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Albela Khatri

अपनों के ख़ून का चनाब मेरे देश में.......



आदमी की ज़िन्दगी का

हाल काहे पूछते हो,

हो चुका है ख़ाना ही ख़राब मेरे देश में


भेडि़ए-सियार-गिद्ध-

चील-कौव्वे घूमते हैं

आदमी का ओढ़ के नक़ाब मेरे देश में


धरमों के नाम पे

बहाते हैं ये लोग देखो

अपनों के ख़ून का चनाब मेरे देश में


लीडरों को गाली देना

छोड़ो 'अलबेला' आज

शायर भी पीते हैं शराब मेरे देश में


www.albelakhatri.com


3 comments:

राजीव तनेजा January 21, 2010 at 11:24 PM  

बहुत ही बढ़िया सामयिक रचना

राज भाटिय़ा January 22, 2010 at 12:30 AM  

बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद

Udan Tashtari January 22, 2010 at 1:10 AM  

सच कहा इस रचना के माध्यम से.

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