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Hindi Hasya kavi Albela Khatri's blog

ताज़ा टिप्पणियां

Albela Khatri

ज़िन्दगानी बिक जाती है

भाई जो शराबी हो तो

बोतल के बदले में

गैरों बीच घर की कहानी बिक जाती है


साजन शराबी हो तो

बोतल के बदले में

सजनी के गले की निशानी बिक जाती है


बाप जो पीया करे है

मदिरा तो उस घर

फूल जैसी बेटी की जवानी बिक जाती है


मदिरा के नशे में

ईमान बिके देखे बन्धु

बिना किसी दाम ज़िन्दगानी बिक जाती है

पसन्द करना सीख लो

सुखी होने के

दो ही उपाय हैं :

या तो

जो पसन्द है

उसे प्राप्त करना सीख लो

या जो प्राप्त है

उसे पसन्द करना सीख लो
__________________________है न बढ़िया बात? __________
मेरी रचना नहीं है, राजू भाई ने एस.एम.एस.भेजा है ......हा हा हा हा

साबुन लगा लिया ..........

सोने से पहले आँखों में अन्जन लगा लिया

उठते ही अपने दाँतों पे मन्जन लगा लिया

मन में तो गन्दगी के कीड़े कुलबुला रहे

पर तन पे रोज़ दो दफ़ा साबन लगा लिया

साँसों में आपकी

गुलकन्द है मकरन्द है साँसों में आपकी

ज़ाफ़रान की सुगन्ध है साँसों में आपकी


दुनिया में तो भरे हैं ज़ख्मो-रंजो-दर्दो-ग़म

आह्लाद और आनन्द है साँसों में आपकी


कितनी है गीतिकाएं,ग़ज़लें और रुबाइयां

कितने ही गीतो-छन्द हैं साँसों में आपकी


कहीं और ठौर ही नहीं है जाऊंगा कहाँ ?

मेरे तो प्राण बन्द हैं साँसों में आपकी

किसलिए?

जगने के वक़्त सो रहा है यार किसलिए ?

सुनहरी मौका खो रहा है यार किसलिए ?

ये बाग़ है बादाम का , बादाम ही उगा

मिर्चों के पौधे बो रहा है यार किसलिए ?

.....और पढ़ाई फेल हो गई

आदर्शों को फाँसी हो गई और नियमों को जेल हो गई
सुख के बादल बिखर चले हैं, दु:ख की धक्कमपेल हो गई

किन शब्दों में व्यक्त करूं मैं हैरत तुम बतलाओ तो
नक़ल हो गई पास यहाँ पर और पढ़ाई फेल हो गई

लाश नीली पड़ रही है देखिये........

चश्म पर परतें भरम की चढ़ रही हैं देखिये
देखिये, दर्पण से चिड़िया लड़ रही है देखिये

आपने अपने लोहू से जो लिखा पैगम्बरों !
आपकी औलाद उलटा पढ़ रही है देखिये

आपने अमृत दिया था ये तो हमको याद है
पर हमारी लाश नीली पड़ रही है देखिये

aaj qaumi ekta ke divas hain manne lage
baat ye bhi yaad rakhni pad rahi hai dekhiye

==========chalte chalte hindi band ho gayi toh main kya karoon? padho...ek she'r angrezi men///////sorry main bol deta hoon =aur toh kya karoon?

इतनी छूट तो होनी ही चाहिए ......a

लो जी ,
होगया कल मंत्रीमंडल का विस्तार .....
अनेक महानुभावों ने

ओथ "ली"
शपथ "ग्रहण की"
या
कसम "खाई "

और ये कार्य सब के सामने सम्पन्न हुआ
कोई चोरी छुपे नहीं
अब कल कोई इन पर किसी प्रकार के भ्रष्टाचार का आरोप
मत लगाना
_________________अरे यार जिस काम की शुरुआत ही
"लेने"
+ग्रहण करने
+खाने से होती है
उस में खाने पीने की छूट तो होनी ही चाहिए
..हा हा हा हा हा हा हा हा

प्रेम कर इन्सान को

मान अभिमान तज,

तप और दान तज,

तज चाहे गीता और तज दे क़ुरान को



नौहा और नाला तज,

गिरजा शिवाला तज,

तज चाहे तीज चौथ नौमी रमज़ान को



काशी काबा ग्रन्थ तज,

चाहे सारे पन्थ तज,

तज दे तू भजनों की लम्बी लम्बी तान को


ईश की आराधना का

मन यदि करता है

प्रेम कर... प्रेम कर .....हर इन्सान को

तेरा नाम लिखा है .......

छुप छुप के नहीं मैंने सरे-आम लिखा है
कालेज की दीवारों पे तेरा नाम लिखा है

मेरी ये ज़िन्दगी है एक वीणा की तरह
जिसके सभी तारों पे तेरा नाम लिखा है

ख़त भी लिखा तो ऐसा कि कुछ भी नहीं लिखा
सलाम ही सलाम ही सलाम लिखा है

न जाने कितनी रातों का लोहू भरा गया
तब जा के इस कलम ने इक कलाम लिखा है

पत्थर की बात छोड़िये कलयुग में 'अलबेला'
नेता भी तर गया है जिस पे राम लिखा है

ज़रा ईमान दे दो माँ !

हे वीणापाणि, वाणी को सुरों का ज्ञान दे दो माँ !

कलम में बल, हृदय निर्मल,सहज सम्मान दे दो माँ !

दया का दान दे दो माँ ...यही वरदान दे दो माँ !

वतन के कर्णधारों को ज़रा ईमान दे दो माँ !



ज़रा ईमान दे दो माँ .....वतन खुशहाल हो जाए

समृद्धि की बहे धारा व मालामाल हो जाए

नई पीढ़ी के पीले चेहरे फिर से लाल हो जाए

ये भारतवर्ष जग में फिर बेमिसाल हो जाए

पहली मोटेल किसी पटेल की होगी

गाड़ी फिएट हो या फ़ोर्ड
चलाने के लिए
ज़रूरत तेल की होगी

चाँद पर बस्ती
रूस बसाये या अमेरिका
वहां पहली मोटेल
किसी पटेल की होगी
------------------हा हा हा हा हाहा हा हा हा

गीतों में भर दिया .......


नयनों से झरते नीर को गीतों में भर दिया
मैंने ह्रदय की पीर को गीतों में भर दिया
भगवान की क़सम इसे बेचा नहीं कहीं
मैंने मेरे ज़मीर को गीतों में भर दिया 
-अलबेला खत्री

हर दम सुलगाई रहती है ..............

होंटों से लगायी रहती है ,ऊँगली में दबाई रहती है
हम सिगरेट के आदी हैं
हम सिगरेट के आदी हैं , हर दम सुलगाई रहती है

सुट्टा जो हमारा होता है
वो देखन वारा होता है
जब छोड़ते हैं हम बाहर तो
धुंए का गुब्बारा होता है ,धुंए का गुब्बारा होता है
दाँतों पे हमेशा पीलापन
आँखों में ललाई रहती है
हम सिगरेट ..................................................................

कुछ लोग जो ज़्यादा ठांसते हैं
वो जब देखो तब खांसते हैं
पग कांपते हैं, हाथ कांपते हैं
साँस लेते हुए भी हाँफते हैं , साँस लेते हुए भी हाँफते हैं
सीने में दमे की बीमारी
हाथों में दवाई रहती है
हम सिगरेट ...................................................................

सस्ती का भी स्वाद लिया हमने
मंहगी को भी अपनाया हमने
तन फूँक तमाशा देखा है
क्या इसके सिवा पाया हमने, क्या इसके सिवा पाया हमने
साँसों में ऐसी दुर्गन्ध कि
दूर दूर लुगाई रहती है
हम सिगरेट ......................................................................

____________>>>>>>तम्बाकू विरोधी दिवस <<<<<<<<<_____________-

कर दो सभी को सावधान !



गुटखा ये पाउच वाला, जिसने भी मुंह में डाला


गुटखा ले लेगा उसकी जान


कर दो सभी को सावधान.......................



कितने ही मर गए इससे,कितने ही मिट गए इससे


बूढे बालक नौजवान


कर दो सभी को सावधान ...............................



संतूर तुलसी शिमला गोवा दरबार कोई


मानिकचंद मूलचंद हो या अनुराग कोई


हो चाहे रजनीगंधा पानपराग कोई


सबके सब हैं ज़हरीले


कत्थई भूरे या पीले


सब के सब हैं एक समान


करदो सभी को सावधान ..............................................



सडियल सुपारी डाली,सस्ता ज़र्दा मिलाया


लौंग इलायची खुश्बू ठंडक किवाम दिखलाया


बाकी बस खड़िया मिटटी, कत्था चूना लगाया


चमड़ी छिपकलियों वाली


साँपों की हड्डियाँ डाली


नशा है या मौत का सामान


कर दो सभी को सावधान ..........................................



तिल्ली को खा जाता है पथरी अल्सर देता है


किडनी का दुश्मन है ये कैंसर भी कर देता है


खाने वाले का जीवन बर्बाद कर देता है


सबसे गन्दी बीमारी


चालू रहती पिचकारी


दफ्तर हो घर हो या दुकान


कर दो सभी को सावधान .........................................


>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>तम्बाकू विरोधी दिवस पर विशेष रचना <<<<<<<<<<<<<<

सारा देश जल जाएगा

आग जो लगाओगे
आज़ादी के लिबास में तो
देश के शहीदों का सन्देश जल जाएगा

आग यदि धरमों के
नाम पे लगाओगे तो
शिव जल जाएगा,गणेश जल जाएगा

दादू पलटू का उपदेश
जल जाएगा रे
पिता दशमेश का आदेश जल जाएगा

और मत आग अब
घर को लगाओ बन्धु
वरना हमारा सारा देश जल जाएगा

अब कहीं दंगा न हो

रक्त में रंगा न हो
आदमी नंगा न हो
हैं यही शुभकामनायें
अब कहीं दंगा न हो

------------------------------------------------------------------------------------
------------------शुक्र है पंजाब शान्त हो गया_____________________

रह गई चीख पुकार

पलक झपकते उजड़ गए हैं कितने घर-परिवार


एक तलातुम ऐसा आया, मच गया हाहाकार


आँगन उजड़ा, छत उजड़ी, हाय! उजड़े दर-दीवार


आँसू रह गए, आंहें रह गईं, रह गई चीख पुकार


सत्यानाश हो इस आईला का जिसने बंगाल में कोहराम मचा दिया

पहचान कौन

२२ मई २००९ संदेश समाचार पत्र में प्रकाशित साक्षात्कार

पढने के लिए फोटो पर क्लिक करें

राहुल बाबा ब्याह करा लो न प्लीज...

ना तो आपने बुलाणा है, ना ही मुझे आणा है। ना मुझे प्रीतिभोज खाणा है, न बारात में जाणा है, ना तो मुझे सेहरा गाणा है और ना ही आपकी घोड़ी के आगे भंगड़ा पाणा है। फिर मैं क्यूं फोकट में परेशान होऊं भाई? मुझे क्या मतलब है आपकी शादी से ? हां...आप अपनी शादी के स्वागत समारोह में कोई हास्य कवि-सम्मेलन कराने का ठेका मुझे दो, तो मैं कुछ सोचूं। अब मैं देश के अन्य लोगों की तरह फ़ुरसितया तो हूं नहीं कि लट्ठ लेके आपके पीछे पड़ जाऊं या हाथ जोड़ के गिड़गिड़ाऊं कि राहुल बाबा शादी करा लो ! शादी करा लो!!
भई आप बालिग हैं, अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं, अपने निर्णय स्वयं कर सकते हैं। जीवन आपका वैयक्तिक है, घर-संसार आपका वैयक्तिक है और शरीर भी आपका ही वैयक्तिक है तो हम कौन होते हैं आपकी खीर में चम्मच चलाने वाले... यदि आपको लगता है कि सब कुछ ठीक-ठाक है, कहीं कोई प्रोब्लम नहीं है तथा शादी के बाद आप सारी ज़िम्मेदारियां अच्छे से निभालेंगे तो कर लीजिए... और यदि ज़रा भी सन्देह हो तो मत कीजिए... इसमें कौनसा पहाड़ उठा के लाना है। ये कौनसा राष्ट्रीय चर्चा का विषय है जो देश के करोड़ों लोगों ने हंगामा कर रखा है और आपकी माताश्री पत्रकारों को जवाब देते-देते थक गई हैं कि भाई उसे जब शादी करानी होगी, करा लेगा। अब आपकी दीदी प्रियंका यदि घर में भाभी लाने को उतावली हों, तो ये उनका अपना निर्णय है और उनको पूरा अधिकार है कि वे आप पर दबाव बना कर, अथवा प्यार से पुचकार कर आपको ब्याह के लिए राज़ी कर ले, लेकिन आम जनता ख़ासकर टी.वी. चैनल वालों को क्या मतलब है यार ? क्यों उनसे आपका सुख बर्दाश्त नहीं हो रहा ? क्यों वे आपकी आज़ादी और उन्मुक्तता झेल नहीं पा रहे ?
ये सच है सोनियानंदन ! कि जिसने शादी नहीं की उसने अपना जीवन बिगाड़ लिया, लेकिन मज़े की बात तो ये है, जिसने की उसने भी क्या उखाड़ लिया ? सो हे राजीवकुलभूषण ! आप शादी कराओ तो मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता और न करवाओ तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं तो केवल और केवल इतना कहना चाहता हूं कि यदि आपको ऐसा लगे कि आप शादी कराने के योग्य हो और वाकई गृहस्थी का भार उठाने के काबिल हो, तो करा ही लेना, ज्य़ादा देर मत करना। क्योंकि कुछ कार्य ऐसे होते हैं जो समय पर ही कर लेने चाहिए वरना कभी नहीं होते। शादी भी उन्हीं में से एक है, सही समय पे शादी हो गई तो ठीक, वरना सारी ज़िन्दगी यों ही रहना पड़ता है। मेरी बात का भरोसा न हो तो अपने आस-पास नज़र दौड़ाओ.... अनेक उदाहरण मिल जाएंगे... एपीजे अब्दुल कलाम, अटल बिहारी वाजपेयी, नरेन्द्र मोदी, ममता बनर्जी, जयललिता व मायावती जैसे कितने ही उदारहण आपके सामने हैं। ये लोग राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन शादीशुदा नहीं हो सके...क्योंकि इन लोगों ने केवल एक गलती की थी... अरे वही ...समय पर शादी नहीं करने की। अब ये लोग बहुत पछताते हैं...रात-रात भर मुकेश के दर्द भरे गाने गाते हैं... अरे भाई फूट-फूट के रोते हैं अपनी तन्हाई पर... लेकिन इनके आंसू पोंछने वाला, इनकी पप्पी लेकर जादू की झप्पी देने वाला कोई नहीं है.... अब नहीं है तो नहीं है, यार इसमें मैं क्या करूं ? मैं आऊं क्या ? मैंने कोई ठेका ले रखा है इनके आंसू पोंछने का ?
मैं तो ख़ुद अपनी शादी करा के पछता रहा हूं.... जब तक कुंवारा था, शेर था शेर.... किसी की परवाह नहीं करता था....जैसे आप नहीं करते हैं लेकिन जब से ब्याहा गया हूं एकदम पालतू खोत्ता हो गया हूं। पहले इतनी आज़ादी थी कि पलंग के दोनों ओर से चढ़ सकता था और दोनों ओर से उतर भी सकता था... अब तो ज़रा सी जगह में दुबक कर सोना पड़ता है क्योंकि बाकी जगह पर तो वो हाथी का अण्डा कब्ज़ा कर लेता है।
लोगबाग़ मुझे छेड़ते हैं। कहते हैं यार खत्री ! तेरी पत्नी तो तूफ़ान है तूफ़ान, पूरे मौहल्ले को हिला रखा है.. मैं कहता हूं यार, बधाई मुझे दो जो इस तूफ़ान में भी दीया जला रखा है। सो हे इन्दिराजी के लाडले पौत्र... मिलाओ जल्दी से कुण्डली व गौत्र और हो जाओ हमारी तरह ज़ोरू के गुलाम। हो जाओ ना भाई.... प्लीज......

फिर से सुभाष

एक-एक चेहरा मायूस सा हताश सा है

                    एक-एक चेहरा उदास मेरे देश में

भाई आज भाई का शिकार खेले जा रहा है

                    बहू को जला रही है सास मेरे देश में

इतना सितम सह के भी घबराओ नहीं,

                    तोड़ो नहीं बन्धु यह आस मेरे देश में

टेढ़े-मेढ़े लोगों को जो सीधी राह ले  आएगा,

                   पैदा  होगा फिर से सुभाष मेरे देश में

शायर भी पीते हैं

आदमी की ज़िन्दगी का हाल काहे पूछते हो,
                         हो चुका है ख़ाना ही ख़राब मेरे देश में
भेडि़ए-सियार-गिद्ध-चील-कौव्वे घूमते हैं
                         आदमी का ओढ़ के नक़ाब मेरे देश में
धरमों के नाम पे बहाते हैं ये लोग देखो
                         अपनों के ख़ून का चनाब मेरे देश में
लीडरों को गाली देना छोड़ो 'अलबेला' आज
                          शायर भी पीते हैं शराब मेरे देश में

बदनाम बस्ती की नायिका के नाम.......

तुम
न शुभ हो
न शगुन हो
न मुहूर्त हो
फिर भी तुम इस समाज की
इक ज़रूरत हो
ज़रूरत भी ऐसी जो टाली नहीं जा सकती
तुम्हारी ये बस्ती
इस शहर से निकाली नहीं जा सकती
क्योंकि तुम
तन और मन की तुष्टि का
सम्पूर्ण सामान हो
अरे!
अलगाव के इस युग में मानवीय एकता का
तीर्थ स्थान हो
हाँ हाँ
तीर्थ स्थान
जहाँ हिन्दू हिन्दू नहीं रहता
मुस्लिम मुस्लिम नहीं रहता
इसाई इसाई नहीं रहता
बनिया बनिया नहीं रहता
पुजारी पुजारी नहीं रहता
कसाई कसाई नहीं रहता
रहता है शरीर
जो आता है और शान्त होकर चला जाता है ॥
रात का मुसाफ़िर
दिन निकलते ही निकल जाता है
इज्ज़त का दुशाला ओढ़ कर
तुम्हारे हाथों में चन्द रूपये छोड़ कर
तुम
अगले ग्राहक के ख्यालों में खो जाती हो
देह थक चुकी है
इसलिए बैठे बैठे ही सो जाती हो
एकबार फिर उठने के लिए
यानी रात भर लुटने के लिए
ये तुम्हारा कर्म है
इसलिए धर्म है
कोई पाप नहीं है
तुम्हारे आंसू ....
तुम्हारी पीड़ा ......
और तुम्हारी वेदना को नाप सके
दुनिया में ऐसा
कोई माप नहीं है

शक्लें देखो इन युवा मंत्रियों की

इसे कहते हैं चार आने का चना और चौदह रूपये का मसाला.. मसाला भी साला ऐसा कि दोनों टाइम हाहाकार मचा दे..इनपुट में भी और आउटपुट में भी। ये ज्ञान वाली बात मैंने मुफ़्त में इसलिए कही, क्योंकि लम्बे अध्ययन और गहन चिन्तन के उपरान्त ये दो कौड़ी का निष्कर्ष मेरी समझदानी में फिट हुआ है कि संसद में बैठने वाले हमारे नेता तथा सड़क पर तमाशा दिखाने वाले मदारी, दोनों एक ही मिट्टी के बने हैं। इसलिए दोनों में गहरी समानता देखने को मिलती है।
सड़क का मदारी डमरू बजा-बजा कर लोगों को आकर्षित करता है, अजगर, नेवला, सांप और खोपिड़यां..पता नहीं क्या-क्या दिखाकर भीड़ जमा करता है लेकिन जैसे ही भीड़ सांप-नेवले की लड़ाई देखने को उत्सुक होती है, वह मदारी दन्तमन्जन या ताबीज़ निकालकर बेचना शुरू कर देता है। लोग कहते हैं - सांप नेवले की लड़ाई कराओ तो वो कहता है - कराऊंगा, पहले इस पापी पेट के लिए कुछ रोकड़ा तो दो... लोग बेचारे तमाशा देखने को लालायित हो चुके होते हैं इसलिए कोई पैसा देता है, कोई मन्जन खरीदता है, लेकिन सारा पैसा जमा होने के बाद मदारी कुछ ऐसे मन्तर वन्तर का ढोंग करता है कि सब लोग वहां से खिसक लेते हैं और मदारी सारा माल लेकर, बांसुरी  बजाता हुआ अपने घर कू चल देता है।
इसी प्रकार हमारे नेता सौ-सौ झांसे देकर हमारा वोट ले लेते हैं और बाद में ऐसे चम्पत होते हैं कि अगले चुनाव तक पब्लिक उन तक पहुंच ही नहीं पाती। ताज़ा उदाहरण है श्रीमान बालगोपाल राहुल गांधी का जिनके युवा आभामण्डल को फैलाते हुए ये प्रचार किया गया कि इस बार नये और ऊर्जावान उत्साही लोगों को ही मंत्री मण्डल में लिया जाएगा ताकि राजीव गांधी के अधूरे सपनों को पूरा किया जा सके। जनता ने सोचा-अब मज़ा आएगा। नये लोग आएंगे तो काम भी नया करेंगे, लेकिन नयेपन के नमूनों के ढोल की पोल कल शाम उस वक्त खुल गई जब डा. मनमोहन सिंह ने उन्हीं खुर्रांट बुजु़र्गों को मंत्री बनाया जिनसे हम बुरी तरह ऊबे हुए हैं।
ज़रा शक्लें तो देखो इन तथाकथित युवा मंत्रियों की...जिनमें से कोई भी महापुरूष 60 से कम का नहीं है। ले दे के एक राहुल बाबा की उम्मीद थी तो वो भी खिसक लिए पतली गली से...यानी मंत्री मण्डल में शामिल नहीं हुए। अब कोई क्या उखाड़ लेगा इनका...
कई साल पहले मेरे एक दोस्त, अरे वही....डी.वी.पटेल (नैशविल टेनिसी वाले) ने मुझसे पूछा था कि राजीव गांधी, वी.पी.सिंह, चंद्रशेखर और डा. मनमोहनसिंह में क्या फ़र्क है- मैंने कहा-राजीव गांधी का प्रधानमंत्री बनना ये दर्शाता है कि कोई भी आदमी, हमारे देश का प्रधानमंत्री बन सकता है, वी.पी. सिंह ने ये साबित किया कि कोई भी आदमी जब प्रधानमंत्री बन जाता है, तो देश की हालत क्या हो जाती है, चंद्रशेखर को देखकर हमें भरोसा हो गया कि इस देश का काम बिना प्रधानमंत्री के भी चल सकता है और डा. मनमोहन सिंह की ऊर्जा बताती है कि कुर्सी मिल जाए तो बुढ़ापे में भी जवानी के वायरस जेनरेट हो जाते हैं।
हालांकि बूढ़ा होना कोई अपराध नहीं है, लेकिन बूढ़े लोगों द्वारा सत्ता पर कब्ज़ा किए रहना ज़रूर अपराध है। ठीक उसी प्रकार जैसे ब्रह्मचारी होना कोई पाप नहीं है, लेकिन ब्रह्मचारी का पुत्र होना तो हन्ड्रेड परसेन्ट पाप है, आज के ज़माने में राम जैसी मर्यादित सन्तान की इच्छा करना कोई अपराध नहीं है, लेकिन इस चक्कर में दशरथ की तरह तीन-तीन लुगाइयां लाना अवश्य अपराध है। ये बात मैंने इसलिए की क्योंकि हमारे यहां पुरातन परम्परा रही है, राजा-महाराजाओं की ये रीत रही है कि जैसे ही सन्तान युवा हो जाए, शासन का दायित्व उसे सौम्प कर, स्वयं वाया वानप्रस्थ होते हुए सन्यास आश्रम की ओर निकल लो, ताकि प्रजा को सतत ऊर्जावान राजा की छत्रछाया उपलब्ध रहे और समय के साथ-साथ सत्ता का तेवर भी बदले। लेकिन अपने यहां शास्त्रों को पूजा तो जाता है, पढ़ा भी जाता है और उनके कारण दंगा-फ़साद भी हो जाता है, लेकिन शास्त्रों की बात मानता कोई नहीं। 
जब कोई मानता ही नहीं और मानना चाहता भी नहीं तो मैं क्यों माथा मारूं यार? हटा सावन की घटा, जो होता है हो जाने दे.... चल हवा आने दे......

दिल के अन्दर तू ही है

मस्ती का मदहोश समन्दर तू ही है
अखिल भुवन में सबसे सुन्दर तू ही है
आँखों में तो  लोग  बहुत से रहते हैं
लेकिन मेरे दिल के अन्दर तू ही है

-अलबेला खत्री

राजीव गांधी के लिए

काश!
हम इतने समर्थ होते
काश!
यह हमारे वश में होता

तो वह मनहूस घड़ी
कभी आने नहीं देते
आपको इस तरह,
असमय जाने नहीं देते
भिड़ जाते हम नियति से,
घमासान मचा देते
खेल जाते प्राणों पर...
आपकी जान बचा देते
लेकिन नहीं ...

कोई उपाय नहीं था
इस विडम्बना से बचने का
कोई तोड़ नहीं था हमारे पास
काल रूपी उस काले अजगर का
जो देखते ही देखते
निगल गया,
समूचा निगल गया

लील गया
हमारी आंखों के सपनों को
उन सपनों के
कुशल चितेरे को
सम्भावनाओं के
भव्य सवेरे को
और हम
ठगे से रह गए
कुछ भी न कर सके
सिवा संताप के
सिवा रुदन के

काश!
हमारी भी कुछ चल जाती
काश!
यह दुःखान्तिका टल जाती

वाट लग गई लौहपुरूष की

धत्‌ तेरे की! साली तक़दीर ही फूटेली है। फूटेली क्या फटेली भी है और इतनी ज़ोर से फटेली है कि इधर सिर मुण्डवाया नहीं कि उधर ओले खड़े तैयार। वो भी छोटे-मोटे नहीं, बड़े-बड़े.... इतने बड़े कि खोपड़ी का कचूमर बना दे। मां क़सम, सैलून से घर तक जाना भारी हो गया। बदनसीबी इतनी है कि जिस घर में छाछ मांगने जाएं वहां भैंस मर जाती है, सू-सू करने के लिए दीवार की ओट लेते हैं तो दीवार गिर जाती है, अब क्या बतायें कि जान हमारी किस कदर जल रही है... अरे बच्चे पैदा हमने किये और शक्ल उनकी पड़ौसियों से मिल रही है। ये तो कुछ भी नहीं प्यारे... दुर्भाग्य का बस चले तो वह अक्खे यूनीवर्स के सारे रिकार्ड तोड़ दे... अगर हम क़फ़न बेचना शुरू कर दें, तो लोग मरना छोड़ दें।
एक तो पहले ही कंगाली थी, ऊपर से आटा गीला हो गया। गांधीजी रहे नहीं, नेहरूजी रहे नहीं, सरदार पटेल रहे नहीं, इन्दिरा गांधी भी रही नहीं... यहां तक कि मोरारजी देसाई, चौ. चरण सिंह, बाबू जगजीवन राम और ताऊ देवीलाल तक निकल लिए हमें हमारे हाल पे छोड़ के। ले दे के एक ही लौहपुरूष बचे थे श्रीमान लालकृष्णजी अडवाणी, लेकिन इस चुनाव में उनकी भी वाट लग गई। इनकी भारतीय जनता पार्टी जहां से चली थी वापस वहीं पहुंच गई। यानी इतने सालों तक हज़ारों तरह की जो बयानबाज़ियां की, रथ यात्रायें की, लालचौक पर ध्वज वन्दन किया और फीलगुड का नारा शोधा, गई सबकी भैंस पानी में.... बैठे रहो अब हाथ पे हाथ रख के। क्योंकि दूसरा मौका जल्दी मिलने वाला नहीं.. पांच साल बाद अगर मिला भी तो क्या तीर मार लेंगे आप? क्योंकि लौहा तब तक ज़ंग खा चुका होगा और आपके सिपहसालार ख़ुद इतने आगे निकल चुके होंगे कि ये आपके बजाय ख़ुद हीरो बनना चाहेंगे... इसलिए अडवाणीजी, काल करे सो आज कर, आज करे सो अब... यानी आप स्वीकार कर लीजिए कि आपके सारे अरमान आंसुओं में बह गए हैं और आप वफ़ा करके भी तन्हा रह गए हैं यानी कि कुल मिलाकर कांग्रेस ने आपको उस खुड्डा लाइन पर टिका दिया है जहां से कोई भी गाड़ी आगे नहीं जा सकती।
कितने पूजा पाठ कराये, कितने पंडित बुलाये, शुभ मुहूर्त और चौघडि़ये दिखाये, घर में रंग-रोगन करवाया,वास्तुशास्त्र के हिसाब से कार्यालय का स्थापत्य भी ठीक कराया तथा जिम में जाकर डोळे भी बनाये यानी कोशिश तो आपने पूरी ही की थी। जान के सारे घोड़े खोल दिये आपने, लेकिन मिला क्या? ठन-ठन गोपाल! अब आपका बैडलक ही इतना खराब चल रहा है तो नरेन्द्र मोदी भी कहां-कहां हाथ लगायें... आपकी स्थिति तो ऐसी है कि जहां-जहां पांव पड़े सन्तन के, तहां-तहां बन्टाधार हुआ। आपने सरकार बनाई तो संसद पर हमला हो गया, विमान का अपहरण हो गया और अज़हर मसूद जैसा आतंकवादी छोड़ना पड़ा। आपने मुशर्रफ़ को यहां बुलाया तो वो आगरे में खा-पी के पिछवाड़े पर हाथ पोंछता हुआ चला गया। स्वयं पाकिस्तान गए तो आपने जिन्ना की मज़ार पर चढ़ाने वाले फूल खुद पर चढ़ा लिए, बस चलाईं तो पाकिस्तान से नकली करंसी और असली दहशतगर्द आने शुरू हो गए। आपके श्रीचरण गुजरात में पड़े तो ये भी हैरान हो गया। विपदाओं ने सामूहिक आक्रमण कर दिया। कभी चक्रवात, कभी भूकम्प, कभी माता के मंदिर में भगदड़ तो कभी मंदी के मारे रत्न कलाकारों द्वारा आत्महत्या। गांधीनगर के अक्षरधाम पर अटैक हो गया, गोधरा में ट्रेन जल गईं, सूरत में भयंकर बाढ़ आ गई और अब अहमदाबाद व मोडासा में बम ब्लास्ट हो गए। मतलब ये है कहने का कि आपके लिए शगुन कुछ ठीक नहीं है।
अब आप कुछ दिन पूर्णतः आराम कीजिए और भूल जाइये बाकी चोंचलेबाज़ी व 'मजबूत नेता-निर्णायक सरकार' का नारा, यही है निवेदन हमारा। आपको पसन्द आए तो ठीक, नहीं तो हमारा माल पड़ा है हमारे पास.. किसी और को टिका देंगे। हा हा हा हा.........

फिर सुबह आएगी ...फिर सुबह आएगी

सन्नाटे के सीने में तूफ़ान छिपा है
दर्द के दिल में खुशियों का सामान छिपा है
अंधियारे के आँचल से सूरज निकलेगा
काँटों के साए में फिर से फूल खिलेगा
रात बहुत लम्बी है लेकिन कट ही जायेगी
फिर सुबह आएगी........
फिर सुबह आएगी........

बलिदान करने चल दिए

वतन की राह में बलिदान करने चल दिए
हम अपने आपको क़ुरबान करने चल दिए
वतन की राह में...


ख़ुदारा अब हमारे दुश्मनों की ख़ैर हो
नहीं मुमकिन हमारी सरज़मीं पे ग़ैर हो
हम उनकी मौत का सामान करने चल दिए
हम अपने आपको क़ुरबान करने चल दिए
वतन की राह में...


किसी में दम हो तो आकर हमें अब रोक ले
पीया हो दूध मॉं का तो हमें अब टोक ले
कि वन्दे मातरम्‌ का गान करने चल दिए
हम अपने आपको क़ुरबान करने चल दिए
वतन की राह में...


जो अब टकराएगा हमसे वो मारा जाएगा
कि सीधा मौत के रस्ते उतारा जाएगा
जहां में आज ये ऐलान करने चल दिए
हम अपने आप को क़ुरबान करने चल दिए
वतन की राह में...


बड़ा अरमान था जिसका ये दिल वो पा गया
लो अब फ़ौजी को सरहद से बुलावा आ गया
फ़तेह अब हम विजय अभियान करने चल दिए
हम अपने आप को क़ुरबान करने चल दिए
वतन की राह में...


* यह गीत उन जांबाज़ सैनिकों की ओर से है जिन्हें सरहद से बुलावा आया है और वे घर से निकल कर पूरे उत्साह के साथ सीमा की ओर जा रहे हैं अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए तैनात होने को
-अलबेला खत्री

शहीदों को सलाम

आओ देशवासी एक काम कर लें
देश के शहीदों को सलाम कर लें
ऑंखों में अक़ीदत के आंसू भर कर
दो घड़ी का मौन उनके नाम कर लें...आओ देशवासी...

दुश्मनों की गोली जिनका काल हो गई,
जिनके लहू से धरा लाल हो गई
तन-मन-धन दिलो-जान दे गए,
जो हमारे लिए बलिदान दे गए
उन मुस्लिमों को हम अलविदा कहें,
उन हिन्दुओं को राम-राम कर लें ...आओ देशवासी

दुनिया को जिन्होंने पूरा देखा न था,
ज़िन्दगी का स्वाद अभी चखा भी न था
फूल कामनाओं के खिले भी न थे,
सजनी से नैन मिले ही न थे
उनके अभागे परिवार के लिए,
थोड़ा दुःख सारे ख़ासो-आम कर लें...आओ देशवासी...

बारूदी आग से जो खेलते रहे,
गोलियों को छाती पर झेलते रहे
तिरंगे की आन-बान-शान के लिए,
वो जो मिट गए हिन्दोस्तान के लिए
जिनकी चिताओं पे तिरंगा झुक गया,
उन्हें गीली ऑंखों से प्रणाम कर लें ...

आओ देशवासी एक काम कर लें
देश के शहीदों को सलाम कर लें

हमको तुम पर नाज़ है

आज तिरंगे के तीनों रंग देते ये आवाज़ हैं

हिन्द की ख़ातिर मिटने वालो

हमको तुम पर नाज़ है


मातृभूमि के लाड़ले बेटो, आपकी क़ुरबानियां

राह दिखाएंगी नसलों को बन कर अमर कहानियां

आपके दम पर आज सलामत भारत मॉं की लाज है

हिन्द की ख़ातिर मिटने वालो

हमको तुम पर नाज़ है


ना परवाह की भूख की तुमने, ना परवाह की प्यास की

परवाह की तो सिर्फ़ बटालिक, कारगिल की और द्रास की

विजय पताका फहराने का आप ही के सर ताज है

हिन्द की ख़ातिर मिटने वालो

हमको तुम पर नाज़ है


मारते-मारते मरे बहाद्दुर, मरते-मरते मार गए

जब तक सांस रही जूझे वो, बस फिर स्वर्ग सिधार गए

दूध का कर्ज़ चुका देने का ये भी इक अन्दाज़ है

हिन्द की ख़ातिर मिटने वालो

हमको तुम पर नाज़ है


है हमको सौगन्ध तुम्हारी पावन-पावन राख की

हस्ती मिटा कर रख देंगे, अपने दुश्मन नापाक की

प्यार से जब बात बने तो वार ही सिर्फ़ इलाज है

हिन्द की ख़ातिर मिटने वालो

हमको तुम पर नाज़ है

जब घर से चला जवान

जब घर से चला जवान तो माता क्या बोली?
माता बोली लिपटा कर,
छाती से उसे लगाकर
दुश्मन फिर सर पर आया,
सीमा ने तुझे बुलाया
ओ भारत के रखवाले,
अपने हथियार उठा ले
तूने मुझसे जनम लिया है
और मेरा दूध पीया है
तो दूध का कर्ज़ चुकाना,
वर्दी का फ़र्ज़ निभाना
हारा मुंह मत दिखलाना,
अब जीत के ही घर आना
मेरी कोख की लाज बचाना,
रण में मत पीठ दिखाना

जब घर से चला जवान तो बहना क्या बोली?
आंसू जल के फौव्वारे,
बहना की आंखों के धारे
जब फूट पड़े गालों पे,
मुंह ढांप लिया बालों से
ली दस-दस बार बलैयां,
फिर बोली प्यारे भैया
इस घर को भूल न जाना,
तुम वापस लौट के आना
राखी का बॉंध के धागा,
बस एक वचन ये मॉंगा
पीछे मत कदम हटाना,
आगे बढ़ते ही जाना
मेरी राखी की लाज बचाना,
रण में मत पीठ दिखाना

जब घर से चला जवान तो सजनी क्या बोली?
वो बोली कर आलिंगन,
तुम जाओ मेरे साजन
मैं भी अरदास करूंगी,
व्रत और उपवास करूंगी
तुम अपना धर्म निभाओ,
दुश्मन को धूल चटाओ
बैरी की छाती फाड़ो,
फिर उसपे तिरंगा गाड़ो
गर देनी पड़े क़ुरबानी,
मत करना आना-कानी
हॅंसते-हॅंसते मिट जाना,
गोली सीने पे खाना
मेरी मांग की लाज बचाना
रण में मत पीठ दिखाना

जब घर से चला जवान, दिशाएं गूंज उठीं
तेरी जय हो वीर जवान
तेरी जय हो वीर जवान
तेरी जय हो वीर जवान

माया कैसे ना जले

संसद में जो सोनिया मनमोहन से मिले
कभी मुस्काये, कभी घूरे, कभी साथ चले
माया कैसे ना जले

तुम्हारी याद आती है

पवन जब गुनगुनाती है, तुम्हारी याद आती है
घटा घनघोर छाती है, तुम्हारी याद आती है
बर्क़ जब कड़कडाती हैं, तुम्हारी याद आती है
कि जब बरसात आती है, तुम्हारी याद आती है

तुम्हारी याद आती है, तो लाखों दीप जलते हैं
मेरी चाहत के मधुबन में हज़ारों फूल खिलते हैं
इन आंखों में कई सपने, कई अरमां मचलते हैं
तुम्हारी याद आती है तो तन के तार हिलते हैं

भारत माता की जय

यों तो सारे स्वर मधुर लगते हैं लेकिन
आरती -अज़ान सा कोई नहीं
यों तो हर एक मुल्क़ की इक शान लेकिन
अपने हिन्दुस्तान सा कोई नहीं
धन्य है यह भूमि जिस पर सूरमे पैदा हुए
गर्व है उन पर जो अपने मुल्क़ पर शैदा हुए
अमर बलिदानों का अभिनन्दन करें
आओ इस माटी का हम वन्दन करें

माताओं की आरती

धन्य-धन्य ये धरती जिस पर ऐसे वीर जवान हुए
मातृ-भूमि की ख़ातिर जो हॅंसते हॅंसते क़ुरबान हुए
जिनकी कोख के बलिदानों पर गर्व करे मॉं भारती
आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती
आओ गाएं हम..
वन्दे मातरम‌् ...
वन्दे मातरम‌् ...
वन्दे मातरम‌् ...

ऑंचल के कुलदीप को जिसने देश का सूरज बना दिया
अपने घर में किया अन्धेरा, मुल्क़ को रौशन बना दिया
जिनके लाल मरे सरहद पर क़ौम की आन बचाने में
जान पे खेल गए जो मॉं के दूध का कर्ज़ चुकाने में
है उन पर बलिहारी, देश की जनता सारी
देश की जनता सारी, है उन पर बलिहारी
जो माताएं इस माटी पर अपने बेटे वारतीं
आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती... आओ गाएं हम...

जिनके दम पर फहर रहा है आज तिरंगा शान से
जिनके दम पर लौट गया है दुश्मन हिन्दोस्तान से
जिनके दम पर गूंजी धरती विजय के गौरव-गान से
जिनके दम पर हमें देखता जग सारा सम्मान से
है उन पर बलिहारी, देश की जनता सारी
देश की जनता सारी, है उन पर बलिहारी
जिनकी सन्तानें दुश्मन को मौत के घाट उतारतीं
आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती ... आओ गाएं हम...

जिन मॉंओं ने दूध के संग-संग राष्ट्र का प्रेम पिलाया
जिन मॉंओं ने लोरी में भी दीपक राग सुनाया
जिन मॉंओं ने निज पुत्रों को सीमा पर भिजवाया
जिन मॉंओं ने अपने लाल को हिन्द का लाल बनाया
है उन पर बलिहारी, देश की जनता सारी
देश की जनता सारी, है उन पर बलिहारी
जिनकी ममता रण-भूमि में सिंहों सा हुंकारती
आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती ... आओ गाएं हम...
वन्दे मातरम‌् ...
वन्दे मातरम‌् ...
वन्दे मातरम‌् ...

ढूंढते रह जाओगे...

लूटो खाओ मौज करो आज़ादी है
कभी किसी से नहीं डरो आज़ादी है
मौत बहुत सस्ती कर दी नेताओं ने
जी चाहे तो रोज़ मरो आज़ादी है

कल रात दो बजे मैंने एक लोकल नेता का चरित्र देखा और देख कर ख़ूब एन्जॉय किया। अब आप भी करो। हुआ यूं कि नशे में धुत्त वह नेता लड़खड़ाता हुआ सड़क पर चल रहा था। फुटपाथ पर एक बुज़ुर्ग कुत्ता सोया हुआ था, नेता को पता नहीं क्या सूझी, उस सोये हुए कुत्ते पर ज़ोर से एक लात चला दी, बेचारा नींद का मारा कुत्ता रोता हुआ वहां से भागा । ये देख कर मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन मैंने नेता से कुछ नहीं कहा, पीड़ित कुत्ते के पास गया और प्यार से पूछा कि उस नेता ने अकारण ही तुझे लात मार दी, क्या तुझे गुस्सा नहीं आया, क्या तेरा ख़ून नहीं खौला, क्या तेरे मन में उसे काटने के भाव नहीं जगे? वो बोला - जगे भाई साहब जगे, बहुत जगे, पर क्या करूं, वो नेता है, नेताओं के मुंह कौन लगे?

गाड़ी फिएट हो या फोर्ड,
चलाने के लिए ज़रूरत तेल की होगी
और चान्द पर बस्ती पहले रूस बसाये या अमेरिका
पर पहली मॉटेल वहां किसी पटेल की होगी।
ये दो पंक्तियां मैंने पहली बार सन 1996 के अगस्त महीने की 27 तारीख को अमेरिका के नॉक्सविल (टेनिसी) में जब सुनाईं तो तालियों की .जबर्दस्त गड़गड़ाहट से वह समूचा मंदिर गूंज उठा जहां हमारा रंगारंग कार्यक्रम चल रहा था। इन पंक्तियों की भयंकर 'वन्स मोर' हुई, तो मैंने फिर सुनाईं। फिर भी वन्स मोर हुई और तब तक होती रही जब तक कि लोग सुन-सुन के और मैं सुना-सुना के धाप नहीं गया। आगे की रॉ में बैठे एक काकाजी उठ के मंच पर आए और जेब में से 100 डॉलर का एक नोट निकाल कर मुझे भेंट किया। मैं बड़ा प्रसन्न हुआ... मैं क्या कोई भी प्रसन्न होता, तुम्हें मिलता तो तुम भी प्रसन्न होते... लेकिन मैं रातभर सोचता रहा कि आखिर ऐसी क्या बात थी इन पंक्तियों में कि लोगों ने इतना भारी प्रतिसाद दिया। जबकि दर्शकों में पटेल लोग बहुत कम थे.. ज्य़ादातर बंगाली, मराठी व दक्षिण भारतीय थे.. कुछ एक पाकिस्तानी भी थे। और मज़े की बात ये थी कि ज्य़ादातर लोग हिन्दी को पूरी तरह समझते भी नहीं थे। मैंने बहुत चिन्तन किया लेकिन समझ नहीं पाया।
अगले दिन नैशविल (टेनिसी) के डी.वी. पटेल ने बताया कि जो 40-50 लोग हिन्दी समझने वाले या गुजराती मूल के लोग थे उन्होंने तो इसलिए वन्स मोर किया क्यूंकि पूरे नॉर्थ अमेरिका में मॉटेल का सारा कारोबार पटेलों के हाथ में है और वे इस क्षेत्र में वाक़ई छाये हुए हैं जबकि अहिन्दी भाषियों ने सि़र्फ इसलिए पसन्द किया क्यूंकि उसमें पटेल का नाम था और वहां के लोग पटेल से सीधा अर्थ सरदार वल्लभ भाई पटेल लगाते हैं। अब चूंकि भारतीय ही नहीं, ग़ैर भारतीय भी सरदार पटेल की स्मृति को अत्यधिक सम्मान देते हैं इसलिए लोगों ने इन पंक्तियों को इतना सराहा। उनकी समझ में और कुछ आया या नहीं, लेकिन पटेल ज़रूर समझ में आ गया था। ये सुनके मेरे रोंगटे खड़े हो गए.... इतना सम्मान? भारत के नेताओं का इतना सम्मान? काश... कि ऐसे नेता आज भी होते... लेकिन आज तो नेता ऐसे मिल रहे हैं कि
सर में भेजा नहीं है फिर भी सोच रहे हैं
खुजली ख़ुद को है, पब्लिक को नोच रहे हैं
अब क्या बतलाऊं हाल मैं इन नेताओं का
मैल जमी है चेहरे पर और दर्पण पोंछ रहे हैं
पुराने नेताओं और आज के नेताओं में ज़मीन-आस्मां का फ़र्क है। पहले नेता से ऐसे बात होती थीः नेताजी कहां से आ रहे हो - दिल्ली से आ रहा हूं, कहां जा रहे हो- अपने चुनाव क्षेत्र में जा रहा हूं, यहां कैसे-कलेक्टर से थोड़ा काम था गांव का, वही करवा रहा हूं। जबकि आज के नेता से ऐसी बात होती है : नेताजी कहां से आ रहे हो-कांग्रेस से आ रहा हूं, कहां जा रहे हो-भाजपा में जा रहा हूं, यहां कैसे - बसपा वालों का भी कॉल आने वाला है, उसी के लिए खड़ा हूं।
इन ख़ुदगर्ज़ और अवसरवादी नेताओं की एक लम्बी जमात है इसीलिए इतने खराब हालात हैं। काश.. ये नेता सुधर जाएं तो भारत के भी दिन फिर जाएं..। पर अपनी तो तक़दीर ही खराब है। अपन मांगते कुछ हैं और मिलता कुछ है। राम को मांगा तो राम नहीं मिले सुखराम मिल गया, राणा प्रताप मांगा तो विश्र्वनाथ प्रताप मिल गया, झांसी की रानी मांगी तो रानी मुखर्जी मिली और सरदार पटेल को चाहा तो सरदार मनमोहनजी मिल गए। पता नहीं कब कोई ढंग की सरकार आएगी...और देश को अच्छे से चलाएगी। लेकिन अनुभव बताता है कि अब ईमानदार नेता मिलने बड़े मुश्किल हैं। जैसे धतूरे में इत्र नहीं होता वैसे ही आजकल नेता में चरित्र नहीं होता। कवि हुक्का बिजनौरी ने जो बात पुलिस के लिए कही, वही मैं नेता के लिए कहता हूं-
नेता और ईमान?
क्या बात करते हो श्रीमान?
सरदारों के मोहल्ले में नाई की दुकान?
ढूं....ढ़ते रह जाओगे

हमारा गुजरात

गुजरात नी सू वात छे
गुजरात तो गुजरात छे

पत्थर में पारस की,
पंछी में सारस की,
तिथियों में ग्यारस की बात ही कुछ और है,
दुनिया में एशिया की,
एशिया में भारत की
और भारत में गुजरात की बात ही कुछ और है।

गुजरात का बन्दा.....कमाल का बन्दा, बिजनैस माइण्डेड, इतना बिजनैस माइण्डेड कि कूएं में भी गिर जाए तो चिल्लाता बाद में है, पहले नहाता है और तब तक नहाता है जब तक कि मीडिया वालों का कैमरा नहीं आ जाता है। गुजरात का बन्दा..डॉक्टर भी बनेगा तो दान्त का। मेरे एक दोस्त हैं डॉक्टर वशिष्ठ, डेन्टिस्ट हैं। मैंने पूछा, 'क्या कारण है कि आप डेन्टिस्ट ही बने?' वो बोले, 'धन्धा नी वात छे। क्या है कि बाकी सारे पार्ट बॉडी में एक दो पीस होते हैं पर दान्त बत्तीस होते हैं।
गुजराती आदमी चूंकि व्यावसायिक ज्ञान में सबसे आगे होता है इसलिए मैंने एक काका से पूछा, 'काका, दूकान लगाने के लिए कोई बढिय़ा जगह बताओ', वो बोले, 'शमशान में लगाओ, वहां उधार डूबेगी नहीं, अगर कोई लेके चला भी जाएगा, आखिर तो वहीं आएगा।' गुजराती लोगों की व्यावसायिक सफलता इन दो पंक्तियों में उजागर होती हैं कि शादी चाहे किसी की हो, पहली मनुहार बाराती की होगी और चांद पर बस्ती पहले रूस बसाये या अमेरिका पर वहां पहली दूकान किसी गुजराती की होगी।

यहां पहली का उल्लेख मैंने इसलिए किया है क्योंकि दुनिया का सबसे पहला मंदिर (सोमनाथ) गुजरात में हैं, वेदों का पहला हिन्दी टीकाकार व भाष्यकार (स्वामी दयानंद) गुजरात में हुआ, अहिंसा के सहारे समूचे देश को एक सूत्र में बान्धने वाला पहला नेता या यूं कहें लोक नेता (महात्मा गांधी) गुजरात में हुआ, संगीत की दुनिया को स्वरलिपि की सौगात देने वाला महान संगीतज्ञ (उस्ताद मौलाबख्श) गुजरात ने दिया, भारत को पहला लौहपुरूष (सरदार वल्लभभाई पटेल) गुजरात ने दिया, हमारी लोकसभा को पहला अध्यक्ष (गणेश माळवणकर) गुजरात ने दिया, भारत में वस्त्रउद्योग का श्रीगणेश करने वाला पहला उद्योगपति (कस्तूरभाई लालभाई) गुजरात ने दिया, सिनेमा जगत की पहली बोलती फ़िल्म (आलमआरा) भी एक गुजराती ने बनाई, भारतीय टेस्ट क्रिकेट को पहली विजय भी एक गुजराती क्रिकेटर ने दिलाई, भारत का पहला का शक्कर कारखाना (बारडोली) भी गुजरात में कायम हुआ और स्वमूत्र चिकित्सा का ज्ञान देने वाले पहले विद्वान (मोरारजी देसाई) के साथ-साथ शेयर बाज़ार को हिला देने वाला पहला महा घोटालेबाज़ (हर्षद मेहता) भी गुजरात ने ही दिया।

जनरल माणेक शा, सैम पित्रोदा, सुनीता विलियम्स, विक्रम साराभाई, महादेव देसाई व धीरू भाई अंबानी जैसे महान लोगों की एक लम्बी सूची है जिन्होंने अपने पुरूषार्थ से गुजरात के सम्मान और स्वाभिमान को पूरी दुनिया में जगमगाया है। आओ गुजरात दिवस के स्वर्णिम अवसर पर इस रत्नगर्भा धरती को और इस धरती के रत्नों को प्रणाम करें और विश्वास व्यक्त करें कि आने वाले समय में गुजरात हमारे देश को वो प्रधानमंत्री भी देगा जो पूरी दुनिया में भारत को सबसे ऊंचे सिंहासन पर बैठाकर इसे पुनः विश्वगुरू होने का सम्मान दिलाएगा।

भक्ति भावना से उजियारा गुजरात
साहित्य सुधा की रसधारा गुजरात
कला-संस्कृति का रखवारा गुजरात
शौर्य और वीरता का नारा गुजरात
सौन्दर्य का शीतल फौव्वारा गुजरात
वसुधा की शान का सितारा गुजरात
दुनिया में सबसे है न्यारा गुजरात
स्वर्ग-सा सुरम्य है हमारा गुजरात

पीएम साहब शर्मिन्दा हैं

माननीय मनमोहनसिंहजी आजकल शर्मिन्दा हैं और घोर शर्मिन्दा हैं। इतने शर्मिन्दा हैं कि दुनिया में किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे। इसलिए वे उसे छुपाते फिर रहे हैं, लेकिन मुंह है कि छुपने का नाम नहीं ले रहा है, जितना छुपाओ उतना ज्य़ादा ज़ूम होकर सामने खड़ा हो जाता है। अब करे तो क्या करे? कैसे आंख मिलाये वे मिस्टर क्वात्रोची से जिसके पीछे भाजपा वाले लट्ठ लेकर पड़े हैं और पूरी दुनिया भारत सरकार पर थू-थू कर रही है। हालांकि शर्मिन्दगी के मामले में मनमोहनजी तन्हा नहीं हैं, अकेले नहीं हैं, सोनियाजी से लेकर कपिल सिब्बल तक सारे के सारे कांग्रेसी लीडर शर्मसार हैं और अपने कर्मों को रो रहे हैं। या यूं कहो कि रो रो कर क्वात्रोची के पांव धो रहे हैं । लेकिन मनमोहनजी शर्मिन्दा होने में टॉप पर हैं। वे सर्वाधिक शर्मिन्दा हैं क्योंकि वे सर्वाधिक ग्लोबलाइज्ड हैं और सोनियाजी द्वारा हाइली ओब्लाइज्ड हैं।
देश के प्रधानमंत्री का यूं शर्मिन्दा होना, जनता के लिए बड़े दुःख की बात होनी चाहिए, लेकिन मुझे कोई दुःख नहीं है। उलटे मुझे तो ख़ुशी हो रही है, ख़ुशी ही नहीं, गर्व हो रहा है कि अभी भी अपने नेताओं में कुछ शर्म बाकी है। पूरी तरह मरी नहीं है। शर्म है, तभी तो शर्मिन्दा हो पा रहे हैं, यदि शर्म ही नहीं होती तो शर्मिन्दा कैसे होते? आने दो मेरी पत्नी को, मैं उसको बताऊंगा कि हमारे देश के नेताओं में अभी भी शर्म बाकी है। सॉरी...आई. एम. रीयली सॉरी मनमोहनजी, मैंने नेताओं को बेशर्म समझ लिया था। अच्छा किया आपने मेरी आंखें खोल दीं।
लेकिन सर.... एक बात तो बताइये, क्या आपने अपनी सारी शर्म मिस्टर क्वात्रोची के लिए ही बचा रखी थी जो आज खर्च कर रहे हैं? क्योंकि इसके पहले आपने कभी कहा नहीं कि आप शर्मिन्दा हैं। मुझे याद है, आपके वित्तमंत्री रहते, सेबी की नाक के नीचे बड़े-बड़े घोटाले हुए हैं। हर्षद मेहता वाले 10 हजार करोड़ के महा घोटाले ने अनेक लोगों को कंगाल कर दिया था और कितने ही लोगों को आत्म हत्या करनी पड़ी थी, तब तो आप शर्मिन्दा नहीं हुए। स्वर्गीय हर्षद मेहता ने तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय नरसिंहराव को एक करोड़ रिश्वत देने की बात कही, तब भी आप शर्मिन्दा नहीं हुए, एनरान पावर प्रोजेक्ट यानी एक अमेरिकी कम्पनी ने हमें जीभर कर लूटा, तब भी आप शर्मिन्दा नहीं हुए, आदिवासी और गरीब औरतों को अक्सर निवस्त्र करके गांव में घुमाया जाता है पर आपको शर्म नहीं आती, अफज़ल गुरू जैसे दुर्दांत आतंकवादी को अभी तक फांसी पर नहीं लटकाया गया, इसके लिए भी आप शर्मिन्दा नहीं हैं, शेयर बाजार में भयंकर गिरावट के कारण लोग मरे पर आप तनिक भी शर्मिन्दा नहीं हुए, बाढ़-अकाल-दावानल तथा भूस्खलन के अलावा देश में आग की बड़ी-बड़ी भीषण दुर्घटनाएं घटीं, रेल हादसों में हज़ारों लोग मरे तथा डेंगू, चिकनगुनिया व बर्ड फ्लू जैसी बीमारियों ने देश में कोहराम मचाया व सरकार कुछ नहीं कर सकी, लेकिन आप शर्मिन्दा नहीं हुए और तो और संसद में सरेआम नोटों की गड्डियां दिखाई गयीं तब सांसदों की खरीद फरोख्त पर भी आपको शर्म नहीं आयीं थी
याद करो डा. साहब, याद करो.... मुंबई में पाकिस्तानी आतंकियों के प्रवेश ने पूरी दुनिया के सामने हमें नंगा कर दिया, पाकिस्तानी हत्यारों ने हमारी भारत मां के अनेक वीर सपूतों का खून बहा दिया, लेकिन आपको शर्म नहीं आयी, आपको विदेशी कंपनियां भारत बुलाने में शर्म नहीं आयी, महंगाई की मार से जनता को सताने में शर्म नहीं आयी तथा एक महिला के इशारों पर कठपुतली की तरह नाचने में शर्म नहीं आयी, लेकिन जहां शर्म नहीं आनी चाहिए थी वहां आपको शर्म आ गयी। क्यों डाक्टर साहब, दाल में कुछ काला है या पूरी दाल ही काली है। बोलिये डाक्टर साहब बोलिये, बोलिये ना प्लीज़.... क्या एक क्वात्रोची हम करोड़ों भारतीयों से भी बड़ा है...

डोन्ट बी इमोशनल

श्रीमान लालकृष्ण अडवाणीजी,
सादर वन्दे।
गत दिनों बाबा भीमराव अम्बेडकर जयंती के अवसर पर हमारी संसद में जो तमाशा हुआ उसे पूरे देश ने देखा और देख कर शर्मिंदा भी हुआ। जिस प्रकार अखबार में छपे फोटो में आप दोनों के सिर झुके हुए थे उसी प्रकार हम सब के भी झुक गए थे। लेकिन आप इस घटना को दिल पर मत लेना क्योंकि ये अपमान केवल आपका नहीं, बल्कि समूचे भारतीय परिवेश का है, राम-बुद्ध और महावीर के देश का है जिसमें पारस्परिक वैमनस्य और घृणा के लिए कोई जगह नहीं। हालांकि 'गुस्सा और देख लेने का भाव' तो आप में भी भरा था लेकिन आपने उसे जाहिर नहीं होने दिया। ये नेता में अभिनेताओं वाले विशेष गुण हैं जो सब में नहीं पाए जाते। आप में हैं, मुबारक हो।
आपने तो अपना हाथ भी बढ़ाया और वाणी से भी हाय हैलो किया लेकिन उन्होंने मुंह फेर कर अपने भीतर भरी हुई कड़वाहट दिखा दी जिससे पूरा माहौल खराब हो गया था। हो सकता है इसके लिए बाबा भीमरावजी और बापू गांधीजी ने उन्हें डांटा भी हो, लेकिन जहां तक मेरा ख्याल है, कुछ तो गलती आपकी भी थी। आखिर आपने ये कैसे सोच लिया कि जिस व्यक्ति की आप सरेआम जनसभाओं में धुर्रियां उड़ा रहे हैं, उसे एक कमज़ोर और नाकारा प्रधानमंत्री बता रहे हैं तथा उसकी कुर्सी के लिए सबसे बड़ा खतरा बन कर खड़े हुए हैं, वह रूबरू मिलने पर आपको नमस्ते कहेगा या हाथ मिलाएगा अथवा गले मिल कर अभिनंदन करेगा? छोड़ो जी, ऐसी विनम्रता गई तेल लेने। ऐसे विनम्र तो शास्त्रीजी थे। ये शास्त्रीजी नहीं, अर्थशास्त्रीजी हैं। अपना एक एक कदम बाज़ार का रुख देखकर चलते हैं और सबसे बड़ी बात ये है कि बाज़ार की तरह स्वयं भी अंदर से टूटे हुए हैं। अब एक टूटे फूटे और मंदी के मारे आदमी से स्वस्थ व्यक्ति जैसे सद्व्यवहार और शिष्टाचार की अपेक्षा रखना हो सकता है आचार संहिता के खिलाफ़ न हो, लेकिन वर्तमान राजनीतिक मूल्यों (?) के खिलाफ़ तो है ही। आपको उनसे ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए थी।
खैर.. जो हो गया, उसपे मिट्टी डालो और आगे बढ़ो, कम आन, बी प्रोफेशनल, डोन्ट बी इमोशनल, क्योंकि ये चुनाव का समय है इसलिए पूरे तनाव का समय है। अब भावुकता और मित्रता के दिन लद गए। वो तो त्रेता था जिसमें राम ने रावण को मारने के पहले उसकी विद्वता के लिए प्रणाम किया था, वो तो द्वापर था जिसमें अर्जुन जैसे धनुर्धर, भीष्म और द्रोण पर आक्रमण के पहले उन्हें प्रणाम करके उन्हीं से आशीर्वाद प्राप्त किया करते थे। आज तो राजनीति इतनी पतित और गर्हित हो गई है कि न कोई किसी का लिहाज करता है न ही किसी को शर्म आती है। क्योंकि चुनाव-चुनाव नहीं दंगल हो गया है। वैसे वे भी क्या करते, उनकी भी तो मजबूरी है कि वे अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते। अरे भाई, ये कुर्सी उन्हें आपने नहीं दी। जिस महिला के कारण वे पीएम पद का मजा लूट रहे हैं, उसी की प्यारी बिटिया पर जब आपके सिपहसालार नरेन्द्र मोदी शब्दों के पैने बाण चलाते हैं और आप स्वयं राहुल बाबा को बच्चा कहकर चिढाते हैं तो मैडम बर्दाश्त कैसे करेंगी और जब वे बर्दाश्त नहीं करेंगी तो उनके लोग भी कैसे करेंगे। इसलिए कुछ नहीं पड़ा इन बातों में, चुनाव लड़िए, जी भर के लडि़ए और जो थोड़ा बहुत भाईचारा व प्यार बचा है उसे भी छोड़िये ताकि दुनिया को पता तो चले कि भारत में आम चुनाव हो रहे हैं।

उजले नेता काला धन

चील की नज़र हमेशा मांस पर रहती है। यह एक पुरानी कहावत है लेकिन आजकल चूंकि चीलें देखने को नहीं मिलतीं इसलिए मैंने इसका नवीन संस्करण बना दिया है कि नेता की नज़र हमेशा पैसे पर रहती है। जिस प्रकार चीलें आकाश में बहुत ऊंचाई पर उड़ते हुए भी ज़मीन पर पड़ा मांस का टुकड़ा देख लेती हैं और झपट्टा मार कर ले उड़ती हैं इसी प्रकार हमारे भारत के नेताओं ने भी यहीं से स्विस बैंकों में पड़ा रुपया देख लिया है।
कमाल की नज़र है हमारे नेताओं के पास। हज़ारों मील दूर पड़ा कालाधन भी देख लेते हैं। ये अलग बात है कि इन्हें अपने देश में पड़ा माल दिखाई नहीं देता। नामांकन पत्र भरते समय जब बड़े-बड़े महारथी नेता अपनी सम्पत्ति और रुपया पैसा का ब्यौरा दे रहे थे तो पूरे देश के साथ-साथ मैं भी हैरान था, हैरान क्या परेशान था कि ये क्या? इनके सारे रुपए पैसे कहां गए? जिनके पास हज़ारों करोड़ होना चाहिए, वे एक-दो करोड़ पर कैसे आ गए? क्या भारत को चलाने वाले दिग्गज नेता इतनी साधारण सी वेल्थ के स्वामी हैं? मेरा मन कहता है कि रुपया तो है और स्विस बैंकों से भी कहीं ज्यादा रुपया हमारे देश में है लेकिन काला है ना, इसलिए दिखाई नहीं देता। उजले वस्त्रधारी हमारे कर्णधार इसमें झांकना ही नहीं चाहते वे जानते हैं कि इस अंधेरे में रखा कालाधन किसी और का नहीं, अपना ही है या किसी अपने वाले का है। इसलिए निकल पड़े मजबूत व पक्के इरादे के साथ स्विस बैंक की ओर। इसके दो फायदे हैं एक तो अपना धन सुरक्षित रहेगा, दूसरा जनता भी जय-जयकार करेगी कि देखो ये नेता कितने महान हैं जो विदेशों में पड़ा काला धन देश में वापस लाने की बात करते हैं। मैंने एक छुटभैये नेता से पूछा, क्या वाकई आप स्विस बैंकों में पड़ा काला धन वापस भारत में लाएंगे। वो बोले, क्यों नहीं लाएंगे। मैंने पूछा, इसकी क्या गारंटी है, वो बोले, हमारा बचन ही गारंटी है। हमने जो कह दिया सो कह दिया, जो कह दिया उसे पूरा करेंगे। मैंने कहा, कहा तो आपने पहले भी बहुत कुछ है लेकिन पूरा कुछ नहीं किया। एक बार आपने मंदिर बनाने का वादा किया था। वादा ही नहीं, दावा किया था कि हम सत्ता में आ गए भव्य मंदिर का निमार्ण करेंगे लेकिन आपने नहीं किया उसके बाद आपने वादा किया था कि हम सत्ता में आ गए तो मुंबई बम धमाकों के जिम्मेदार दाऊद इब्राहिम और उसके साथियों को भारत लेकर आएंगे ओर उन्हें मृत्यु दण्ड देंगे। उसमें भी आप असफल रहे।' मेरी बातें सुनकर उस नेता की त्यौरियां चढ़ गई। मैंने कहा, ' क्रोध मत कीजिए, जनता के लिए कुछ काम कीजिए ताकि जनता आपका भरोसा कर सके और आपको अपना समर्थन दे सके। रही बात स्विस बैंकों से कालाधन लाने की, तो वह आपको पांच साल पहले करनी चाहिए थी ताकि अब तक इस मुद्दे पर पूरा देश एक हो जाता और आपको चुनाव लड़ने का बड़ा मंच बना बनाया मिल जाता। लेकिन यदि वाकई आप देशहित में सोचते हैं तो पहले भारत में छुपा कालाधन निकलवाइए, भ्रष्ट अफसरशाहों व राजनीतिकों के नामी, बेनामी खाते खंगालिए और उन्हें निचोडि़ये, बहुत माल मिलेगा।' उन्होंने मुझे खिसियानी नज़र से देखा तो मैंने ये शेर मारा-

सोने की कैंची लाओ कि मुन्सिफ़ के लब खुलें
क़ातिल ने होंठ सी दिए चांदी के तार से

आचार संहिता या लाचार संहिता

'घर में नहीं दाने, पर अम्मा चली भुनाने' ये एक मुहावरा है और बड़ा प्यारा मुहावरा है। इसका रचयिता कौन था, इसका जन्म कहां और किन हालात में हुआ, इसकी मुझे न तो कोई जानकारी है तथा न ही मैं जानने को उत्सुक हूं। अपने को क्या लेना-देना यार, कोई भी हो, हमें क्या फ़र्क पड़ता है? हमें अपने ख़ुद  के दादाजी के दादाजी का नाम मालूम नहीं है तो दूसरों का इतिहास पढऩे का औचित्य ही क्या है। हां, इस मुहावरे का अर्थ अपन जानते हैं, इसलिए गाहे-ब-गाहे यूज .जरूर कर लेते हैं। आज भी करेंगे, क्योंकि चुनाव आयोग ने देश में एक आदर्श आचार संहिता लागू कर रखी है और ये संहिता उन लोगों के लिए लागू कर रखी है जिनका न तो कोई आदर्श है, न ही आचार। इसलिए ये आचार संहिता, लाचार संहिता बन चुकी है। रोज़-रोज़  इस संहिता का शीलभंग होता है, रोज़  मुकदमें दर्ज़  होते हैं, लेकिन साक्ष्य के अभाव में पीड़िता को न्याय नहीं मिल पा रहा। अब तो जैसे ''करत-करत अभ्यास  के जड़मति होत सुजान, रसरी आवत-जात ते सिल पर परत निसान'' वाली स्थिति हो गई है। अब तो आचार संहिता को बार-बार भंग होने की आदत सी पड़ गई है, इसलिए इसे उतनी तकलीफ़ नहीं होती जितनी कि शुरू-शुरू में होती थी। लेकिन विषय चिन्ता का है और चिन्ता करनी चाहिए इसलिए कर लेते हैं क्योंकि अपने देश की चिन्ता अपने को ही करनी है, बराक ओबामा तो इस काम के लिए आएगा नहीं।
देखा जाए तो आचार संहिता से हमें कोई ख़ास ऐतराज़ नहीं है। आप लगाओ, .जरूर लगाओ, एक्सट्रा पड़ी हो, तो दो-चार एक साथ लगाओ लेकिन पहले कहीं आचार तो दिखाओ। कहीं तो दिखाओ, किसी के पास तो दिखाओ। अरे जब आचार ही नहीं है तो संहिता को क्या शहद लगाकर चाटें? बहुत हो गया नाटक, अब ये चूहे बिल्ली का तमाशा बन्द करो । जब आप किसी अपराधी को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य बता देते हैं तो वो अपनी लुगाई को मैदान में उतार देता है। आप 10 बजे लाउडस्पीकर बन्द करा देते हैं, तो टी.वी. पर विज्ञापन और भाषण शुरू हो जाते हैं जो रात भर चलते हैं। आप जनसभाओं की वीडियो शूटिंग करते हैं तो लोग उस फुटेज को डब किया हुआ तथा फ़र्जी बता देते हैं। क्या तीर मार लिया आचार संहिता ने ? सिवाय इसके कि जनता के सारे काम रुक गए। न कोई नया काम शुरू हो सकता है, न ही कोई घोषणा हो सकती है। इसलिए मैं कहता हूं ये आचार संहिता आचार संहिता नहीं, लाचार संहिता है। इसके पास कोई चारा नहीं। सारा चारा भाई लोगों के पेट में पहुंच चुका है और देश का भाईचारा अलगाव की लपेट में पहुंच चुका है।
अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहूं? देश को अब आचार संहिता की नहीं, विचार संहिता की .जरूरत है। क्योंकि आचार तो एक क्रिया है और क्रिया करने से होती है अपने आप नहीं होती जबकि करने में अपन कितने आलसी हैं ये तो बताने की बात ही नहीं है, दुनिया जानती है। विचार जो है वो कारण है और हर क्रिया की जननी है। इसे करना भी नहीं पड़ता क्योंकि ये स्वयंभू है। समय साक्षी है, हमारे राजनीतिकों के आचार से ज्य़ादा विचार दूषित हैं। दूषित विचार से शुद्ध आचार का सृजन हो ही नहीं सकता इसलिए आचार संहिता का अचार डालो और विचार संहिता लागू करो क्योंकि अब देश में विचार विषैले हो गए हैं और बहुत ज्य़ादा विषैले हो गए हैं।
'एक सांप ने एक नेता को डसा, नेता मज़े में पर सांप चल बसा' क्योंकि आज का स्वार्थी और सत्तालोलुप नेता सांप से भी ज्य़ादा .जहरीला हो गया है, इतना हुआ कठोर कि पथरीला हो गया है। इसका इलाज करो, जैसे भी होता हो जिस तकनीक से भी होता हो करो, वर्ना ये सांप पूरे देश को डस जाएगा और तुम्हारी आचार संहिता खड़ी-खड़ी देखती रह जाएगी।
'सादा जीवन- उच्च विचार' इस देश की व देश के महान नेताओं की परंपरा रही है। इस परंपरा को बचाने के लिए विचार पर नियंत्रण करो। अन्यथा तुम कितनी भी पाबन्दियां लगाओ, कितनी भी शूटिंग कराओ और चाहे कितने ही मुकदमें दर्ज़  कराओ, नतीजा ठन-ठन गोपाल ही आने वाला है।
'तुम मुझे ख़ून दो- मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा'  एक विचार था, 'अहिंसा परमोधर्मः' भी विचार था, 'ग़ाजिय़ों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्ते-लन्दन तक चलेगी तेग़ हिन्दोस्तान की' भी विचार था और 'जय जवान'-'जय किसान' के अलावा 'गरीबी हटाओ- देश बचाओ', 'तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहें न रहें' इत्यादि विचारों ने हमारे राष्ट्र और जनमानस को देश प्रेम से सराबोर किया है जबकि आजकल 'तिलक-तराजू और तलवार-इनके मारो जूते चार' जैसे विषैले विचार देश में घृणा का वातावरण बनाये हुए हैं। कोई किसी को बुढिय़ा बता रहा है, कोई किसी के हाथ काटने की बात करता है, कोई उत्तर भारतीयों के पीछे लठ्ठ लेके पड़ा है और कोई मां जितनी उम्रदराज़  महिला (महिला भी ऐसी-वैसी नहीं सर्वांगशक्तिमान मुख्यमंत्री सुश्री मायावती) को सार्वजनिक रूप से पप्पी देने की बात करता है तो बड़ा खेद होता है विचारों के इस सामूहिक पतन पर।
रोको, विचारों को अश्लील, अभद्र और अमानवीय होने से रोको अगर रोक सकते हो। नहीं रोक सकते तो आचार संहिता के ढक़ोसले को ही रोक लो, भगवान तुम्हारा भला करेगा। क्योंकि इस आचार संहिता से नेता नहीं जनता परेशान है। बाकी तुम जानो और तुम्हारा सिस्टम जाने।
तुम्हारी ऐसी की तैसी
जय हिन्द !
-अलबेला खत्री

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