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Albela Khatri

डसने पर क्यों रोते हो?

बुरा-भला कह रहे शमा को कुछ पागल परवाने लोग


बन्द किवाड़ों को कर बैठे, घर घुस कर मर्दाने लोग




पानी बिकने लगा यहाँ पर,कसर हवा की बाकी है


भटक-भटक कर ढूंढ रहे हैं गेहूं के दो दाने लोग




और पिलाओ दूध साँप को , डसने पर क्यों रोते हो?


कहना माना नहीं हमारा , देते हैं यों ताने लोग




कैसा है ये चलन वक़्त का ,समझ नहीं कुछ आता है


अन्धों में राजा बन बैठे, आज यहाँ कुछ काने लोग

15 comments:

निर्मला कपिला October 27, 2009 at 10:29 AM  

वाह बहुत सुन्दर शुभकामनायें

पी.सी.गोदियाल "परचेत" October 27, 2009 at 10:38 AM  

बहुत सुन्दर !
अन्धो में राजा बन बैठे, सबके सब काने लोग !

Unknown October 27, 2009 at 11:15 AM  

जिस देश में पानी पिलाना पुण्य का काम समझा जाता था वहीं आज पानी बिक रहा है। सच है हवा बिकने की ही तो कसर बाकी है।

शिवम् मिश्रा October 27, 2009 at 11:32 AM  

"बुरा-भला कह रहे शमा को कुछ पागल परवाने लोग


बन्द किवाड़ों को कर बैठे, घर घुस कर मर्दाने लोग




पानी बिकने लगा यहाँ पर,कसर हवा की बाकी है


भटक-भटक कर ढूंढ रहे हैं गेहूं के दो दाने लोग




और पिलाओ दूध साँप को , डसने पर क्यों रोते हो?


कहना माना नहीं हमारा , देते हैं यों ताने लोग




कैसा है ये चलन वक़्त का ,समझ नहीं कुछ आता है


अन्धों में राजा बन बैठे, आज यहाँ कुछ काने लोग"




क्या कहेने गुरु बहुत बढ़िया !!
वैसे पहली ही लाइन में मेरा जिक्र करने का शुक्रिया | :)

IMAGE PHOTOGRAPHY October 27, 2009 at 11:48 AM  

बहुत खुब कहा आपने

परमजीत सिहँ बाली October 27, 2009 at 2:57 PM  

बहुत खूब!!

M VERMA October 27, 2009 at 5:18 PM  

बहुत सुन्दर भाव
मौजू

कविता रावत October 27, 2009 at 6:07 PM  

Andhe rajaon ki bharmaar hai hamare desh mein. Bahut achhi lagi.
Badhi sweekaren.

कविता रावत October 27, 2009 at 6:10 PM  

Andhon mein Raja bane hain kuch log. Bahut achha kaha aapne. Yahi to dikhata hai aaj.
Badhai

Dr. Sudha Om Dhingra October 27, 2009 at 6:42 PM  

बहुत खूब ...

मनोज कुमार October 27, 2009 at 6:58 PM  

पढ़कर मन गदगद हो गया।

हरकीरत ' हीर' October 27, 2009 at 7:04 PM  

हसरतें थीं कल बिहारी सी हमारी
आज दिल की आरजू मीर सी क्यों है

वाह ...इस 'बिहारी' ने तो चार चाँद लगा दिए ..... !!

उनके आते ही सुकूं था लौट आता
सामने वो हैं तो शब शमशीर सी क्यूँ है .....

सुभानाल्लाह .....क्या बात है .....!!

और ये भी लाजवाब....

हमपे लेकिन अब तलक जंजीर सी क्यूँ है ....

अलबेला जी इधर कई दिनों से आना न हो सका तो आप गज़ब दते रहे .....???

Amit K Sagar October 27, 2009 at 9:33 PM  

बहुत-बहुत-बहुत अच्छी रचना. बधाई.

जारी रहें.
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दोस्ती पर उठे हैं कई सवाल- क्या आप किसी के दोस्त नहीं? पधारें- (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]

शोभना चौरे October 28, 2009 at 12:39 AM  

bahut achhi gjal

अजय कुमार झा October 28, 2009 at 8:22 AM  

वाह अलबेला भाई...
आप तो बिल्कुल रवानी में हो ..एक से एक उम्दा और बढिया ..

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