चन्द सरफिरे लोग
भारत में
भ्रष्टाचार मिटाने की साज़िश कर रहे हैं
यानी
कीड़े और मकौड़े
मिल कर
हिमालय हिलाने की कोशिश कर रहे हैं
मन तो माथा पीटने को हो रहा है काका
लेकिन मैं फिर भी लगा रहा हूँ ठहाका
क्योंकि इस आगाज़ का अन्जाम जानता हूँ
मैं इन पिद्दी प्रयासों का परिणाम जानता हूँ
सट्टेबाज़ घाघ लुटेरे
दलाल स्ट्रीट में बैठ कर
तिजारत कर रहे हैं
और
जिन्हें चम्बल में होना चाहिए था
वे दबंग सदन में बैठ कर
वज़ारत कर रहे हैं
देश के ही वकील जब देशद्रोहियों के काम आ रहे हों
और
गद्दारी में जहाँ सेनाधिकारियों तक के नाम आ रहे हों
पन्सारी और हलवाई जहाँ मिलावट से मार रहे हों
डॉक्टर,फार्मा और केमिस्ट
रूपयों के लालच में इलाज के बहाने संहार रहे हों
ठेकेदारों द्वारा बनाये पुल
जब उदघाटन के पहले ही शर्म से आत्मघात कर रहे हों
जिस देश में
पण्डित और कठमुल्ले
अपने सियासी फ़ायदों के लिए जात-पात कर रहे हों
और
दंगे की आड़ में
बंग्लादेशी घुसपैठिये निरपराधों का रक्तपात कर रहे हों
वहां
जहाँ
मुद्राबाण खाए बिना
दशहरे का कागज़ी दशानन भी नहीं मरता
और पैसा लिए बिना
बेटा अपने बाप तक का काम नहीं करता
सी आई डी के श्वान जहाँ सूंघते हुए थाने में आ जाते हैं
कथावाचक-सन्त लोग जहाँ हवाला में दलाली खाते हैं
भ्रष्टाचार जहाँ शिष्टाचार बन कर शिक्षा में जम गया है
और रिश्वत का रस धमनियों के शोणित में रम गया है
वहां वे
उम्मीद करते हैं कि
घूस की जड़ें उखाड़ देंगे
अर्थात
निहत्थे ही
तोपचियों को पछाड़ देंगे
तो मैं सहयोग क्या,
शुभकामना तक नहीं दूंगा
न तो उन्हें अन्धेरे में रखूँगा
न ही मैं ख़ुद धोखे में रहूँगा
बस
इत्ता कहूँगा
जाने भी दो यार...........छोड़ो
कोई और बात करो
क्योंकि
राम फिर शारंग उठाले
कान्हा सुदर्शन चलाले
आशुतोष तांडव मचाले
भीम ख़ुद को आज़माले
तब भी भ्रष्टाचार का दानव मिटाये न मिटेगा
वज्र भी यदि इन्द्र मारे, चाम इसका न कटेगा
तब हमारी ज़ात ही क्या है ?
तुम भ्रष्टाचार मिटाओगे
भारत से ?
तुम्हारी औकात ही क्या है ?
अभी, मुन्नी को और बदनाम होने दो
जवानी शीला की गर्म सरेआम होने दो
मत रोको रुख हवाओं के तिरपालों से
आबरू इन्सानियत की नीलाम होने दो
जय हिन्द !
-अलबेला खत्री
8 comments:
यथार्थ की ज़मीन पर लिखी " भ्रष्टाचारी कविता " के लिये आप मुबारक-बाद के मुस्तहक़ हैं।
मत रोको रुख हवाओं के तिरपालों से,
आबरू इन्सानियत की नीलाम होने दो
बहुत सुन्दर .. जमीनी सच्चाई बयाँ करती
अभी, मुन्नी को और बदनाम होने दो
जवानी शीला की गर्म सरेआम होने दो
मत रोको रुख हवाओं के तिरपालों से
आबरू इन्सानियत की नीलाम होने दो
wah, waah,....bahut khoob!
सही ही भाई !
albelaji, kya kahna!
desh aur samaz ki durgati ka..
bhrashtachar ke tandav ka ..
kalamkar ki chhatpatahat ka...
ayina hai apki dhardar kavita !
bandhu ! jhakjhor kar rakh diya .
बहुत ही तगड़ी...धुआंधार...ताबड़तोड़...रचना...
तुम भ्रष्टाचार मिटाओगे
भारत से ?
तुम्हारी औकात ही क्या है ?
bबिलकुल सही कहा बहुत अच्छा व्यंग है। बधाई।
hame bhi agar hath par hath dhare baithe rahe is se kaam nahi chalega.hame kya karana hai ,is par bhi to kuchh likhiye khatri ji.kintu aaj ki aaina ,behad good.
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