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Albela Khatri

मिर्चों के पौधे बो रहा है यार किसलिए ?

जगने के वक़्त सो रहा है यार किसलिए ?

सुनहरी मौका खो रहा है यार किसलिए ?

ये बाग़ है बादाम का , तू आम तो उगा

मिर्चों के पौधे बो रहा है यार किसलिए ?

14 comments:

ओम आर्य September 2, 2009 at 10:48 AM  

बहुत ही सुन्दर बात लगी .......अलबेला भाई

पी.सी.गोदियाल "परचेत" September 2, 2009 at 10:56 AM  

सुन्दर भाव उडेले थे आपने पर १०-१२ लाइन की कविता नुमा रचना बन जाती तो क्या कहने !

शिवम् मिश्रा September 2, 2009 at 10:59 AM  

कुछ लोगो की आदत होती है माहौल को बिगाड़ने की .....
एसे लोग मिर्च ही बोयेगे भाई जी बादाम नहीं |

Shruti September 2, 2009 at 11:01 AM  

मिर्चों के पौधे बो रहा है यार किसलिए ?

Genuine question hai ye to...

-Sheena

vandana gupta September 2, 2009 at 11:10 AM  

bahut hi gahre bhavon se paripoorna rachna.

Arshia Ali September 2, 2009 at 12:12 PM  

Bahut khoob.
( Treasurer-S. T. )

Murari Pareek September 2, 2009 at 1:50 PM  

albeli baat kah gaye albelaa ji!!

Chandan Kumar Jha September 2, 2009 at 5:19 PM  

वाह !!!! बेहतरीन.

ताऊ रामपुरिया September 2, 2009 at 5:33 PM  

भाई मिर्च सौ रुपये किलो हो गई है? बुराई क्या है?

रामराम.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" September 2, 2009 at 7:23 PM  

कुछ लोगों की ये आदत होती है, जो कि मिर्चें बोकर बादाम पाना चाहते हैं!!!
बहुत बढिया!!

Dr. Sudha Om Dhingra September 2, 2009 at 7:32 PM  

बहुत बढ़िया.

राजीव तनेजा September 2, 2009 at 10:14 PM  

कुछ लोगों की आदत होती है माहौल में कड़वाहट खोलने की...

बढिया कटाक्ष

अर्चना तिवारी September 2, 2009 at 10:58 PM  

waah bahut khoob...

Sudhir (सुधीर) September 3, 2009 at 7:07 AM  

आपकी अभिव्यक्ति की एक और बेजोड़ मिसाल ....साधू!

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