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Albela Khatri

देते हैं यों ताने लोग

बुरा-भला कह रहे शमा को कुछ पागल परवाने लोग

बन्द किवाड़ों को कर बैठे, घर घुस कर मर्दाने लोग



पानी बिकने लगा यहाँ पर,कसर हवा की बाकी है

भटक-भटक कर ढूंढ रहे हैं गेहूं के दो दाने लोग



और पिलाओ दूध साँप को , डसने पर क्यों रोते हो?

कहना माना नहीं हमारा , देते हैं यों ताने लोग



कैसा है ये चलन वक़्त का ,समझ नहीं कुछ आता है

अन्धों में राजा बन बैठे, आज यहाँ कुछ काने लोग

2 comments:

निर्मला कपिला June 3, 2009 at 10:13 AM  

पानी बिकने लगा यहाँ पर कसर् हवा की बाकी ह
भटक भटक कर ढूँढ रहेहैं गेहूँ के दो दाने लोग
बहुत बडिया और सटीक अभिव्यक्ति है बधाई

संजय बेंगाणी June 3, 2009 at 4:21 PM  

बात हवा की हो तो ऑक्सिजन पार्लर खूल गए है.

बाकी रचना जोरदार है.

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