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वरिष्ठ, बड़े और उम्रदराज़ तो आसाराम बापू भी हैं तथा विश्व में हिन्दी का प्रचार प्रसार उनहोंने भी खूब किया है जिसे नकारा नहीं जा सकता




मेरे टेलिफ़ोनिक मित्र आदरणीय डॉ राम अकेला जी,

आपने अपनी अधोलिखित टिप्पणी मेरी बहुत सी पोस्ट्स पर चिपका दी थी जिसे मुझे डिलिट करना पड़ा क्योंकि एक टिप्पणी एक ही जगह टिकानी चाहिए।  खैर - आपने मुझे लिखा कि

"आप द्वारा कवियों के मानधन सूची और उनके बारे की गयी टिप्पणी शायद कही न कही एक प्रशन खड़ा करती है ... आप ने कुछ कवियों के बारे कुछ ऐसा लिखा है जो कि हिंदुस्तानी कवि सम्मेलनों की परंपरा के खिलाफ लग रहा है | टिप्पणी वरिष्ट कवियों के सम्मान को ठेस पंहुचा रही है ! आदरणीय अशोक चक्रधर जी के बारे में जो लिखा... कुछ ग़लत है ... अगर १९६२ से अब तक का उनका सफ़र और हिंदी भाषा को पूरी दुनिया में प्रचारित और प्रसारित कर हिंदी को लोकप्रिय बनाने में उनका जो योगदान रहा वह अमुल्य है | आप उसको वर्तमान के कवि सम्मेलनों के स्तर से तुलना नहीं कर सकते | अपना अपना समय होता है ... हमें फेसबुक जैसे सार्वजनिक मंच पर अपने कुनबे / परिवार के बड़ो के बारे में थोड़ा मर्यादित रहना चाहिए | जहा तक आपने कहा आजकल दर्शकों से आँख नहीं मिला पाते क्योंकि मोबाइल में देख देख कर कविता बांचते हैं... मै कहना चाहता हूँ की उनकी उम्र में आप और हम केसे पढेंगे ये ईश्वर ही जानता है ... पर हा जहा तक अगर वास्तविक कवितओं/लेखन की बात करे तो शायद आप और हम उनसे आज भी नज़र नहीं मिला सकते | किसी के साहित्य में ५० वर्षो के सफ़र और योगदान पर इतनी हल्की (ओछी) टिप्पणी का यक़ीनन किसी को कोई अधिकार नहीं है | मेले ठेले वाले कवियों की तुलना उनसे करना बेमानी होगी, आप चाहे तो कुछ सम्मान जनक लोगो के नाम इस सूचि से हटा ही ले तो बेहतर होगा ... बुरा नहीं माने ... बस गहरायी से सोचे क्यू की ऐसी छिछली टिप्पणी आप के पेज पर भी शोभा नहीं देती |"


डॉ  राम अकेला जी,
वरिष्ठ, बड़े और उम्रदराज़ तो आसाराम बापू  भी हैं तथा  विश्व में हिन्दी का प्रचार प्रसार उनहोंने भी खूब किया है जिसे नकारा नहीं जा सकता, 50 वर्ष तो डॉ मनमोहन सिंह को भी हो गए देश की सेवा करते हुए परन्तु आज लोग उन्हें  कहने में गुरेज़ नहीं करते -  सवाल उम्र का नहीं, सवाल करनी का है - यह सच है कि ओछी टिप्पणी का अधिकार किसी को नहीं लेकिन यह बात भी आप मुझे नहीं उनको ही बताइये और वे न सुनें आपकी बात तो  7 अक्टूबर को अम्बाला के बराड़ा महोत्सव वाले कवि-सम्मेलन का उनका वीडिओ देख लो, बात आपकी  समझ में आ जायेगी  #####  और ये मेले ठेले वाले कवि आप किनको बता रहे हो ? स्वर्गीय निर्भय हाथरसी को ?  स्वर्गीय काका हाथरसी को ?  स्वर्गीय शैल चतुर्वेदी को ? हुल्लड़ मुरादाबादी को ? सन्तोषानन्द को ? बाबा सत्यनारायण मौर्य को ?  हरी ओम पवार को ? माणिक वर्मा को ?  स्वर्गीय ओमप्रकाश आदित्य को ?  बालकवि बैरागी को ?  सत्यनारायण सत्तन को ?  या पंडित विश्वेश्वर शर्मा जैसे 2 4 कैरेट कवि को ?  प्यारे भाई,  ये मेले ठेले वाले कवि  ही हैं जो मंच पर कविता को ज़िन्दा रखे हुए हैं और वास्तविक रूप में कविता की सेवा कर रहे हैं जहाँ आपके ये वाले जाने से पहले दस बार सोचते हैं वहाँ वोह वाले जा जा कर कविता की अलख जगाते है =  आपको उनका मखौल नहीं उड़ाना चाहिए -- आपने मात्र कुछ  कवियों को ही सम्मानजनक कहा है, क्यों प्रभु !  बाकी सब कविगण  क्या अपमानजनक ही हैं :-)

___________अब आप मेरी टिप्पणी को ध्यान से पढ़ो और विचार करो कि इसमें गलत क्या लिखा है ?


अशोक चक्रधर - दिल्ली       40,000+     वांछित पेय पदार्थ व शेविंग रेज़र

* आदिकाल से  मंचों और मंचों से अधिक सरकारी महोत्सवों, सरकारी चैनलों व इन्टरनेट पर सक्रिय, ये पढ़ते  बहुत हैं इसलिए पंचतन्त्र की कहानियों से ले कर विदेशी कवियों की अनेक कवितायें इन्हें याद हैं - चुटकुले और हलकी फुल्की तुकबन्दी के अलावा हास्य में नवगीत भी सुनाते हैं जो हँसा तो नहीं पाते लेकिन 10 मिनट तक दर्शकों को बाँधे ज़रूर रखते हैं - कभी कभी जम भी जाते हैं, पर अधिकतर फ्लॉप ही होते हैं  क्योंकि  इनकी तुकबन्दी समझने के लिए अनिवार्य है कि या तो श्रोता घोर साहित्यकार हो या फिर इनका ही विद्यार्थी अथवा चेला-चेली हो हैं - आजकल दर्शकों से आँख नहीं मिला पाते क्योंकि मोबाइल में देख देख कर कविता बांचते हैं - जब कोई अन्य कवि खूब जम रहा हो तो मंच से उठ कर सिगरेट फूंकने ज़रूर जाते हैं - बाकी व्यक्ति बहुत बढ़िया है


#   क्या वो 40 हज़ार नहीं लेते, या पेय पदार्थ नहीं पीते या उन्हें रेज़र नहीं चाहिए - भइया, 5 बार तो मैं रेज़र दे चुका हूँ भरोसा न हो तो उन्हीं से पूछ लेना 

#   वे मंचों और महोत्सवों में सक्रिय नहीं या उन्हें पंचतंत्र की कथायें याद  नहीं ?

#   कभी कभी जमते नहीं हैं या फलॉप नहीं होते ? मोबाइल में देख कर कविता नहीं सुनाते या सिगरेट नहीं फूंकते ? या आदमी बढ़िया नहीं है ?

गलत क्या लिखा है, ये तो कहो----और हाँ, आपको मैंने कभी मंच पर नहीं सुना और न ही मिला इसलिए आपके कहने से मैं मेरी टिप्पणी नहीं हटा सकता परन्तु  अगर कोई ऐसा मंचीय कवि जो मेरा भी दोस्त न हो और उनका भी पट्ठा न हो अगर कहदे कि हटा दो तो मैं हटा भी दूंगा - उनको पब्लिसिटी देकर मुझे क्या मिल रहा है बाबाजी का लट्ठ ?

नोट : मैं कवि-सम्मेलन के आँगन में झाड़ू -पोता करके साफ़ करने की कोशिश कर रहा हूँ  इसमें विघ्न डालने के बजाय मेरे साथ आ कर काम करो तो कुछ सकारात्मक काम होगा

जय हिन्द
सदैव विनम्र
अलबेला खत्री

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