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Albela Khatri

देश समूचा खा कर ही पिंड छोड़ेंगे, दिल्ली पर जिनका है ताबा बाबाजी



दहशत-वहशत, ख़ूनखराबा  बाबाजी 


गुंडई  ने है  अमन को चाबा बाबाजी 


 
काम से ज़्यादा संसद में अब होता है 


हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा  बाबाजी 



मैक्डोनाल्ड में रौनक बढती जाती है


उजड़ रहा पंजाबी ढाबा बाबाजी 



मन मधुबन के भीतर सारे तीरथ हैं   


काशी-वाशी , क़ाबा-वाबा बाबाजी 



देश समूचा खा कर ही पिंड छोड़ेंगे


दिल्ली पर जिनका है ताबा बाबाजी 



कवि हो तो 'अलबेला' ऐसा गीत लिखो


लोग कह उठें  शाबा शाबा बाबाजी 



7 comments:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार June 5, 2012 at 12:38 PM  

.


शाबा शाबा बाबाजी !
म्मतलब… … …

शाबा शाबा अलबेलाजी !

:)

Shri Sitaram Rasoi June 5, 2012 at 1:07 PM  

परम प्रिय भ्राता अलबेला जी,
यह शायद आपने इतनी महान रचना लिख दी है जिसकी कोई मुकाबला हो ही नहीं सकता है।

साधुवाद है नमन आपको करता हूँ,
गीत नहीं ये चांटा अलबेला बाबा जी
शर्म नहीं आती इटली की रानी को,
सौ की पत्ती तेल बिकेगा बाबाजी।


डॉ. ओ.पी.वर्मा
अलसी चेतना यात्रा
कोटा राज.

Unknown June 5, 2012 at 1:40 PM  

@Rajendra Swarankar
बहुत बहुत धन्यवाद राजेन्द्र जी.........

Unknown June 5, 2012 at 1:43 PM  

@Dr O P Varma
आपका हार्दिक आभार डॉ ओ पी वर्मा साहेब,
आपकी सराहना सर आँखों पर......
आपके शब्दों से ऊर्जा मिली है
धन्यवाद
जय हिन्द !

सुज्ञ June 5, 2012 at 3:23 PM  

ईमान दबा है आतंक की पनाहों में
नैतिकता के स्रोत है खाली बाबाजी!!

निरामिष: शाकाहार संकल्प और पर्यावरण संरक्षण (पर्यावरण दिवस पर विशेष)

शिवम् मिश्रा June 5, 2012 at 7:33 PM  

इन के पापा जी का ढाबा थोड़े ही न है ... ऐसे कैसे खा जाएंगे देश ...


इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - दुनिया मे रहना है तो ध्यान धरो प्यारे ... ब्लॉग बुलेटिन

Asha Joglekar June 6, 2012 at 4:36 AM  

देश समूचा खा कर ही पिंड छोड़ेंगे

दिल्ली पर जिनका है ताबा बाबाजी


कवि हो तो 'अलबेला' ऐसा गीत लिखो

लोग कह उठें शाबा शाबा बाबाजी

शावा शावा ।

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