हिन्दू हृदयसम्राट श्री बालासाहेब ठाकरे के देहावसान से मुझे वैयक्तिक दुःख
पहुंचा है . उनकी सुप्रसिद्ध कार्टून पत्रिका मार्मिक के वर्धापन समारोह हों या
उनके नाती-नातिन के जन्म-दिवस समारोह, अनेक बार उनके साथ रंगारंग
महफ़िलें जमती थीं जिनमे वे तो हमारी कविता कम सुनते थे हम उनसे
हमारी हास्य कवितायें ज्यादा सुनते थे . अनेक कवियों की कवितायें उन्हें
याद थीं और हू बहू उसी शैली में सुना कर तो वे विस्मित कर देते थे . हिंदी
और हिंदी कवियों को भरपूर सम्मान और स्नेह देने वाले महान कलाकार,
रसिक श्रोता, मुखर वक्ता,प्रखर नेता और सजग समाजसेवी के साथ साथ
साथ सतत समर्पित राष्ट्रभक्त लोकनेता श्रद्धेय बाला साहेब की पावन स्मृति
को शत शत आत्मिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और उन्हीं की मनपसंद
अपनी एक कविता आज यहाँ प्रस्तुत करता हूँ
विनम्र
-अलबेला खत्री
इसलिए गर्व से कहते हैं - हम हिन्दू हैं
क्योंकि हमारी देह में कट्टरता का कलुषित रक्त नहीं है
सीधे सादे प्रेमपुजारी हैं हम बगुले भक्त नहीं है
कनक - कामिनी की खातिर हमने न क़त्लेआम किया
नहीं लुटेरा बन कर हमने कभी कहीं कोहराम किया
हाथ उठा न कभी हमारा बेबस पर मज़लूमों पर
हमने कभी नहीं अंगारे बरसाए मासूमों पर
कभी नहीं कुचला है हमने कुसुमों को - कलिकाओं को
शक्तिओ कहा है, भोग की वस्तु नहीं कहा महिलाओं को
बूंद बूंद में, कण कण में प्रभु की सत्ता को जाना है
नहीं पराया गिना किसी को, सबको अपना माना है
हम नफ़रत के नाले नहीं हैं, स्नेहक्षीर के सिन्धु हैं
इसलिए गर्व से कहते हैं - हम हिन्दू हैं, हम हिन्दू हैं
-अलबेला खत्री
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