तुम कहो तो मैं सितारे तोड़ लाऊं
तोड़ कर घर तक तुम्हारे छोड़ आऊं
तुम कहो तो  मैं समन्दर  को सुखा दूँ
उसका सारा खारापन  खा कर पचा दूँ
तुम कहो तो  बेर का हलवा बना दूँ
सारा हलवा तेरी कुतिया को खिलादूं
तुम कहो तो हिमशिखर पर घर बनालूँ  
और सूरज  पर नया दफ़्तर बनालूँ
तुम कहो तो चाँद पर झूला  लगा दूँ
बादलों की गोद में  बिस्तर बिछा दूँ
तुम कहो तो दिल्ली को  नीलाम कर दूँ
आगरे का  ताज तेरे नाम कर दूँ
इससे पहले कि  प्रिये ! मैं जाग जाऊं
खटिया से उठ कर कहीं पर  भाग जाऊं
जो कराना है करालो.............
जो कराना है करालो.............
जो कराना है करालो.............
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लेखक  द्वारा यह  रचना  अपनी  माँ,बहन,
पत्नी  और पड़ोसन को पढ़वा  दी गई है । 
किसी को  कोई आपत्ति नहीं है
-अलबेला खत्री
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
                      -
                    
शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा 
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
11 years ago

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

 
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4 comments:
अलबेला जी, बहुत सुंदर लगी रचना आप की, दुनिया है हंसना भी तो होना चाहिये, वेसे लिंग वाली कविता भी खराब नही, अगर लिंग शब्द खराब है तो लोग क्यो शिव लिंग की पुजा करते है, क्यो स्कुलो मै ्स्त्रि लिंग ओर पुलिंग पढाये जाते है, आप का आशय उस लिंग से नही था जो लोगो के दिमाग मै घुसा है.
चलिये छोडिये अब इन बातो को
Albela ji...abhi kuch din se hi apke blog ko pdna shuru kia ha..aaj ki post padke bada maza aya...
bas shirshak thoda atpata laga kavita k hisab se...fir bhi padke hasi aa gyi....mzedar ha..
shubhkamnaye....
भाई दिल्ली को नीलाम करने से पहले सोच लें दिल्ली में भी रहता हूँ. मैं नीलाम होने को तैयार नही हूँ.
भई अल्बेला जी, क्यों दिल्ली को नीलाम करने पे तुले हैं...नीलाम ही करना है तो लाहौर,रावलपिंडी,कराची इतने शहर हैं,बल्कि मन करे तो पाकीस्तान पर भी विचार कर सकते हैं...लेकिन भाई दिल्ली को बख्श दें :)
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