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Albela Khatri

आ जाओ मैदान में, आप सबको निमन्त्रण है इस महफ़िल में -



प्यारे मित्रो, सादर प्रणाम

आओ


आओ आओ एक खेल खेलें...खेल खेलें शेरो-शायरी का

आप सबको निमन्त्रण है इस महफ़िल में - 


 आप अपनी कोई भी कविता या शेर यहाँ रखें............

मैं उसका उत्तर स्वरचित कविता से दूंगा और तुरन्त दूंगा - 

खेल ये है कि आपको मुझे निशब्द करना है . अर्थात ऐसी 

कठिन शायरी भेजो जिसका जवाब देने में मुझे कठिनाई हो

.........बड़ा मज़ा आएगा .......तो आ जाओ मैदान में 

और भेज दो फड़कती हुई शायरी..........

मैं प्रतीक्षारत हूँ


जय हिन्द

-अलबेला खत्री


17 comments:

अभिषेक अग्निहोत्री April 27, 2012 at 12:21 AM  

इतनी सी बात पे ये हंगामा है किसलिए,
गर मैं न पिऊँगा तो पैमाना है किसलिए?
Abhishek Agnihotri

Unknown April 27, 2012 at 12:36 AM  

@ अभिषेक अग्निहोत्री
पैमाना छलक जाये न तिश्ना के हाथ से
रिन्दों को बस ये डर लग रहा है इसलिए

अभिषेक अग्निहोत्री April 27, 2012 at 1:29 AM  

ऐसा नहीं कि पहली बार का है तज़ुर्बा,
अब तक गुजार आए हैं हम भी पिए पिए।

Shah Nawaz April 27, 2012 at 9:47 AM  

सीने की बुझी राख में अंगारों की दमक बाकी है
हौसले पस्त क्यों हों, जोशीली खनक बाकी है

नादां ना कर गुमां, कि बूढ़ा हो चला है शेर
वोह बाजुओं का ज़ोर और दांतों की चमक बाकी है

इस सफ़र का थका हुआ रहबर न समझो आज
बस हम-कदम रहो, अगर चलने की सनक बाकी है

रज़िया "राज़" April 27, 2012 at 1:46 PM  

हम तो डर ही गये ,ये पढकर कि आ जाओ मैदान में....मुझे लगा फिर कहीं "जंतर-मंतर" पर...खेर आगे पढकर पता चला कि ये जंतरमंतरवाली बात नहिं ये तो महफ़िलोंवाली बात है।

निर्झर'नीर April 27, 2012 at 3:49 PM  

पी चुके हैं ज़ाम एक तेरी नज़र से हम !
हाथ में सजते नहीं अब प्याले शराब के !!

Ramakant Singh April 27, 2012 at 4:41 PM  

छलक आये अश्क क्यूँ हंसने से पहले .?
ऐतबार टूटा फिर क्यूँ ऐतबार से पहले..?

Unknown April 27, 2012 at 8:53 PM  

@अभिषेक अग्निहोत्री
तुम हो पुराने रिन्द ये हमको भी खबर है
फ़ोकट की पी के जाते हो बिन कुछ लिए दिए

Unknown April 27, 2012 at 9:19 PM  

@शाह नवाज़
सीने में बुझी राख को खरीदार नहीं मिलेगा
जो दर्दे-दिल को बांटे, ऐसा यार नहीं मिलेगा

मानुष जनम की baat kya ,अनमोल ये hira
इक बार मिल गया है, बार बार नहीं मिलेगा

thak kar safar जो rok diya,ruk hi jaayega
aage भी कोई ped saayadaar नहीं मिलेगा

Unknown April 27, 2012 at 9:26 PM  

@ निर्झर 'नीर'
नज़रों के जाम छोड़ो अब ओंठों से रस पियो
वरना भला क्या काम के ये दिन शबाब के

Unknown April 27, 2012 at 9:34 PM  

@ रमाकांत सिंह
आँखों में अश्क हो तो हँसने में मज़ा है
ऐतबार करो,धोखा खाओ,ये ही सज़ा है

Shah Nawaz April 30, 2012 at 9:32 AM  

वाह जी वाह! बहुत बढ़िया!

निर्झर'नीर April 30, 2012 at 1:10 PM  

bahut khoob .....accha laga

अंधेरों को चीरकर मैं पहुंचा हुँ यहाँ तक !
एक जुग्नू भी साथ दे तो मैं मंजिल को ढूँढ लूँ !!

Unknown April 30, 2012 at 3:39 PM  

@निर्झर नीर
मंजिल को ढूँढने के लिए चलना पड़ेगा
कोई जुगनू क्या करेगा, ख़ुद जलना पड़ेगा

सञ्जय झा May 4, 2012 at 3:42 PM  

sachhi me tabiyat khush ho gaya......

shabd-vilas uapas leta hoon
has-parihas me hamkadam ho jata hoon?

afsar July 21, 2016 at 12:22 PM  
This comment has been removed by the author.
afsar July 21, 2016 at 12:28 PM  

लबों पर हम सजा कर आयतें कुरआन निकले हैं,
वतन पर मरने मिटने का लिये अरमान निकले हैं,
जमाना गर तुला है जान लेने पे तो क्या डरना,
हथेली पर सजा कर हम भी अपनी जान निकले है. . . . .

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