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Albela Khatri

ब्लोगवाणी के नाम हास्य कवि अलबेला खत्री का विनम्र पत्र - मुझे मेरी आज़ादी लौटा दो प्लीज़ !




सम्मान्य ब्लोगवाणी जी !

वन्देमातरम !


हालांकि मैं हिन्दी ब्लॉग को प्रचारने-प्रसारने के आपके अप्रतिम

योगदान के प्रति हृदय की गहराइयों से कृतज्ञ हूँ लेकिन आज मैं

आपका धन्यवाद करने नहीं बल्कि आपसे आप ही के विरुद्ध एक

शिकायत ले कर आया हूँ यदि आप को ठीक लगे तो ठीक, नहीं तो

कोई बात नहीं..........हम समझ लेंगे कि आदरणीय भारत सरकार

की भान्ति आप भी सुनने में ज़रा कम ही यकीं रखती हैं



मेरी दो कौड़ी की शिकायत कुछ यूँ है कि 31 दिसम्बर 2009 तक

मैं ख़ूब मज़े में थाआप द्वारा दी गई सुविधाओं का भरपूर लाभ

ले कर मैंने केवल 6 माह में ही बहुत से पाठक और अपनी पोस्टों

पर बहुत सी पसन्द जुगाड़ ली थीजब भी थोड़ी फुर्सत मिलती,

अपनी पसन्द वाले पात्र में ख़ुद ही पसन्द डालता रहता और

बढती संख्या गिन गिन कर ख़ुश होता रहता



बिलकुल अपना हाथ जगन्नाथ की तर्ज़ पर हिन्दी का विकास

घर बैठे बैठे कर रहा था और अपनी trp अथवा पसन्द बढ़ाने के

मामले में आत्म निर्भर थाजब भी मन में आता अपनी पोस्ट

को कभी स्वयं पसन्द कर लेता , कभी पत्नी से करा लेता, बेटा तो

करता ही था ...कहना मत किसी से एक चटका तो सुबह - सुबह

काम वाली बाई कमला भी लगा जाती थीलेकिन जब से ये

ससुरा नया साल शुरू हुआ है, कुछ करते नहीं बनताउस ज़माने

में जहाँ मेरी एक-एक पोस्ट पर 26-26 पसन्दें मुस्कुराकर मुझे

महान और लोकप्रिय ब्लोगर प्रमाणित करती थीं, वहीँ अब मुँह

छिपाते फिरने की नौबत गई हैक्योंकि एकाध पसन्द भी

मयस्सर नहीं है



" पराधीन को तो सपने में भी सुख नहीं मिलता " फिर आपने

इस आज़ाद देश के आज़ाद ब्लोगर को पराधीनता की ज़ंजीरों में

क्यों जकड दिया महाराज ?



क्या इसी काले दिन को देखने के लिए महात्मा गांधी ने अपने

अनुयाइयों को अंग्रेजों से पिटवाया था ? क्या आज़ादी की

सालगिरह हम 15 अगस्त को मनाते हैं जिसमें एक लेखक

अपनी रचना को स्वयं पसन्द तक नहीं कर सकता ? कवि को

अपनी ही कविता पसन्द करने के लिए अपना mail id और paas

word भरना पड़ता है ?



कितने सुहाने थे वे दिन ....आहा ! जब भी जी करता, चटका लगा

देते और पसन्द संख्या बढ़ा लेते थे . मज़े की बात ये थी कि पसन्द

के साथ साथ पाठक संख्या अपने आप बढती रहती थी बिना

किसी के पढ़े



लेकिन अब तो दूसरों के मोहताज़ हो गये हैं भाई ! बैठे हैं इन्तेज़ार

में कि कोई आएगा और हमें पसन्द की घोषणा करेगा ...लेकिन

कोई नहीं आता.............आएगा भी कहाँ से ? यहाँ तो सारे के सारे

ब्लोगर हैं आम पाठक तो हैं नहीं........अब ब्लोगर अपनी पसन्द

का जुगाड़ करे या दूसरे की ? सारा मज़ा ही किरकिरा हो गया



वैसे एक बात समझ में नहीं आई........मैं तो अपनी पसन्द इस

तरह बढ़ा कर महान बनने की कोशिश करता था इस लिए जब

भी मूड में आता अपनी पोस्ट को सबसे टॉप पर दिखा देता था

लेकिन बाकी लोग तो शायद ऐसा नहीं करते होंगे...तब इनकी

पोस्ट पर भी आजकल पसन्द वाली गलियाँ सूनी सूनी क्यों हैं ?



क्या ये लोग भी ?


ना ना ....ऐसा सोचना भी पाप है...ये लोग भला ऐसा क्यों करेंगे ?


छि : चोरों को सारे नज़र आते हैं चोर ! i am so sorry sir !


लेकिन हे ब्लोगवाणी महाराज !

दया करो !

मुझे मेरी आज़ादी वापिस दे दो............देखो ..इतनी बढ़िया

रचनाएं लिख कर भी "खाली खाली तम्बू है, खाली खाली डेरा है ,

बिना चिड़िया का बसेरा है"


प्लीज़ देदो ना वही आज़ादी,,,,,मेरे हाथों में कब से गुदगुदी हो

रही है ख़ुद को पसन्द करने की .........



अगर आप ऐसी अनुकम्पा नहीं करेंगे / करेंगी तो

मजबूरन हम आपस में लड़ने -झगड़ने वाले तमाम

ब्लोगर्स को झख मार कर मित्रवत रहना होगा,

दोस्ती कायम करनी होगी और आपसी मतभेद

व मनभेद की कपालकिरिया करके इक दूजे को पसन्द

करना होगा ।



हैम्पटपाट,
हैम्पटपाट मैं तुझे चाटूं, तू मुझे चाट !

ऐसा वातावरण बनाना पड़ा, तो मूड की वाट लग

जायेगी..........दुनिया भर के दंद-फंद से परेशान

हम लोग यहाँ ब्लोगिंग करके भी अपनी भड़ास नहीं

निकाल पाए तो कहाँ जायेंगे झगड़ा करने ?


कृपया हमारी मज़बूरी को देखें, हमारी पीड़ा देखें और

पसन्द प्राप्ति का हमारा कीड़ा देखें और देखें कि कैसे

जल बिन मछली, दारू बिना बेवड़ा, सत्ता बिना नेता

और चाँद बिना चकोर की तरह मुझ जैसे प्रशंसालोलुप

तुक्कड़ कवि का मन आपके राज में पसन्द के लिए

तड़पता है


कृपा करो दया निधान !



धन्यवाद !

thank you !

बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला

horn please

मेरा भारत महान वगैरह वगैरह .........

####

लेखक द्वारा यह आलेख अपनी माँ,बहन,पत्नी और दो पड़ोसनों

को पढवा दिया गया है

उन्हें किसी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं है


- अलबेला खत्री





21 comments:

संगीता पुरी January 4, 2010 at 12:42 AM  

आज मैने पसंद बढा दिया खुश हो जाइए .. ब्‍लॉगवाणी ने जो किया वो उचित लगता है !!

राज भाटिय़ा January 4, 2010 at 1:44 AM  

अलबेला जी ब्लांगबाणी ने सही किया,आप का व्यांग पसंद आया, लेकिन हमारे जेसे मोला मस्त भी तो है, जिन्होने यह अपने किसी भी ब्लांग पर लगाया ही नही, पसंद ना पसंद का सवाल ही नही,टी आर पी का फ़िक्र ही नही पाला

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" January 4, 2010 at 2:01 AM  

जरा हमारी ओर से भी शिकायत नोट करा दीजिएगा :)

परमजीत सिहँ बाली January 4, 2010 at 2:26 AM  

अपनी पोस्ट तो वैसे ही कोई पसंद नही करता सो चिंता की कोई बात नही.....:))

Udan Tashtari January 4, 2010 at 6:08 AM  

हा हा!!



’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

-सादर,
समीर लाल ’समीर’

अविनाश वाचस्पति January 4, 2010 at 6:33 AM  

वो आजादी नहीं
उच्‍श्रृंखलता थी
उसका जाना दूर
अच्‍छा लगा हजूर।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून January 4, 2010 at 7:15 AM  

सही बात है..
मैं भी अब अपने ही नाम पर पसंद का चटका लगाने से एकदम डर गया हूं जी, क्योंकि मेरा इमेल,पासवर्ड,नाम,पता,फोटो..सब कुछ पकड़ा जाएगा तो मैं क्या करूंगा...कहीं कल को तहक़ीकात करती CBI भी आ धमकी तो मैं कहां मुंह छुपाने जाउंगा...:)

Randhir Singh Suman January 4, 2010 at 7:17 AM  

nice

ब्लॉ.ललित शर्मा January 4, 2010 at 7:26 AM  

हार्न प्लीज! जगह मिलने पर साईड दिया जाएगा।:-)

जय हो ब्लागवानी की दर्द सच्चा है।

Anonymous January 4, 2010 at 7:33 AM  

हा हा हा
पानी में गिरने वाले पूछ रहे हैं मुझे धक्का किसने दिया था?

बेहतरीन व्यंग्य

हमने तो न ब्लोगवाणी पसंद अपने ब्लॉगों पर लगाया और ही किसी से अपील की। खुद पसंद करने का सवाल ही नहीं

बी एस पाबला

निर्मला कपिला January 4, 2010 at 10:28 AM  

वाह सही है धन्यवाद्

Mohammed Umar Kairanvi January 4, 2010 at 12:08 PM  

लाजवाब, शानदार, बेहतरीन और कम शब्‍दों में कहूं तो अधिकतर ब्‍लागर्स के दिल दिमाग की बात जिसको आपने अपने शब्‍दों में पिरो दिया, धन्‍यवाद, एम मशवरा है जिसे बिल्‍कुल नहीं मानना कि हो सके तो खाला को भी दिखा लिया करो,

Unknown January 4, 2010 at 1:31 PM  

खत्री जी, माफी चाहता हूँ कि कभी मैंने ही ब्लॉगवाणी को ऐसा करने की सलाह दी थी अपने "ब्लोगवाणी से अनुरोध" पोस्ट में। अब मुझे क्या पता कि इससे लोगों का दिल दुखेगा!

shikha varshney January 4, 2010 at 5:39 PM  

hee hee hee ham jaison ko to koi farak nahi padta ..vese bhi 5-6 se jyada chatke nahi hote kabhi :)

अजय कुमार झा January 4, 2010 at 6:19 PM  

हाय राम एक फ़टके में कित्तों की पोल खोल दी आपने ....जाईये आप भी न बडे वो हैं .....अरे वो हैं मतलब ...अलबेले हैं ॥

Anonymous January 4, 2010 at 7:16 PM  

कमाल है।मेल पर मेल और पोस्ट पर पोस्ट लिख कर ब्लॉगवाणी पसंद पर चटका लगाने को कहने वाले अब कह रहे कि
वो आजादी नहीं
उच्‍श्रृंखलता थी
उसका जाना दूर
अच्‍छा लगा

क्या दोगलापन है?और दूसरों को बाज़ीगर कह रहे!

विवेक रस्तोगी January 4, 2010 at 8:36 PM  

अरे एक ही बाल पर सारे विकेट ले लिये, मतलब सारे ब्लॉगर्स के मन की बात कह दी !! :)

राजीव तनेजा January 5, 2010 at 1:39 AM  

बहुत ही बढिया व्यंग्य...एक ही फटके में कईयों को आईना दिखाने का काम किया है आपने

अविनाश वाचस्पति January 5, 2010 at 6:31 AM  

@ annonymous बनाम बेनामी जी

मुझे सब स्‍वीकार है
कब किया इंकार है
सच्‍चाई भी करता स्‍वीकार हूं
और जो सच है
सदा सच रहेगा
जो कहता हूं
स्‍वीकारता हूं
गलती मानता हूं
पर आप क्‍यों ओढ़े नकाब है
ऐसे कैसे आप सुर्खाब हैं
जो कहें खुलकर कहें
मेरी तरह सामने रहें
अच्‍छा लगता है
सबको जचता है
पर पता नहीं मुझे
आपको सामने आने में
डर क्‍यों लगता है ?

डॉ टी एस दराल January 5, 2010 at 7:14 PM  

हा हा हा !बढ़िया व्यंग है।
वैसे ये आज़ादी तो सचमुच छिन गयी।

शरद कोकास January 6, 2010 at 7:15 PM  

नये साल की पसन्दीदा शुभकामनायें

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