tag:blogger.com,1999:blog-303919957706694657.post1154653876304038596..comments2024-03-02T14:16:26.676+05:30Comments on Albelakhatri.com: विदेशों में हिन्दी लेखन दो कौड़ी का....भाग 4Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09116344520105703759noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-303919957706694657.post-24704686089139411572014-02-19T18:46:33.432+05:302014-02-19T18:46:33.432+05:30जहां किसी और भाषा की पौध लगी नहीं..
वहाँ आपका '...जहां किसी और भाषा की पौध लगी नहीं..<br />वहाँ आपका 'सुगन्धित महँगा' गुलाब नहीं..<br />करते हैं हम शुद्ध हिंदी में ही बातें..<br />जो भी बच्चे हमारे पास हैं आते..Raghunath Singh Ranawathttps://www.blogger.com/profile/01549510043464716806noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-303919957706694657.post-67956033729427364592009-06-25T22:00:40.439+05:302009-06-25T22:00:40.439+05:30ये तय कौन करेगा कि यह लेखन हीरा है या कोयला? सबकी ...ये तय कौन करेगा कि यह लेखन हीरा है या कोयला? सबकी अपनी अपनी पसंद. आखिर हीरा बःई तो कोयले का बालक ही है.:) <br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttp://taau.taau.innoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-303919957706694657.post-30243896137985700082009-06-25T21:41:58.905+05:302009-06-25T21:41:58.905+05:30WAAAAAAAAAAAAH WAAAAAAAAAAAAAAAAH!!!
Kyaa baat hai...WAAAAAAAAAAAAH WAAAAAAAAAAAAAAAAH!!!<br />Kyaa baat hai..<br />Jaise padi laat hai!!!!<br /><br />Meri "do kaudi" aapake saamane prastutu hai..<br /><br /><br />मैं भी विदेश में हूँ... और अपने सुख के लिए ही लिखता हूँ...<br />जैसा की पूजनीय तुलसीदास जी ने भी लिखा था..."स्वान्तः सुखाय"!!<br />उन्हें भी 'पंडितों' ने कहा था... की क्या दो कौड़ी का लिखते हो??<br /><br />मेरी कोई औकात ही नहीं है।<br />मैंने तो कभी अपने आप को 'स्थापित' करने का प्रयास नहीं किया।<br />और यदि कोई विदेश में रहने वाला भारतीय करता भी है हिन्दी के माध्यम से... तो अनुचित नहीं है।<br />यहाँ रह कर हिन्दी की जोत जलाए रखना बहुत टेढ़ा कार्य है॥<br /><br />हिन्दी के पाठक और प्रेमी यहाँ ढूंढे से भी नहीं मिलते हैं।<br />हाँ 'बॉलीवुड' का कार्यक्रम है तो देखिये क्या भीड़ उमड़ती है... किंतु वो तो 'हिन्दी' के लिए नहीं है!!<br />हम सब जानते हैं उस भीड़ का कारण।<br />जहाँ हर व्यक्ति इंग्लिश में बोलता हो... वहाँ हिन्दी की ध्वजा फहराना कैसे सरल हो??<br /><br />मेरी कुछ दो कौड़ी की पंक्तियाँ समर्पित हैं उन 'पुरोधा, महारथी, महागुरु वरिष्ठों' को...<br /><br />ये जीवन है दो कौड़ी का...<br />लेखन है मन मौजी का...<br />हम दूर रहे पर तोड़ी ना..<br />हिंदी-डोर सही भले रस्सी ना..<br /><br />लगे रहे हिंदी के चिपके..<br />भले आम मिले हो पिचके..<br />माना तुम गूदा हम छिलके..<br />किंतु परदेश में हिंदी फैलाते...<br />संकट में भी हिंदी दीप जलाते..<br />भले पड़ी हो हिंगलिश की लातें..<br />करते हैं हम शुद्ध हिंदी में ही बातें..<br />जो भी बच्चे हमारे पास हैं आते..<br />हम भारत से अच्छी हिंदी उन्हें सिखाते..<br /><br />हिंदी का है हुआ कबाड़ा..<br />आंग्ल भाषा ने उसे पछाड़ा..<br />सबने पढ़ा उल्टा पहाड़ा..<br />कहा गया है आपका अखाड़ा??<br /><br />आप ज्ञानी पुरोधा, मठाधीश हैं...<br />भारत में हिंदी बचाने में विफल हैं..<br /><br />अरे जो हिंदी फिल्मों का ही खाते हैं..<br />'इंटर-वियूह' में इंग्लिश बक जाते हैं..<br />आप सब मुहँ देखते रह जाते हैं..<br />फिर भी उसे शान समझ कर आते है..<br /><br />अब हिंदी बोलना किसकी शान है?<br />और हिंदी में बोलना अपमान है!!!<br /><br />बच्चा बच्चा इंग्लिश ही बोले...<br />फिर देखो माँ बाप गर्व से फूले..<br />और चले गए सावन के झूले...<br />हम सब भी अपनी भाषा भूले...<br /><br />अरे हम तो विदेशी दो कौड़ी के सही..<br />पर हमने हिंदी भाषा है बचा के रखी..<br />जहां किसी और भाषा की पौध लगी नहीं..<br />वहाँ आपका 'सुगन्धित महँगा' गुलाब नहीं..<br />हमारा दो कौड़ी का पेड़ बबूल ही सही....<br /><br />~जयंत चौधरी - दो कौड़ी..<br />(मैंने जानबूझकर इसे दो कौड़ी जैसा ही लिखा है... पाठकों, मैं आशा करता हूँ आप क्षमा करेंगे..)जयंत - समर शेषhttps://www.blogger.com/profile/13334653461188965082noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-303919957706694657.post-91193417659588519592009-06-25T21:40:42.016+05:302009-06-25T21:40:42.016+05:30यदि इस कविता का मूल्य दो कौड़ी है, तो कौड़ी का एक्...यदि इस कविता का मूल्य दो कौड़ी है, तो कौड़ी का एक्सेंज रेट 1 करोड़ रुपए के बराबर समझना चाहिए!बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttps://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-303919957706694657.post-30135644145674066222009-06-25T21:19:27.349+05:302009-06-25T21:19:27.349+05:30हमारे गुरु जी राकेश खण्डेलवाल जी वाशिंग्टन से लिखत...हमारे गुरु जी राकेश खण्डेलवाल जी वाशिंग्टन से लिखते है, जरा उनको भी इन्हें पढ़वा ही दें लगे हाथ:<br /><br />http://geetkarkeekalam.blogspot.com/2009/06/blog-post.htmlUdan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-303919957706694657.post-32212483703114186062009-06-25T19:53:41.293+05:302009-06-25T19:53:41.293+05:30सब स्थान पर श्रेष्ठ और कचरा लेखन होता है। अब यह तो...सब स्थान पर श्रेष्ठ और कचरा लेखन होता है। अब यह तो पढ़ने वाले पर है कि वह हीरा चुनता है कि कोयला।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-303919957706694657.post-90037269545707030742009-06-25T19:44:38.875+05:302009-06-25T19:44:38.875+05:30पंक्तियों में अच्छा सामन्जस्यपंक्तियों में अच्छा सामन्जस्यAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/03356533737754609259noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-303919957706694657.post-14339035891860105362009-06-25T19:42:37.378+05:302009-06-25T19:42:37.378+05:30पहले तो लेखन को देश - विदेश में बाँटना ही गलत है ...पहले तो लेखन को देश - विदेश में बाँटना ही गलत है . ख़राब देश में भी है , अच्छे विदेश में भी है .और आपने भी छक्का मार दिया .अरुण पालीवाल ,राजसमन्दnoreply@blogger.com