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Albela Khatri

आत्मघात कर रही हैं



( सूरत में घटी एक शर्मनाक घटना पर )


पत्तियाँ


गुलाब

की

कुछ

यूँ

झर

रही

हैं



मानो

कमसिन

किशोरियां

अपनी

लाज

बचाने

के

लिए

आत्मघात

कर

रही

हैं


-अलबेला खत्री

यह रचना लेखक द्वारा अपनी माँ-बहन
को पढ़ा दी गयी है ।

उन्हें कोई आपत्ति नहीं है





2 comments:

राजीव तनेजा January 3, 2010 at 8:57 AM  

मार्मिक...
आपकी साईट पर जा के खुद को वोटिंग के लिए रजिस्टर तो कर दिया था लेकिन अभी तक कनफर्मेशन का मेल नहीं आया है :-(

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' January 3, 2010 at 10:14 AM  

बढ़िया प्रतीक लेकर परिवेश का चित्रण किया है।
बधाई!

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