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Albela Khatri

जिनके सर पर बाल नहीं है बाबाजी


सुर है लेकिन ताल नहीं है बाबाजी

पॉकेट  है पर माल नहीं है बाबाजी



क्योंकर कोई चूमे हमको सावन में


अपने चिकने गाल नहीं है बाबाजी



दर्पण से उनको नफ़रत हो जाती है


जिनके सर पर बाल नहीं है बाबाजी



मेहमानों की ख़ातिरदारी कैसे हो


घर में आटा दाल नहीं है बाबाजी



देश बेच कर खाने वाले लोगों का


लोहू शायद लाल नहीं बाबाजी



उनकी ममता घुट घुट कर मर जाती है


जिनके अपने लाल नहीं है बाबाजी



मंहगाई के बिच्छू डंक चुभाते हैं


मोटी अपनी खाल नहीं बाबाजी



हास्यकवि 'अलबेला' ऐसा घोड़ा है


जिसके खुर में नाल नहीं है बाबाजी




-अलबेला खत्री 





9 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा July 20, 2012 at 1:01 PM  

वाह वाह कविराज

खूब जमाया शब्दों का मेला
सुरों की ताल वही है बाबाजी

Majaal July 20, 2012 at 4:52 PM  

अलबेला साहब पर लगाम लगाने का ,
वैसे भी कोई सवाल नहीं है बाबाजी !

लिखते रहिये :)

Ramakant Singh July 20, 2012 at 6:47 PM  

आपका कहने का बेबाक अंदाज़ गंभीर बातों को सहज सरल रूप देकर फिर से गंभीर बना देता है .

डॉ टी एस दराल July 20, 2012 at 9:42 PM  

वाह वाह !

कोई अलबेला जी से बाज़ी मारे
ऐसा माँ का लाल नहीं है बाबा जी .

Shah Nawaz July 20, 2012 at 10:42 PM  

बहुत ही कमाल का लिखा है अलबेला भाई.... ज़बरदस्त...


मैं आपकी पोस्ट अक्सर मोबाइल से पढता हूँ, लेकिन आपके ब्लॉग पर मोबाइल से कमेन्ट नहीं हो पाता है, कृपया इसका मोबाइल वर्ज़न चालू करें. आज भी मोबाइल से पढ़ चुका था, लेकिन कमेन्ट करने के लिए घर आकार खासतौर पर लेपटाप चालू किया.... :-)

Unknown July 20, 2012 at 10:49 PM  

धन्यवाद शाहनवाज जी........
आपके कमेन्ट सर आँखों पर
सादर

सुशील कुमार जोशी July 21, 2012 at 9:49 AM  

बहुत सुंदर है रंग जमाया
होली का नहीं बबाल बाबा जी !!

शिवनाथ कुमार July 21, 2012 at 6:57 PM  

मेहमानों की ख़ातिरदारी कैसे हो
घर में आटा दाल नहीं है बाबाजी

बहुत खूब, सुंदर हास्य - व्यंग्य भरी प्रस्तुति ..
सादर !!

रविकर July 21, 2012 at 7:06 PM  

बढ़िया ||

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