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Albela Khatri

हे रचनाजी ! हे पाबलाजी ! आप दोनों के कारण जो पैदा हुई है मेरे मन की उस जिज्ञासा को भी शान्त करो प्लीज़....

अभी अभी बी एस पाबला जी के ब्लॉग पर मुझे यह माल पड़ा मिल गया मैं

चुपके से बिना किसी को बताये ये उड़ा लाया क्योंकि मुझे ये माल मेरे काम

का लगा हालांकि भारतीय संस्कृति में सन्त लोग काम को मनुष्य का शत्रु

मानते हैं लेकिन मेरे प्रिय फिल्मी गीतकार आनन्द बख्शी ने फ़िल्म हाथी मेरे

साथी में एक गाना लिखा था "दुनिया में जीना है तो काम कर प्यारे" इसलिए मैं

तो काम नहीं छोडूंगा .........


पहले आप इस माल को देखलें ...

फ़िर मैं अपना रुमाल निकालता हूँ इसे पोंछने के लिए...........


रचना October 11, 2009 9:12 AM

भारतीये संस्कृति के उपासक और
आंगल भाषा के विरोधी अगर आप
सच मे होते तो पाश्चात्य संस्कृति और
अग्रेजी तिथि से ना तो जन्म दिन मनाते
ना बधाई देते . दो कमेन्ट आपने
मेरे इस लिये डिलीट किये क्युकी इंग्लिश
मे थे बाकी मेने खुद कर दिये क्युकी
आप जो कहते हैं मानते नहीं . हिंदी भाषा
प्रेम तो आप का जग जाहिर हैं पर
पाश्चात्य संस्कृति प्रेम से आप और
आप जैसे जितने घिरे हैं वही जगह जगह
जा कर अपनी मानसिकता का परिचय
महिला के कपड़ो पर रहे लेखो पर
तालियाँ बजा बजा कर देते है
भारतीये संस्कृति में जनम दिन मनाने
की परम्परा ही नहीं हैं


ये माल किसी रचना का है मैंने पता किया लेकिन प्रोफाइल का गेट बन्द

होने के कारण पता नहीं चला कि ये रचना साहब कौन हैं ? नर हैं , नारी हैं या

किन्नर हैं खैर अपने को मतलब भी क्या है ? सारी रचना उस एक परमात्मा

की बनाई हुई है सब एक जैसे हैं अपने मतलब की तो वे दो आखरी पंक्तियाँ

हैं जिनमे कहा गया है कि

भारतीये संस्कृति मे जनम दिन मनाने
की परम्परा ही नहीं हैं


भाई ये तो बड़ी ऊँची सर्कस हो गई ...अगर भारतीय संस्कृति में जन्मदिन

मनाने की परम्परा ही नहीं है तो फ़िर हम इत्ते सालों से क्या झख मार रहे

हैं ? गणेश चतुर्थी को गणेशजी का, कृष्ण जन्माष्टमी को कृष्ण जी का ,

शीतला सप्तमी को शीतला माता का, दुर्गा अष्टमी को भवानी का, राम

नवमी को श्री रामचन्द्रजी का और महा शिवरात्रि को शिवजी के अलावा अलग

अलग दिनों में हनुमानजी का, बुद्ध का, महावीर स्वामी का, श्री गुरुनानक आदि

आदि इत्यादि का जन्मदिन हम मनाते आए हैं .


क्या ये सब नाम भारतीय संस्कृति से जुड़े हुए नहीं हैं ?


यार ये तो जिज्ञासा पैदा हो गई और चूँकि जिज्ञासा रचनाजी के कारण

पैदा हुई है और संयोग से बी एस पाबला जी के इलाके में हुई है इसलिए इसे

शान्त करने का काम उन्हें ही करना होगा............


सो हे अज्ञात रचनाजी ! हे ज्ञात पाबला जी ! आप दोनों ने मिल के जो जिज्ञासा

पैदा की है मुझ अज्ञानी के मन में, वह शान्त करो...ताकि मैं अपने दूसरे काम में

लग सकूँ...........


विनीत

-अलबेला खत्री




10 comments:

दिनेशराय द्विवेदी October 11, 2009 at 9:11 PM  

ओह! जिज्ञासा ने आप के मन में डेरा डाला है। हम पाबला जी के ब्लाग पर तलाश रहे थे। नहीं मिली तो पाबला जी से कहा जिज्ञासा कहाँ हैं? जवाब में उन्हों ने दो लिंक दे दिए। जब वहाँ भी नहीं मिली तो हताश, निराश चुपा गए। हमें क्या पता कि वह आप के मन में डेरा डाले है।
भाई! आप ने जिन जिन भगवानों और देवताओं के नाम बताए वे तो सब प्रकट भए कृपाला हैं। इसलिए उन का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। फिर कोई इंसान तलाशें जिस का जन्म दिन भारतीय संस्कृति से जुड़ा हो और मनाया जाता हो।

Unknown October 11, 2009 at 9:38 PM  

आपका कहना सर माथे पर द्विवेदीजी,

यही तो मेरी जिज्ञासा है कि जिस देवों के देव महादेव के आदि व अन्त का स्वयं

ब्रह्मा और विष्णु भी पता नहीं कर पाये, हम तो उस आशुतोष भगवान् शिव

का भी जन्म दिन मनाते हैं तब भारतीय संस्कृति में जन्मदिन न मनाने की

बात कैसे मानी जाए..........


माना कि ये सब प्रकट हुए थे लेकिन स्वामी विवेकानंद, महा ऋषि दयानंद,

राजा राम मोहन राय, महाराणा प्रताप, भगत सिंह, महात्मा गांधी, नेहरू,

विनोबा भावे और इंदिरा गाँधी भी क्या प्रकट हुए थे ....उनका जन्म दिन

मनाया जाता है और भारतीय परिवेश में ही मनाया जाता है

राजीव तनेजा October 11, 2009 at 9:45 PM  

बर्तन हैँ तो खड़केंगे ही ...
आजकल ब्लॉगजगत में व्यर्थ के दंगल चल रहे हैँ...हर कोई किसी ना किसी को चुनौती देता प्रतीत होता है कि...

"आ देखें ज़रा कि कौन?...कहाँ?...कैसे ढेर होता है?"

रावेंद्रकुमार रवि October 11, 2009 at 9:58 PM  

अलबेला जी!
आप तो सही में बहुत अलबेले हैं
और
अपने अलबेले ब्लॉग पर
"रचना" भी बहुत अलबेली लगाते हैं!
"रचना" पढ़कर आनंदित हूँ!

ब्लॉ.ललित शर्मा October 11, 2009 at 10:44 PM  

हे रचना जी हे पावला जी
थे बणो मत ना बावला जी
ओ अलबेला को कहणो है,
थे बात मान लो तावला जी,

वन्दना अवस्थी दुबे October 11, 2009 at 11:09 PM  

द्विवेदी जी, आप चाहे इन देवी देवताओं के जन्म को प्राकट्य दिवस कहें या कुछ और लेकिन जन्म और प्रकट होने में बहुत बारीक स ही अन्तर है. ईश्वर के अवतारों ने मानव रूप में ही धरती पर जन्म लिया है. भारतीय संस्कृति में जन्म दिवस मनाने की परम्परा वैदिक है. रचना जी ने किस आधार पर इस परम्परा को खारिज़ किया पता नहीं. फिर रचना जे उन लोगों को भी भारतीय परम्परा का पोषक नहीं मानतीं जो अंग्रेज़ी में बधाई देते हैं...आदि. तो दूसरों की तो छोडिये, इन सब ने तो कभी भारतीयता को मुद्दा बनाया ही नहीं, खुद रचना जी जिन्होंने हिन्दी को मुद्दा बनाया वे स्वयं जम कर अंग्रेज़ी का इस्तेमाल करतीं हैं. अंग्रेज़ चले गये, लेकिन भाषा के साथ पता नहीं क्या-क्या छोड गये, जिन्हें हम बाखुशी पोस रहे हैं.

शिवम् मिश्रा October 11, 2009 at 11:15 PM  

बड़े भाई , तैयारी कर लो, कमर कस लो, अपनी टाइपिंग स्पीड बड़ा लो और जो जो कर सको कर लो ............
आप की इस "रचना" पर पाबला जी तो कुछ नहीं कहेगे पर, सावधान..... वो "रचना" जी आप को नहीं बख्शने वाली !!!!!!
आप पहेले भी बहुत फुटेज ले चूके हो महिलायों से पंगे लेने में.....अब फ़िर शुरू हो गए ??
माने कि "हम नहीं सुधरेगे" में पीएचडी किये हो क्या ??





(वैसे, केवल आपके कान में कह रहा हूँ, किसी को भी बताना मत ..... बोल आप एकदम सटीक रहे हो! भारतीये संस्कृति में जनम दिन मनाने की परम्परा हैं!
वो क्या है ना मैं पब्लिक के सामने विवाद में आने से बचना चाहता हूँ !
बचपन में एक बार पब्लिक के हाथों एक मनचले की पिटाई देख ली थी तब से डर बैठा हुआ है|)
और कोई बात नहीं है !! आशा है आप मेरी बात समझ रहे होगें!

राज भाटिय़ा October 11, 2009 at 11:30 PM  

बहुत सुंदर लिखा आप ने अलबेला जी.

डा० अमर कुमार October 12, 2009 at 12:23 AM  


मज़ेदार नोंकझोंक !

Chandan Kumar Jha October 12, 2009 at 1:21 AM  

इस ब्लाग रूपी धर्मक्षेत्र को युद्ध रूपी कुरूक्षेत्र न बनाया जाय । हे कृष्ण अब तो जगो !!! :)

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