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Albela Khatri

कवियों ! अब तुम कविताओं में सिर्फ़ देश की बात करो




बहुत हो चुकी नारी की छीछालेदार इन मंचों पर

बहुत हो चुका घरवाली का कारोबार इन मंचों पर


बहुत हो चुके सड़े चुटकुले बार-बार इन मंचों पर

बहुत हो चुके टुच्चे टोटके लगातार इन मंचों पर


बहुत हो चुकी गीत ग़ज़ल छंदों की हार इन मंचों पर

बहुत हो चुका चीर काव्य का तार तार इन मंचों पर


बहुत हो चुका कविताई से व्यभिचार इन मंचों पर

बहुत हो चुकी सरस्वती माँ शर्मसार इन मंचों पर


अब मंचों पर

राम के मर्यादित परिवेश की बात करो


महावीर की

अहिंसा के शीतल सन्देश की बात करो


जन जन में

जो उबल रहा है उस आवेश की बात करो


कवियों ! अब

तुम कविताओं में सिर्फ़ देश की बात करो


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7 comments:

दीपक 'मशाल' May 26, 2010 at 6:14 PM  

अच्छा आह्वाहन अलबेला सर..

kunwarji's May 26, 2010 at 6:20 PM  

"बहुत हो चुका कविताई से व्यभिचार इन मंचों पर
बहुत हो चुकी सरस्वती माँ शर्मसार इन मंचों पर"

हिला दिया जी आपने....

कुंवर जी,

संगीता स्वरुप ( गीत ) May 26, 2010 at 6:20 PM  

बहुत अच्छा विचार....

DR. ANWER JAMAL May 26, 2010 at 6:53 PM  

मुझे आपके चेहरे पर जो आभा दिखती थी उसे मैं आपके शब्दों में भी अब महसूस कर रहा हूं ।
हम कुछ चाहे न कर सकें लेकिन सही ग़लत की तमीज़ तो अपने बच्चों और आने वाली नस्ल को सही ढंग से सिखानी ही होगी।
निठारी कांड पर ‘डी 50‘ के नाम से एक टेली फ़िल्म बनाई गई थी। उसका लेखन मैंने ही किया था, तब मैंने फ़िल्म के नाम पर सबकुछ कर गुज़रने वालों को पहली बार क़रीब से देखा था। आप तो ख़ैर रोज़ देखते हैं । आज की पीढ़ी इसी मृगमरीचिका के पीछे दौड़ रही है। आपका लेखन सशक्त है और बामक़सद भी। मालिक अपने अखण्ड आनन्द के अमर लोक की राह आपको और मुझे दिखाए । आमीन
http://blogvani.com/blogs/blog/15882

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' May 26, 2010 at 8:50 PM  

बहुत बढ़िया साहिब!
हम तो चले भानजे की शादी में!
3 दिन के बाद भेंट होगी!

हर्षिता May 26, 2010 at 11:52 PM  

बहुत खूब अलबेला जी।

संजय भास्‍कर June 3, 2010 at 4:52 AM  

बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

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