मेरी एक साधारण सी कविता जो कि संयोग से बहुत प्रसिद्ध हो गयी है आजकल कई लोग उसे अपने काम में ले रहे हैं . कितने ही पोस्टर में वह छप चुकी है और गाहे ब गाहे कुछ लोग मंच पर भी सुना देते हैं लेकिन हद तो तब हो जाती है जब मेरी कविता को संत पुरुषों के सन्देश में ढाल कर उन्हीं की कविता बता दिया जाता है
ऐसा ही एक उदाहरण आप देख रहे हैं कि भास्कर अख़बार में किसी पाठक ने तरुण सागर जी कद नाम से छपवा रखी है ...सुना तो मैंने यहाँ तक है कि यह कविता तरुण सागर जी के कड़वे वचन नामक पुस्तक में भी प्रकाशित हो चुकी है
अब क्या करूँ ? धन्यवाद दूं इस चोरी के लिए या विरोध करूँ ?
जय हिन्द !
5 comments:
बिलकुल विरोध दर्ज कराना चाहिए!
आप उन्हें सूचित अवश्य करें।
होना तो विरोध ही चाहिए ...
कहाँ कहाँ पकड़ेंगे यहाँ छिछोरो की नगरी है कुछ तो ध्यान में आ जाते है और न जाने कितनी बिना ध्यान की अब भी पड़ी होंगी ....
had hai is chori ki..
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