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Albela Khatri

वन्दना करूँ, तुम्हारी वन्दना करूँ , ऐसी करूँ वन्दना कि बन्द ना करूँ




वन्दना करूँ,  तुम्हारी  वन्दना करूँ

ऐसी करूँ वन्दना कि  बन्द ना करूँ



माटी से बनी है किन्तु  मोतियों पे भारी है

शंख  सा स्वरूप  तेरा, सीप जैसी प्यारी है 

सारा जग झांके तुझे, झांकी तेरी  न्यारी है 

हमने तो  सदा ही  तेरी  आरती  उतारी है  

तू मिले, तो कैसे मैं आनन्द ना करूँ  

वन्दना  करूँ,  तुम्हारी  वन्दना करूँ .................



पाक है, पवित्र है तू, देह का श्रृंगार है 

सृष्टि में आने हेतु तू  ही मुख्य द्वार है 

चैन है, सुकून है, आराम है, क़रार है  

यौवन है बाग़ तो तू बाग़ की बहार है 

कैसे तुम पे गीत और छन्द ना करूँ 

वन्दना  करूँ, तुम्हारी वन्दना  करूँ ................


कोमल है, शीतल है, सुन्दर संरचना 

प्रभु ने बनाया तुम्हें  अनुपम  रचना  

भीड़ है लुटेरों की, तू  लुटने से बचना 

तेरी इच्छा के विरुद्ध करे कोई टच ना 

तेरा  अपमान मैं  पसन्द  ना करूँ 

वन्दना करूँ,  तुम्हारी वन्दना करूँ...........


- अलबेला खत्री

उज्जैन में  प्रतिष्ठित टेपा सम्मान प्राप्त करते हुए  हास्यकवि अलबेला खत्री





3 comments:

Padm Singh April 8, 2012 at 10:23 PM  

धन्य हो कविवर...

BS Pabla April 8, 2012 at 11:20 PM  

क्या गज़ब करते हो जी

DR. ANWER JAMAL April 9, 2012 at 12:59 AM  

ब्लॉगर्स मीट वीकली में आपका स्वागत है।
http://hbfint.blogspot.com/2012/04/38-human-nature.html

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