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Albela Khatri

शीतल शबनम के क़तरे तन-मन में आग लगाते हैं.........

मधुर-मधुर, मीठा-मीठा और मन्द-मन्द मुस्काते हैं

सुन्दर-सुन्दर स्वप्न सलोने हमें रात भर आते हैं



बस्ती-बस्ती बगिया-बगिया,परबत-परबत झूमे है

मस्त पवन के निर्मल झोंके प्रीत के गीत सुनाते हैं



उभरा है तन पे यौवन ज्यों चमके बिजली बादल में

शीतल शबनम के क़तरे तन-मन में आग लगाते हैं



रात चाँदनी में नदिया की सैर कराता जब मांझी

कई तलातुम तुझ जैसे साहिल की याद दिलाते हैं



कुछ और नहीं हैं 'अलबेला' ये तो यादों के पैक़र हैं

जो विरह वेदना के ज़ख्मों को जब देखो सहलाते हैं

9 comments:

Udan Tashtari September 8, 2009 at 8:51 AM  

बेह्तरीन और सटीक रचना!

Unknown September 8, 2009 at 8:51 AM  

'अलबेला' जी जन साधारण में हास्य-कवि कहलाते हैं
लिखते लिखते हास्य कविताएँ, श्रृंगार गान भी गाते हैं।

Mithilesh dubey September 8, 2009 at 10:32 AM  

bahut hee satik aur lajvab

रज़िया "राज़" September 8, 2009 at 11:23 AM  

अल्बेलाजी की हर रचना कुछ कहती रहती है। गुनगुनानेको दिल करता है।

शिवम् मिश्रा September 8, 2009 at 2:43 PM  

सुंदर रचना |

राजीव तनेजा September 8, 2009 at 10:49 PM  

उफ!...कहीं आपको प्यार तो नहीं हो गया है?...


सुन्दर रचना

शरद कोकास September 8, 2009 at 10:52 PM  

राशन हो न हो किन्तु
हाज़िर है मौत का सामान मेरे देश में
यह पंक्तियाँ बहुत अच्छी हैं अलबेला भाई -शरद कोकास

Anil Pusadkar September 8, 2009 at 11:20 PM  

हर बार की तरह सुन्दर्।तारीफ़ तो करना ही पडेगा।

Sudhir (सुधीर) September 12, 2009 at 8:36 AM  

प्यारी अभिव्यक्ति....विशेष रूप से अन्तिम शेर बहुत अच्छा लगा

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