अभी हाल ही एक नवोदित हिन्दी कवयित्री को सिर्फ़ इसलिए
सरे-महफ़िल शर्मसार होना पड़ा क्योंकि उसे चन्द उर्दू लफ़्ज़ों का
मुकम्मल ज्ञान नहीं था . अपने आप को खां साहब समझने वाले
कुछ उर्दू शायरों ने उसकी खूब लाहनत-मलामत की .........यह देख
मुझे दुःख हुआ . बहुत दुःख हुआ .
उर्दू में लिखने वाले लोग हिंदी में लिखने वालों को नीचा दिखाने का
कोई मौका नहीं चूकते . मौका न मिले तो उसे पैदा कर लेते हैं . यह
एक ओछी और घटिया मानसिकता है जिससे उर्दू वालों को बचना
चाहिए . क्योंकि कुछ शब्द उर्दू में ऐसे हैं जिनके बारे में सही उच्चारण
का हर हिन्दी भाषी को पता नहीं है . इसका मतलब यह नहीं कि आप
हिन्दी भाषी का मज़ाक उड़ाने के अधिकारी हो गए .
हार्दिक दुःख सहित
-अलबेला खत्री
1 comments:
sahmat
sahi kaha
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