ब्लोगवाणी का यों गुमसुम और निष्क्रिय हो जाना हम सभी को
बहुत अखर रहा है । उन्हें भी जो इसका सदुपयोग कर रहे थे
और उन्हें भी जो दुरूपयोग कर रहे थे, साथ ही मुझ जैसे नये
रंगरूटों को भी जो ब्लोगवाणी का केवल उपयोग कर रहे थे ।
हालांकि वैयक्तिक और वैचारिक स्तर पर न तो ब्लोगवाणी के
बारे में मुझे कुछ ख़ास जानकारी है और न ही उसके संचालकों से
परिचय - लेकिन आज मैंने ब्लोगवाणी की खामोशी सुनी
.........जी हाँ ! खामोशियाँ भी बोलती हैं । मैंने सुनी हैं वो आपको
बताता हूँ । आपने भी सुनी होगी, आप अपने अनुभव बताइये
..........हो सकता है कोई सार्थक परिणाम निकल आये।
मैंने सुना :
# अत्यधिक हस्तक्षेप किसी भी व्यवस्था को चौपट कर देता है
# निर्लेप और निर्दोष अथवा निष्पक्ष रहना बड़ा मुश्किल है,
परन्तु निर्विकार रहना सबसे मुश्किल है जिसका अभाव ही
किसी तंत्र को बन्द करता है । यदि गाड़ी का कोई पुर्जा ख़राब
नहीं है, ईधन की कमी नहीं है और चालक भी कुशल है तो
उस गाड़ी के असमय बन्द होने का कोई खतरा नहीं है। गाड़ी
अगर चलते चलते स्वयं बन्द हो गई है तो इसका सीधा अर्थ है
कि कहीं न कहीं कोई न कोई कमी ज़रूर रही है ।
# मुफ़्त के माल का कभी सम्मान नहीं होता ।
# दुधारू पशु केवल दूध ही नहीं देते, पोटा भी करते हैं, इसलिए
ये उम्मीद नहीं करना चाहिए कि सब अच्छा ही अच्छा होगा ।
# ब्लोगवाणी बन्द नहीं हुई है, छुट्टी पर है । छुट्टियाँ पूर्ण होने
पर पुनः आगमन होगा और पहले से भी अधिक सुन्दर,
व्यवस्थित व निष्पक्षता का प्रतीक बन कर होगा ।
# सबको मिल कर प्रार्थना करनी चाहिए ...........यदि रूठी है
तो मनाने के लिए, बीमार है तो स्वस्थ होने के लिए और अगर
महानिद्रा में चली गई है तो आत्मिक शान्ति के लिए.......
जय हिन्द !
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आपने सुना .....क्या कहती है ब्लोगवाणी की खामोशी ?
Labels: खामोश , ग़ज़ल , प्रतीक्षा , ब्लोगवाणी , हिन्दी काव्य , हिन्दी ब्लोगर
वे तुम्हारी पकड़ में नहीं आएँगी
जब तुम बाहरी चीजों को देखोगे और उन्हें पाना व रखना चाहोगे,
वे तुम्हारी पकड़ में नहीं आएँगी,
दूर भागेंगी
मगर जिस वक्त तुम उनसे मुँह फेर लोगे
और ज्योतिस्वरूप अपनी अन्तरात्मा के रूबरू होंगे,
उसी क्षण अनुकूल दिशाएँ तुम्हें तलाश करने लगेंगी -
यही नियम है ।
- स्वामी रामतीर्थ
Labels: अन्तरात्मा स्वामी रामतीर्थ , ज्योति , नियम , वचन
ये अदालत है ! अदालत है !! अदालत है !!!
चार अक्षर का एक शब्द
जिसके चारों ओर चलती है चाण्डाल चौकड़ी
और बीच में पलती है
वकालत !
उस शब्द को कहते हैं
अदालत !
अदालत !!
अदालत !!!
अ का आमन्त्रण है - आओ !
दा की दादागीरी है - दो !
ल की ललकार है - लड़ो !
और
त का तल्ख़ तजुर्बा - तबाह हो जाओ !
आओ
दो
लड़ो
और तबाह हो जाओ
भ्रष्टाचारी राजनीति का
यही मूलमन्त्र है
ये लोकतन्त्र है !
ये लोकतन्त्र है !!
ये लोकतन्त्र है !!!
स्थिति बहुत ही खट्टी है मेरे भाई !
क्योंकि कानून का देवता अन्धा
और
देवी की आँखों पे पट्टी है मेरे भाई !
जब देश पर
आक्रमण करने वाला आतंकवादी बिरयानी चरता है
और उनसे
जूझने वाला बहाद्दुर कमाण्डो गोलियां खा कर मरता है
तब अपराधी अपराध करते हुए नहीं डरता ,
बल्कि सिपाही उन्हें ज़िन्दा पकड़ते हुए डरता है
क्योंकि वो जानता है
अपराधी को दण्ड दिलाने का उसका हर सपना टूट जाएगा
ये दरिन्दा, इकबालिया बयान देने के बावजूद
चश्मदीद गवाहों के अभाव में परिन्दे की तरह छूट जाएगा
इतना होने पर भी हमारी नपुंसक व्यवस्था
शर्मिन्दा तो दूर,
रूआंसी तक नहीं होती
अरे जिन्हें फांसी होजाना चाहिए,
उन्हें खांसी तक नहीं होती
बरसो-बरस से यही हालत है
ये अदालत है ! अदालत है !! अदालत है !!!
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क्यों री रचना ? कहाँ हैं तुम्हारे सब नापसन्दीलाल ?
क्यों री रचना ?
क्या हुआ ?
कहाँ गये तुम्हारे सब नापसंदीलाल ?
ब्लोगवाणी के साये में ही जी रहे थे क्या ?
ब्लोगवाणी के अभाव में मर गये क्या सब ?
बस ?
इतना ही पोदीना था क्या ?
_______________हा हा हा हा
सात दिन पहले जैसी छोड़ गया था .......वैसी ही मिली
बिना किसी नापसंद के साथ
एक दम कोरी.............निष्कलंक !
चलो अच्छा हुआ
अपनी रचना को बेदाग़ देखकर ख़ुशी हुई
अब अन्य रचनाएं भी कदाचित ऐसी ही मिला करेंगी..............
नापसंदियों का हुआ क्षय
गूंजी रचनाकारों की जय
जय हिन्दी
जय हिन्द !
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Labels: अलबेला खत्री , नापसंदीलाल , ब्लोगवाणी , रचना
मुकाबला आसानी से नहीं किया जा सकता
सत्य और प्रेम
दुनिया की सबसे शक्तिशाली चीजों में से है
और जब ये दोनों साथ हों,
तब तो इनका मुकाबला
आसानी से नहीं किया जा सकता ।
-कडवर्थ
Labels: सतयु और प्रेम कडवर्थ
रूपचंद्र शास्त्री जी से अलबेला खत्री की क्षमायाचना
आज , कल और परसों तीन दिन अहमदाबाद में प्रोग्राम के सिलसिले
हैं, इसलिए व्यस्त्तावश नेट पर नहीं आ सका, क्योंकि दो दिन मुम्बई
में शूटिंग के बाद किशनगढ़ में शो करके आज यहाँ पहुंचा हूँ । कुछ
समय निकाल कर सायबर कैफे में आया तो पाया अपने ब्लॉग पर
अनेक मित्रों की टिप्पणियों का भण्डार.......मन प्रसन्न हो गया ।
खासकर चर्चा मंच में शास्त्री जी ने भी मेरा ज़िक्र किया मैं उनके ब्लॉग
पर धन्यवाद देने के लिए कई प्रयास कर चुका हूँ लेकिन पता नहीं हर
बार मेरा प्रयास विफल क्यों हो जाता है.... क्षमा चाहता हूँ शास्त्री जी !
परन्तु आप मेरा आभार यहाँ ज़रूर स्वीकार कर लें ।
-अलबेला खत्री
Labels: आभार , कृतज्ञता , क्षमा , चर्चामंच , रूपचंद्र शास्त्री जी
उनका ज़िक्र करना गाली देने समान है
उदार बन,
खुशमिज़ाज़ बन,
क्षमावान बन,
जिस तरह कि
कुदरती मेहरबानियाँ तुझ पर बरसती हैं,
तू औरों पर बरसा ।
-शेख सादी
किसी आदमी को
उसके प्रति की गई मेहरबानी की याद दिलाना
और उनका ज़िक्र करना
गाली देने समान है ।
-डिमौस्थनीज़
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Labels: महापुरूषों की वाणी
मेरे लिए धर्म से रहित राजनीति की कोई सत्ता नहीं है
मेरी देश-भक्ति
अनन्त शान्ति तथा मुक्ति की ओर
मेरी यात्रा का एक पड़ाव मात्र है ।
मेरे लिए धर्म से रहित राजनीति की कोई सत्ता नहीं है ।
राजनीति धर्म की सेविका है ।
लोग कहते हैं कि मैं धर्मपरायण मनुष्य हूँ ।
मगर राजनीति में फंस पड़ा हूँ ।
सच बात ये है कि राजनीति ही मेरा क्षेत्र है
और मैं उसी में रह कर
धर्मपरायण होने का प्रयास कर रहा हूँ ।
- महात्मा गांधी
Labels: धर्म , महात्मा गांधी , राजनीति
पिता जी की पावन स्मृति को प्रणाम
पिता का हाथ,
सन्तान के लिए रब के हाथ से कम नहीं होता
पिता का साया साथ हो,
तो दुनिया के किसी ताप का ग़म नहीं होता
पिता के आशीर्वाद से बढ़ कर
कोई शफ़ा नहीं होती, कोई मरहम नहीं होता
बाप कितना भी गर्म मिजाज़ क्यों न हो,
अपनी औलाद के लिए कभी बे-रहम नहीं होता
मेरी सब कवितायेँ पूज्य पिता के नाम
पिता जी की पावन स्मृति को प्रणाम
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Labels: fathers day , पिता , पुत्र , प्रणाम , मेरे पिता मेरे भगवान , श्रद्धांजलि , स्मृतियाँ
टांका लगाने वाला चिकित्सक भी हमारे घाव देख कर अपना माथा फोड़ ले
प्यारे स्वजनों !
प्रकृति ने हमें जन्म दिया सहज और लयबद्ध जीवन जीने को, परन्तु
आज हमारा जीवन न तो सहज है और न ही लयबद्ध - क्योंकि
हमने व हमारे स्वार्थों ने चारों तरफ उथल-पुथल मचा कर स्वयं
प्रकृति को ही असहज, दुखी व कुपित करके अपने आप पर, अपने
अस्तित्व पर संकट की कुल्हाड़ी मार ली है । न केवल मार ली है,
बल्कि इतनी ज़ोर से मार ली है कि टांका लगाने वाला चिकित्सक
भी हमारे घाव देख कर अपना माथा फोड़ ले।
वृक्ष, जो कि रात-दिन हमारे ही जीवन को ऊर्जा देते हैं, हमने
उनका सफ़ाया कर दिया और जगह जगह कांक्रीट के महाकाय
जंगल खड़े करके पूरी दुनिया में गर्मी और ताप को बढ़ावा दिया
है । हमारी सुरक्षा के लिए रचा गया परा आवरण जिसे हम
पर्यावरण कहते हैं, आज तहस-नहस होने के कगार पर है जिसे
यदि समय रहते न बचाया गया तो इस समूची सृष्टि को नष्ट
होने से कोई नहीं बचा सकता ।
एक ही रास्ता है हमारे पास और उस रास्ते पर चलने का यही
सबसे सही समय है । आइये, वृक्ष उगायें............हाँ हाँ वृक्ष उगायें,
ज़्यादा से ज़्यादा उगायें और पीली पड़ती जा रही हमारी जीवन
प्रणाली में पुनः हरियाली लायें । आज स्थिति ये है कि घर में
दम घुटता है, सड़क पर दम घुटता है, यहाँ तक कि खुले मैदानों
तक में दम घुटता है, क्योंकि कार्बन डाई ऑक्साइड व उसी
गौत्र की अन्य ज़हरीली गैसें पैदा करने वाली अनेक मशीनें तो
हमने ईज़ाद कर लीं, लेकिन प्राण वायु यानी ओक्सीजन पैदा
करने वाले दरख़्त लगाना भूल गये । परिणाम ये है कि लाखों
लोग प्रतिवर्ष दमा अथवा अस्थमा से मरते हैं । इन्सान तो
इन्सान, निरीह पशु व पक्षी भी इसका शिकार हो कर लगातार
मर रहे हैं ।
आज हमें चिड़िया, गौरैया, कोयल, तोते, मैना, नीलकंठ, तित्तर,
यहाँ तक कि कौए, चील और गिद्ध तक के दर्शन दुर्लभ हो गये हैं ।
क्योंकि गाड़ियों , मिलों, कारखानों, कांक्रीट व कांच की
बिल्डिंगों, फ्रिजों, एयर- कंडीशनरों इत्यादि से निकलने वाले
धुंए व ताप ने उन्हें लील डाला है । आइये, हम सब मिल कर
अपने बचाव का मार्ग प्रशस्त करें यानी वृक्षारोपण करें, न केवल
रोपण करें बल्कि उन्हें पुष्पित-पल्लवित करके माँ प्रकृति के
आँसू पोंछें ।
जितने ज़्यादा वृक्ष होंगे, उतनी ज़्यादा हरियाली होगी, जितनी
ज़्यादा हरियाली होगी, उतना ही संकट कम होगा - बीमारियों
का, अकाल का, बाढ़ का, सूखे का और भूकम्प का । एक
मुहिम चला कर, अधिकाधिक पेड़ उगाने के इस अभियान में
आप सबका स्वागत है ।
आइये, हम मिल जुल कर प्रयास करें ।
जय हिन्द !
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टाइट अंगूठी पहनने वाले सावधान !
अंगूठी अथवा अंगूठियाँ पहनने वाले सज्जनों से मुझे सिर्फ़ इतना
कहना है कि यदि आपने अपनी ऊँगली में टाइट अंगूठी पहनी है
जो बार बार उतारने में बड़ी मुश्किल होती है तो अपनी अंगूठी तुरन्त
उतार कर रख दें और उसका आकार बड़ा करा कर ही पहनें
..........क्योंकि इससे रक्त प्रवाह में जो रुकावट आती है उसके
परिणाम घातक भी हो सकते हैं ।
मेरे हाथ में जब तक टाइट अंगूठी थी, मुझे बहुत परेशानी होती थी,
परेशानियां इतनी और ऐसी ऐसी थीं कि कुछ तो यहाँ लिख भी
नहीं सकता - जिस दिन से वह उतारी, चमत्कार हो गया ।
अब मुझे बहुत आराम है ।
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सत्य बहुमत की परवाह नहीं करता.....
जो हमें ठीक लगे
वैसा कहना और वैसा ही करना,
इसका नाम सत्य है
___स्वामी विवेकानन्द
अगर तुम मेरे हाथों पर
चाँद और सूरज भी ला कर रख दो,
तब भी मैं
सत्य के मार्ग से विचलित नहीं होऊंगा
___हजरत मुहम्मद
सत्य एक ही है दूसरा नहीं,
सत्य के लिए बुद्धिमान लोग विवाद नहीं करते
___महात्मा बुद्ध
सत्य बहुमत की परवाह नहीं करता,
एक युग का बहुमत
दूसरे युग का आश्चर्य और शर्म भी हो सकता है
___अज्ञात महापुरुष
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Labels: महापुरूषों के अमृत वचन और अनुभव
अलबेला खत्री का अभियान - आओ देश बचायें - 1
ब्लोगर लिप्यांतर में कुछ समस्या होने के कारण अनेक शब्द आपस में जुड़ गये हैं ...मुझे दोबारा टाइप करने का समय नहीं है , इसलिए थोड़ा ध्यान से पढ़लेवें
क्षमाप्रार्थी,
-अलबेला खत्री
सबसे पहले आम ज़िदगी से जुड़ी हुई -- भारतीय रेल !
# एक वर्ष तक कोई नई रेल परियोजना शुरू न हो, बल्कि जो अधूरी
परियोजनाएं हैं, केवल उन्हें पूर्ण करने पर काम हो ।
# कोई नई रेल शुरू न हो, बल्कि जो रेल गाड़ियाँ चल रही हैं, उनमे
से सारे गन्दे, टूटे फूटे और सुविधाहीन डिब्बे निकाल कर नये
डिब्बे जोड़ें जाएँ । साथ ही २५० किलोमीटर से ज़्यादा दूरी की यात्रा
वाली तमाम गाड़ियों में कम से कम 4-4 डिब्बे
द्वितीय श्रेणी के और जोड़े जाएँ ताकि जिनका टिकट कन्फ़र्म न हो,
वे यात्री उनमे यात्रा कर सकें ।
# गाड़ी में हर दो बोगियों के लिए कम से
कम एक टिकट चैकर और हर बोगी में
एक खलासी हो, जो ये ध्यान रखे
कि गाड़ी में भिखारी, साधू, बेटिकट या अनधिकृत फेरी वाला आ कर लोगों को डिस्टर्ब न करे । वो ये भी ध्यानरखे कि पानी है या नहीं, बिजली है या नहीं, पंखे चल रहे हैं या नहीं.........साथ ही उसके पास साधन होनाचाहिए कि ज़रूरत पड़ने पर वह डाक्टर, पुलिस और व्हील चेयर बुलवा सके।
# गाड़ी में अमुक अमुक और उचित स्थानों पर ये लिखा रहना चाहिए कि गाड़ी कहाँ से कहाँ तक का सफ़रकरते हुए कब पहुंचेगी तथा रास्ते में किस किस स्टेशन पर कितना रुकेगी तथा कहाँ कहाँ यात्री को भोजनवगैरह की व्यवस्था मिलेगी ।
# जिस प्रकार लिखा रहता है कि यात्री ये न करें, वो न करे, इसी प्रकार ये भी लिखा होना चाहिए कि टिकटचैकर के दायित्व क्या क्या हैं ? और यात्री के अधिकार क्या क्या हैं । हर बोगी की सुरक्षा के लिए कम से कम दोसशस्त्र पुलिस की तैनाती हो, जो केवल थोड़ी दूर यानी दो-तीन स्टेशन तक ही जाएँ और खड़े रहें मुस्तैद। यात्रीकी सीट पर बैठ कर उसे डिस्टर्ब न करे, साथ ही वे केवल सुरक्षा करें, किसी भी प्रकार की वसूली या बेटिकटयात्रियों का परिवहन नहीं ।
# जब गाड़ी स्टेशन पर आये तो हर बोगी के दोनों तरफ ये स्वचालित डिस्प्ले होना चाहिए कि उस कीपोजीशन क्या है ? अर्थात बोगी में कोई सीट खाली है या नहीं, यदि हैं तो कितनी सीटें खाली हैं ? इससे लोगों कोसीट प्राप्ति के लिए टी टी के पीछे भिखारी की तरह घूमना नहीं पड़ेगा ।
# प्लेटफोर्म के सामने पटरियों पर गन्दगी किसी भी सूरत में क्षम्य नहीं होगी, यदि प्लेटफोर्म के आसपासबदबू और सड़ांध हो, तो स्टेशन मास्टर को तुरन्त सेवा मुक्त कर दिया जाये।
# हर बड़े स्टेशन पर रेलवे द्वारा बड़े व आधुनिक जल संयंत्र कायम करके ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि यात्रीके पास अगर बोतल या अन्य पात्र हो तो उस को अधिकतम दो रूपये लीटर में फ़िल्टर और शीतल जल मिलजाये - बोतल बन्द पानी की बिक्री पर लगाम लगनी चाहिए । जो यात्री मुफ़्त में पानी चाहें उनके लिए भीसमुचित व्यवस्था नलों की होनी चाहिए जैसे एक नियम बन जाये कि स्टेशन पर जितने पंखे होंगे कम से कमउतने नल ज़रूर होंगे और सभी कार्यशील रहेंगे ।
# एक वर्ष तक किसी भी व्यक्ति को मुफ़्त पास नहीं दिया जाये । स्टाफ को तो कतई नहीं दिया जाये औरविकलांगों, स्वतंत्रता सैनानियों, खिलाड़ियों, पत्रकारों व नेताओं के सारे उच्च श्रेणी के पास रद्द कर देने चाहियें। इनका जितना दुरूपयोग होता है उतना रेलवे में शायद ही किसी अन्य चीज का होता होगा । जिसे भी यात्राकरनी है वह अगर मुफ़्त यात्रा का अधिकारी भी है तो उसे टिकट लेकर ही तकनीकी चाहिए......भले ही वह tikat फ्री में मिले ।
तकनीकी कारणों से रेलगाड़ी का शेष भाग अगली पोस्ट में..क्योंकि अचानक मुझे मुम्बई से शूटिंग का बुलावा आ गया है और १३,१४ व १५ को मुम्बई में रहना पड़ेगा . अगली पोस्ट तक इंतज़ार करें
Labels: आओ देश बचाएं , आओ देश बनाएं
आग जब तक लकड़ी में छिपी रहती है, तब तक कोई भी उसे लांघ जाता है, मगर जलती हुई को नहीं
आदमी शक्तिशाली हो,
लेकिन अपनी शक्ति न दिखाए
तो लोग उसका तिरस्कार ही करते हैं ।
आग जब तक लकड़ी में छिपी रहती है
तब तक कोई भी उसे लांघ जाता है,
मगर जलती हुई को नहीं ।
***********
या तो जैसा अपने को बाहर से दिखाते हो
वैसा ही भीतर से बनो,
या जैसे भीतर हो
वैसे ही बाहर से दिखाओ ।
*************
जो नम्रतापूर्वक
किसी गुमराह को रास्ता बताता है,
उसके समान है
जो अपने चिराग से
दूसरे का चिराग रोशन करता है ।
- अज्ञात महापुरूष
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Labels: save the india , save the nation , आज का दिन , आलस्य
सवाल देश का है दोस्तों ! आओ..आगे बढ़ो और अपना विचार प्रस्तुत करो..देर में सिवा अन्धेर के कुछ नहीं
आज सुबह मैंने जो पोस्ट लगाईं, उसे बहुत अच्छा प्रतिसाद मिला
है । अनेक विद्वान लोगों ने अपने विचार प्रस्तुत किये हैं
मैं हृदय से आभारी हूँ निम्नांकित महानुभावों का -
1 श्री शिवम् मिश्रा
2 श्री अन्तर सोहिल
3 श्री काजल कुमार
4 श्री विजय कुमार सप्पत्ति
५ श्री विनय प्रजापति 'नज़र'
5 श्री शिवलोक
6 श्री आचार्य जी
_________सभी ने उम्दा विचार रखे, परन्तु श्री काजल कुमार
और श्री अन्तर सोहिल व श्री विजय कुमार सप्पत्ति ने ज़्यादा
प्रभावित किया ।
मेरा आपसे, आप सभी से विनम्र निवेदन है कि आइये.........बात
करें देश की, देश को बचाने की । क्योंकि अब हालात असह्य हो गये
हैं । अगर हम अब भी न जागे तो बात हमारे हाथ से निकल जाएगी
.....हम कलमकार हैं हमारे पास , हम सब के पास अपनी एक
वैयक्तिक सोच है जो देश को संकट से उबार कर शीर्ष पर ले जाने में
अपना योग दान दे सकती है ।
हो सकता है आपका मुझसे कोई मतभेद हो, लेकिन यहाँ बात मेरे घर
की नहीं, हम सब के घर की यानी हमारे घर की हो रही है इसलिए
अगर वाकई आप भारतीय हैं और भारत ने जितना आपको दिया
है उसका मोल आप समझते हैं और भारत माता की चूनर को धानी
करके उसे पुनः सर्वशक्तिमान बनाना चाहते हैं तो आपको अपने
विचार यहाँ अवश्य रखने चाहियें ।
http://albelakhari.blogspot.com/2010/06/blog-post_6233.html
जय हिन्दी !
जय हिन्द !
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Labels: save the india , save the nation , देश बचाओ , भारत बचाओ , राष्ट्र बचाओ
मृदु और शान्त हो जाते हैं...........
देता, उसको देत हूँ , सुनो सुदामा दास ! बिन दिए देऊं नहीं, चाहे फेरा फिरो पचास !!
एक आलेख दुखी मन से.............
लोग कहते हैं इतिहास स्वयं को दोहराता है ।
मैं कहता हूँ दोहराता क्या, तिहराता और चौहराता भी है ।
हिन्दी ब्लोगिंग में इसका प्रमाण भी मिल रहा है ।
पहले इतिहास में चलते हैं । भक्त सुदामा जब अपनी पत्नी की
प्रेरणा अथवा जिद्द के कारण जब द्वारका पहुंचे अपने बालसखा
श्रीकृष्ण के पास, इस आशा में कि द्वारकाधीश उनकी सारी
दरिद्रता को अपने वैभव के एक कण मात्र के सहयोग से दूर कर
देंगे तो कृष्ण ने उनकी ख़ूब सेवा की, खिलाया-पिलाया, कीमती
पलंग पर सुलाया, यहाँ तक कि अपनी अश्रुधार से उनके मैले
चरण भी पखारे । लेकिन तीन दिन तक सेवा ही सेवा की, नकद
नारायण देकर उस गरीब की मदद करने का कोई उपक्रम नहीं
किया ।
जानते हो क्यों ?
क्योंकि सुदामा ने अपने दोस्त को वो नहीं दिया जो उसकी भाभी
ने भिजवाया था । सुदामा की पत्नी समझदार थी, वह जानती थी
किसी राजा और रिश्तेदार के यहाँ खाली हाथ नहीं जाना चाहिए,
इसलिए वह मांग-तांग के कुछ चावल लाई और एक पोटली बना
कर दे दी थी सुदामा को कि ये मेरे देवर और तुम्हारे सखा कृष्ण
को दे देना, लेकिन सुदामा द्वारकाधीश का वैभव देख कर
भौंचक्का रह गया और लघुग्रंथी का शिकार हो गया। उसने वो
पोटली शर्म के मारे इसलिए नहीं दी कि इत्ते बड़े राजा को
ये क्या दूँ ?
कृष्ण ने माँगा भी कि ला मेरी भाभी ने क्या भेजा,
मुझे दे...........लेकिन सुदामा ने नहीं दी । तीन दिन बाद जब
सुदामा ने देखा कि यहाँ खाली बातें ही बातें हैं मिलने-जुलने
वाला कुछ नहीं । तब उन्होंने उठाया अपना झोली - डंडा और
घर वापिस लौटने की तैयारी करने लगे । लेकिन मन में बड़ी
उदासी थी कि पत्नी को क्या जवाब दूंगा कि इत्ते बड़े सांवरे सेठ
के यहाँ से खाली हाथ आ गये ?
तब श्री कृष्ण ने कहा :
देता, उसको देत हूँ , सुनो सुदामा दास !
बिन दिए देऊं नहीं, चाहे फेरा फिरो पचास !!
अर्थात जो देता है , मैं उसीको देता हूँ । जो नहीं देता उसे मैं कुछ
नहीं देता, चाहे वो एक नहीं पचास चक्कर मार ले........फिर ख़ुद
ही छीन-छान कर वो पोटली खोली, चावल खाए और सुदामा
को मालामाल किया ।
ये प्रसंग सब जानते हैं । मैंने केवल इसलिए कहा कि हिन्दी
ब्लोगिंग में भी सब लोग कृष्णनुमा ही हैं । आप अगर ये वहम
पाल लो कि मेरा आलेख, मेरा विषय और मेरा अन्दाज़ उम्दा
है, लोग पढेंगे तो झख मार कर टिप्पणी और पसन्द देंगे....तो
भूल जाइए..........इसी में समझदारी है ।
आप कितना भी उम्दा लिखो, टिप्पणी उन्हीं से मिलेगी जिन
को आपने दी होगी । अगर आपने फलां फलां को उसकी पोस्ट
पर टिप्पणी नहीं दी है तो वो भी आपका आलेख मुफ़्त में पढ़
कर चला जाएगा ।
यानी ये टिप्पणियां एक प्रकार का व्यवहार है - आदान प्रदान है ।
इसके अलावा कुछ नहीं । जो व्यवहार कुशल है वो लिखता
कम और पोस्ट भी कम करता है, लेकिन टिप्पणियाँ
अन्धाधुन्ध करता है जिस कारण वो जब पोस्ट करता है तो लोग
भी दौड़े चले जाते हैं क़र्ज़ उतारने के लिए और उसकी पोस्ट को
हिट करने के लिए ।
होना भी ऐसा ही चाहिए........लिखिए कम, औरों को पढ़िए ज़्यादा -
लेकिन मेरी मजबूरी ये है कि मैं लिक्खाड़ ज़्यादा हूँ..........और ये
मानता हूँ कि जो समय मुझे सृजन के लिए मिला है, उसमे अगर
मैं लिखूंगा नहीं तो मेरी कमज़ोरी होगी ।
मैं तो आखिर तक लिखने का ही प्रयास करूँगा मेरे भाई ! हाँ
पढता भी हूँ और टिप्पणियां भी करता हूँ तथा सही टिप्पणियां
करता हूँ, इसके बावजूद पता नहीं मेरे आलेख पर नापसंद के
इत्ते चटके क्यों हैं ?
अरे यार ! कल और आज सुबह दो अलग अलग ब्लॉग पर जिन
दो पोस्ट में मैंने यह महत्वपूर्ण सूचना दी थी कि जिस
कवि/शायर को टी वी के बड़े प्रोग्राम का हिस्सा बनना हो, वह
अमुक व्यक्ति से अमुक नम्बर पर बात कर ले..........उस पोस्ट
ने किसी का क्या बिगाड़ा था जिसे नापसन्द के चटके लगा लगा
कर हॉट लिस्ट से बाहर कर दिया ।
कोई पढता तो ज़रूर किसी ना किसी का भला होता ।
आगे आपकी मर्ज़ी ।
हंसवाहिनी माँ हिंगलाज सबको सदबुद्धि दे ।
जय हिन्दी !
जय हिन्द !
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ऐसे मौके बार बार नहीं आते - अगर आप कवि या शायर हैं तो कृपया इस पोस्ट को बहुत गंभीरता से लें
प्यारे स्वजनों !
यदि आप समझते हैं कि आप एक अच्छे हास्य -व्यंग्य कवि हैं
या एक उम्दा मज़ाहिया शायर हैं तो इस पोस्ट को गंभीरता से लेते
हुए तुरन्त मेरे बताये फ़ोन नम्बर पर सम्पर्क करके अपनी
जानकारी दे देवें तथा सम्बद्ध व्यक्ति अगर आपको मुम्बई बुलाये तो
ज़रूर ज़रूर पहुंचें ।
एक सुनहरा अवसर है ये उन सब के लिए जो प्रतिभाएं अभी तक
अपना सही मक़ाम नहीं पा सकी हैं ।
ध्यान दें :
* प्रस्तुति एक बड़े कार्यक्रम के लिए एक बड़े टी वी चैनल पर
करनी होगी इसलिए आपको सिर्फ़ लेखक ही नहीं, बल्कि पर्फ़ोर्मर
भी होना ज़रूरी है । अन्यथा अपना समय ख़राब न करें ।
* अगर आपको ये भरोसा हो कि कविता या शायरी सुनाने में आप
किसी से भी उन्नीस नहीं हैं तो मौका मत चूकिए.......
* हास्य - व्यंग्य के अलावा मंच जमाऊ गीतकार, गज़लकार
भी सम्पर्क कर सकते हैं ।
मैं जानता हूँ हमारे देश में मेधाओं की कमी नहीं है । और मैं ये भी
जानता हूँ की मेधा है तो अवसरों की भी कमी अब नहीं है ।
मैं आपको जहाँ सम्पर्क करने को कह रहा हूँ वो एक विश्वस्तरीय
निर्माण संस्थान है । इससे ज़्यादा बताने की मुझे छूट नहीं है ।
इसलिए इशारों को अगर समझो ..तुरन्त फोन करो.....
देर न हो जाये............कहीं देर न हो जाये
यहाँ सम्पर्क करें -
नाम : नवनीत भाटिया
मोबाइल : 0 9 7 6 9 4 4 8 4 4 9
आप सबके लिए हार्दिक शुभकामनाओं सहित,
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