tag:blogger.com,1999:blog-303919957706694657.post6614019354321904194..comments2024-03-02T14:16:26.676+05:30Comments on Albelakhatri.com: इन्हीं कुँवारों के दम पर पलते हैं सारे नीम-हकीम, नियमपूर्वक सुबह -शाम जो इकसठ बासठ करते हैंAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/09116344520105703759noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-303919957706694657.post-10573576333206501662010-05-19T05:36:40.714+05:302010-05-19T05:36:40.714+05:30अलबेला भाई पसंद नहीं आई यह तुकबंदी। हिन्दी ब्लॉग...अलबेला भाई पसंद नहीं आई यह तुकबंदी। हिन्दी ब्लॉगिंग को मंचीय तिलिस्म से बाहर निकालिये। प्रख्यात होने के रास्ते और भी हैं। कभी मेरी भी रचनाएं पढि़ए और ऐसा तलाश कर दिखलाइये। चाहे बहुत प्रख्यात नहीं हूं परंतु ऐसा लिखकर कुख्यात भी नहीं होना चाहता हूं। टी वी ने जितना प्रदूषण फैलाया है, अन्य माध्यम भी फैला रहे हैं। समझ नहीं आता आप इस तरह लिखकर क्या हासिल करना चाहते हैं, किनसे वाह वाही चाहते हैं। यह सब प्रोपोगंडे आते हैं मुझे भी। और कौन नहीं परिचित हैं इन इकसठ बासठ या अन्य द्विअर्थीय तरीकों से। पर इनसे नए माध्यम को प्रदूषित मत कीजिए। विनम्र अनुरोध है एक बड़े भाई का।अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-303919957706694657.post-61030655457337203332010-05-19T05:36:40.713+05:302010-05-19T05:36:40.713+05:30अलबेला भाई पसंद नहीं आई यह तुकबंदी। हिन्दी ब्लॉग...अलबेला भाई पसंद नहीं आई यह तुकबंदी। हिन्दी ब्लॉगिंग को मंचीय तिलिस्म से बाहर निकालिये। प्रख्यात होने के रास्ते और भी हैं। कभी मेरी भी रचनाएं पढि़ए और ऐसा तलाश कर दिखलाइये। चाहे बहुत प्रख्यात नहीं हूं परंतु ऐसा लिखकर कुख्यात भी नहीं होना चाहता हूं। टी वी ने जितना प्रदूषण फैलाया है, अन्य माध्यम भी फैला रहे हैं। समझ नहीं आता आप इस तरह लिखकर क्या हासिल करना चाहते हैं, किनसे वाह वाही चाहते हैं। यह सब प्रोपोगंडे आते हैं मुझे भी। और कौन नहीं परिचित हैं इन इकसठ बासठ या अन्य द्विअर्थीय तरीकों से। पर इनसे नए माध्यम को प्रदूषित मत कीजिए। विनम्र अनुरोध है एक बड़े भाई का।अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-303919957706694657.post-12831807047753876562010-05-18T23:57:18.187+05:302010-05-18T23:57:18.187+05:30"इन्हीं कुँवारों के दम पर पलते हैं सारे नीम-ह..."इन्हीं कुँवारों के दम पर पलते हैं सारे नीम-हकीम<br /><br />नियमपूर्वक सुबह -शाम जो इकसठ बासठ करते हैं"<br /><br /><br />शायद इन पंक्तियों के बिना भी काम चल जाता !!शिवम् मिश्राhttps://www.blogger.com/profile/07241309587790633372noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-303919957706694657.post-17021651508933012022010-05-18T11:01:35.568+05:302010-05-18T11:01:35.568+05:30हो जाते होंगे भवसागर पार राम के सुमिरन से
उसी प्र...हो जाते होंगे भवसागर पार राम के सुमिरन से<br /><br />उसी प्रभु श्रीराम को सरयू पार तो केवट करते हैं<br /><br /><br />सुन्दर भावों से सजी अर्वाचीन रचना के लिए बधाई!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.com