छोटी सी यह ज़िन्दगी, छोटा सा संसार
छोटे हो कर देखिये, मिलता कितना प्यार
अपनों की परवाह तो करते हैं सब लोग
ग़ैरों की ख़िदमत करो, ये है सच्चा योग
मेरे घर के सामने, रहती है इक हूर
दिल के है नजदीक पर, बाहों से है दूर
पुरखे अपने चल दिए, करके अच्छे काम
अपनी यह कटिबद्धता, नाम न हो बदनाम
तेरी मेरी क्या करूँ, क्या है इसमें सार
कोशिश है बाँटा करूँ, सबको अविरल प्यार
- अलबेला खत्री
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5 comments:
बढिया दोहे
bahut khoob.
सभी दोहे बहुत बढ़िया हैं!
चित्रावली भी अच्छी है!
तेरी मेरी क्या करूँ, क्या है इसमें सार
कोशिश है बाँटा करूँ, सबको अविरल प्यार
बढ़िया दोहे
BAHUT DINON KE BAAD AAPKE BLOG PAR AAYAA HUN.
AAPKE DOHE PADH KAR AANADIT HO GYAA HUN .
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