
फैलती जाए जो दंगो की आग मेरे देश में.
नेता फन खोलते बोलते तोलते माल मेरे देश का
कूटने फूटने लूटने पर मची भागमभाग मेरे देश में.
कुछ ऐसी ही पंक्तिया आपसे प्रभावित हो कर मन में आ रही है.

Sudhir (सुधीर) September 22, 2009 at 7:38 AM  

अपने राष्ट्र का दुर्भाग्य है कि हर गली नुक्कड पर मिलते है ऐसे नाग मेरे देश मे...

Unknown September 22, 2009 at 8:51 AM  

पर इस कविता को पढ़ कर
सुधार लेंगे स्वयं को और
लोग जायेंगे जाग मेरे देश में!

राजीव तनेजा September 22, 2009 at 6:05 PM  

सत्य वचन

Chandan Kumar Jha September 22, 2009 at 9:06 PM  

बहुत सुन्दर ।

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