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संगीता पुरी जी ! "वत्स" जी ! कृपया बताइये.....क्या यह एक संयोगमात्र हैं या कोई दैवीय चमत्कार ....?




सम्मान्य संगीता पुरी जी,

पंडित डी के शर्मा 'वत्स' जी तथा सभी मित्रो !



नमस्कार


कुछ जिज्ञासाएं हैं जिनके बारे में सार्वजनिक रूप से पूछ रहा हूँ

ताकि अन्य मित्रों को भी अगर ऐसा ही कुछ जानना हो,तो उन्हें

भी ख़बर हो सके



# गत कई दिनों से लगातार अनुभव कर रहा हूँ कि बन्द टी वी

को on करते समय जिस program को देखने के लिए मैं इच्छित

होता हूँ , वही सामने आता है.........समाचार देखना हो, तो समाचार

ही सामने आता है और डांस देखना हो, तो डांस वाला program

खुलता है



## जब भी घड़ी देखता हूँ तो समय कभी पूरा नहीं होता ...ऐसा

दिखाई देता है : 09.09, 10.10, 11.11, 12.12 , 07.07, 02.02

इसका क्या मतलब है मैं जान नहीं पाया...और ये हर बार होता है

किसी दिन एक-दो बार की बात नहीं है



### इसी 05 दिसम्बर को फ़िल्म सिटी गोरेगांव में STAR ONE

के नए प्रोग्राम LAUGHTER KE PHATKE KE लिए मेरी शूटिंग

दोपहर में 02 बजे होने वाली थी क्योंकि शाम को इन्दौर में शो होने

के कारण 06 बजे की उड़ान पकड़ने के लिए मुझे 05 बजे तक हर हाल

में एयर पोर्ट पहुंचना था.........संयोग से शूटिंग में देरी होती गई और

02 बजे वाला काम ही 04 बजे शुरू हुआइस काम में कम से कम डेढ़

घंटा तो लगता ही है क्योंकि कव्वाली का दृश्य होने के कारण पर वैसी

ही प्रोपर्टी लगानी थी, संगत करने वालों को उनकी भूमिका समझानी

थी, बैंड के साथ मुझे और आभास को रिहर्सल करनी थी, टेक्निकल

रिहर्सल करनी थी और final रिहर्सल के बाद टेक होना था



मैं समझ गया कि आज उड़ान छूट जायेगी और मैं इन्दौर नहीं पहुँच

पाऊंगा, लेकिन कमाल तो ये है कि कुछ ही मिनटों में प्रोपर्टी भी लग

गई और हम लोग सैट पर भी पहुँच गए संगत करने वालों के साथ

रिहर्सल हुई और ही आभास और मैंने टेक्निकल ही की, सीधा final

किया और टेक हो गया............यानी 15 मिनट में काम ख़त्म !

नतीजतन ठीक 5 बजे मैं एयर पोर्ट पर था...........ये अलग बात है कि

उडान उस दिन 2 घंटे 15 मिनट लेट थी इसलिए इन्दौर 8 बजे के

बजाय मैं 10 बजे पहुँचा, जबकि प्रोग्राम का समय 9 से 10 का ही

था क्योंकि यह एक विवाह प्रसंग था और मेरी परफोर्मेंस के बाद

डिनर होना था लेकिन मैं पहुँचा ही venue पर साढ़े दस बजे और

प्रोग्राम करते करते लोगों को मज़ा आता गया तो मैंने और गौरव

शर्मा ने राजीव शर्मा के साथ कोई अढाई घंटे पर्फ़ोर्म किया लेकिन

कहीं से कोई चम्मच-प्लेट की आवाज़ नहीं आई...........



सबने डिनर का आनन्द बाद में ही लिया.......... ये कैसे सम्भव है ?

भला शादी-ब्याह का प्रसंग हो और खाना इताना विलम्ब से हो, बात

समझ में नहीं बैठ रही है..........



क्या ये सब संयोग मात्र हैं या कोई चमत्कार ?



कृपया कोई बताये ...... क्योंकि मेरे मन में इसे ले कर बड़ी जिज्ञासा है



धन्यवाद,


-अलबेला खत्री

इस समय भी मेरी घड़ी में दोपहर के 12.12 बजे हैं........





11 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" December 11, 2009 at 12:11 PM  

क्षमा करे, पूछा तो आपने संगीता जी से और वत्स जी से है लेकिन क्या करू टांग बीच में फ़साने की पुराने आदत से मजबूर हूँ और कहूंगा कि आपकी सारी समस्याओं को पढने के बाद निचोड़ यह है निकलता है कि आपके ग्रह अच्छे चल रहे है !:)

संगीता पुरी December 11, 2009 at 12:45 PM  

अलबेला जी .. नमसकार .. सबसे पहले तो आपको बता दूं कि इस दुनिया में संयोग और दुर्योग वैज्ञानिकों के शब्‍द हैं .. वास्‍तव में जो भी परिस्थितियों हमारे समक्ष उपस्थित होती हैं .. वो प्रकृति की सोंची समझी हुई चाल होती है .. अच्‍छी परिस्थितियों हो तो समझे आपके ग्रह अच्‍छे चल रहे हैं .. इसलिए सबकुछ आपके मनोनुकूल हो रहा है .. इसी तरह बुरी परिस्थितियां हों तो समझे आपके ग्रह बुरे चल रहे हैं .. सबों के जीवन में दोनो प्रकार का समय बारी बारी से आता है .. अच्‍छी परिस्थितियों में भी संयम से रहना और बुरी परिस्थितियों में धैर्य न खोना हमें सच्‍चा और सफल इंसान बनाता है .. आपके जीवन की 5 दिसम्‍बर 2009 के पूरे दिनभर की कहानी सुनकर मेरी समझ में तो ये बात आयी कि आसमान में 29 अक्‍तूबर 2009 से मंगल ग्रह की जो खास स्थिति चल रही है .. वह आपपर शुभ प्रभाव डाल रही है .. और इसी समय के बाद आप बार बार संयोगों का सुखद अहसास कर रहे हैं .. मंगल और चंद्र की युति से इस मंगल का शुभ प्रभाव 5 , 6 और 7 दिसम्‍बर को और बढ गया था .. जिसके बारे में मैने इस पोस्‍टमें लिखा भी था .. वैसे तो युवाओं पर इस ग्रह का अधिक प्रभाव पडता है .. पर पेशा के हिसाब से मनोरंजन कार्यों .. जो युवाओं को अधिक रिझाता है .. पर भी इसका अधिक प्रभाव पडता है .. इस हिसाब से वो आपके लिए सुखद हो गया .. पर किसी किसी के लिए वो कष्‍ट दायक भी होता है .. इसलिए ऐसे खास समयों में ग्रहों के प्रभाव से आवाजाही या अन्‍य जगहों पर कुछ अनि‍यमितताएं बढ जाती है .. ताकि कुछ इसका आनंद पा सकें .. तो कुछ को इसी देरी या जल्‍दी की वजह से कष्‍ट मिल सके .. मेरी बातों को समझने के लिए इतना काफी होना चाहिए !!

Unknown December 11, 2009 at 12:50 PM  

दृढ़ इच्छाशक्ति और शुभ संयोग के संमिश्रण से हो रहा है यह सब।

Mohammed Umar Kairanvi December 11, 2009 at 3:37 PM  

पोस्‍ट पढके तो लिखना चाह रहा था क्‍यामत करीब है, पर अवधिया जी का कमेंटस देख के उनसे सहमत होना पड रहा है, बधाई

रंजना December 11, 2009 at 4:25 PM  

Sangeeta ji se sahmat hun...bahut sundar vivechna kee unhone....

Anonymous December 11, 2009 at 5:29 PM  

हो जाता है ऐसा कभी कभी

बी एस पाबला

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" December 11, 2009 at 6:03 PM  

अल्बेला जी, साधारण शब्दों में तो हम इसे संयोग ही कह सकते हैं। संयोग जो कि हमारे इस सृष्टि-क्रम का ही एक अनिवार्य भाग है। जिनके घटित होने पर इन्सान की इच्छाओं या विचारों से इनका कोई लेन-देन नहीं होता। हमारे जीवन से जुडे सुख-दु:ख, हानि-लाभ के पीछे इस प्रकार के संयोग भी एक बडा कारण सिद्ध हो जाते है। लेकिन यदि गहराई से देखा जाए तो जीवन मे संयोग नाम की कोई चीज होती ही नहीं। हम अपने जीवन में नित्य प्रति जो कर्म करते हैं, उनमें से ही हमारा कोई कर्म ऎसे संयोगों के पीछे कारक का काम करता हैं। अवसर आने पर जिसका प्रभाव हमें यदाकदा इस प्रकार संयोग के माध्यम से दिखाई देने लगता है।
ज्योतिष के दृ्ष्टिकोण से यदि कहूँ तो आप पर इन दिनों वर्तमान में आपकी जन्मकुंडली के पंचमेश(lord of fifth house) का प्रभाव चल रहा हैं (प्रत्यन्तर्दशादि रूप में)। चाहें तो किसी से पता कर लें :)

दिनेशराय द्विवेदी December 11, 2009 at 8:07 PM  

जो कुछ है अच्छा ही है। आप ने भी चौड़े में सवाल पूछा है। दस ज्योतिषियों से पूछते तो जवाब दस तरह के मिलते। हर ज्योतिषी अलग ग्रह का हिसाब बता जाता। आप के लिए समय अच्छा है। यह बार बार नहीं आएगा। जो भी कमा सकते हों कमा लीजिए और जमा कीजिए संभावित बुरे वक्त के लिए। वह बिना कहे आता है और उसे कोई ग्रह नहीं रोक पाता।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' December 11, 2009 at 9:02 PM  

जिज्ञासा शान्त हो जाए तो हमें भी वताना जी!

प्रकाश गोविंद December 11, 2009 at 10:59 PM  

धन्य हुए हम यहाँ आकर
जय हो ...जय हो

Rakesh Singh - राकेश सिंह December 12, 2009 at 7:05 AM  

अब क्या कहें ... बस इतना ही कह सकता हूँ की .... आपकी बुलंदी बनी रहे ..

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