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Albela Khatri

आनन्द दे रहा है मयंक का बुढापा , अंगूर के सारे मज़े किशमिश में आ गये हैं




अब
कौन कितना और क्या लिखता और सोचता है यह तो मैं

आंकलित नहीं कर सकता , लेकिन एक वर्ष हो गया मुझे भी

ब्लोगिंग में.........इसलिए मैं एक बात तो अनुभव के आधार

पर ज़रूर कह सकता हूँ कि यदि कोई ब्लोगर सतत सेवा कर

रहा है और केवल सेवा कर रहा है बल्कि मज़े ले ले कर सेवा

कर रहा है तो वो है आदरणीय रूपचंद्र शास्त्री मयंक..............



इस उम्र में उनकी ऊर्जा प्रणम्य है

इस उम्र में उनकी सृजनशीलता अनुकरणीय है


इस उम्र में भी रोज़ नई ?

एक नहीं कई कई !

कविताओं के इस पवित्र स्रोत को मेरा नमन


सभी को अक्षय तृतीया की बधाई

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11 comments:

Anonymous May 15, 2010 at 9:51 AM  

मै शत-प्रतिशत आपसे सहमत हूँ.

कविताओं के इस पवित्र स्रोत को मेरा नमन ।

राजीव तनेजा May 15, 2010 at 10:22 AM  

रूपचंद शास्त्री जी की मेहनत और जज्बे को सलाम

Kumar Jaljala May 15, 2010 at 10:36 AM  

रूपचंद शास्त्री साहब को बहुत-बहुत मुबारक. लेकिन इधर जिन लोगों ने लोगों का मजा खराब करने का काम किया है यानी अनुपशुक्ला और ज्ञानदद उनका भी तो कुछ करो भाई. इनको निकाल बाहर करो
वैसे मेरी कल अनुप शुक्ला से बात हुई थी तब उन्होंने कहा कि वे ब्लागिंग की दुनिया को छोड़कर जा रहे हैं. अच्छा है गंदगी जितनी जल्दी समाप्त हो जाए.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' May 15, 2010 at 10:37 AM  

अब तो यही कह सकता हूँ कि
बन्दर चाहे कितना भी बूढ़ा हो जाये,
कुलाँचे भरना नही भूलता!

नीरज मुसाफ़िर May 15, 2010 at 10:53 AM  

क्या बात कही है मयंज साहब ने।
कुलांचे मारना मत भूलो। मजे लो।

दिलीप May 15, 2010 at 11:21 AM  

Appko bhi badhayi...aur mayank ji ke jasbe ko salaam...

शिवम् मिश्रा May 15, 2010 at 12:39 PM  

बहुत खूब लगे रहिये आप भी और शास्त्री जी भी !!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" May 15, 2010 at 2:42 PM  

पते की बात कही खत्री साहब आपने ! मैंने बहुत पहले भी कहीं पर एक टिपण्णी में लिखा था कि शुरू में कई बार मन में आया कि छोड़ दूं यह सब ब्लोगिंग-स्लओगिंग मगर फिर शास्त्री जी ही मेरे प्रेरणा स्रोत बने !

Udan Tashtari May 15, 2010 at 5:49 PM  

आपको बधाई और मयंक जी को नमन!

M VERMA May 15, 2010 at 8:54 PM  

मजा लेकर किया काम सुन्दर परिणाम देता है. शास्त्री जी को सादर नमन

rajkumar bhakkar May 16, 2010 at 3:30 AM  

sahi kaha khatri ji !

mayank ji ki kavitaayen adbhut hain.

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