Albelakhatri.com

Hindi Hasya kavi Albela Khatri's blog

ताज़ा टिप्पणियां

Albela Khatri

कितने साल घिसा है ख़ुद को, तब ये दौलत पाई है




सूनापन है,   सन्नाटा है,   तल्खी है,   तन्हाई है


ऐसे में क्या ख़बर कहाँ से ग़ज़ल उतर कर आई है



उमड़ रहा पुरज़ोर तलातुम जब मुर्शद के प्याले में 


पूछे कौन समन्दर से तुझमे कितनी गहराई है



महल तो है पर सपनों का है, घोड़े हैं पर ख़्वाबों के


चन्द तालियाँ, वाहवाहियां, अपनी असल  कमाई है



औरों ने कितना सरमाया जोड़ लिया है  बैंकों में


हमने  तो बस झख मारी है,  केवल धूल उड़ाई है



लाल किला लगता है गोया  महबूबा की लाली सा


ताजमहल भी किसी हसीना की कातिल अंगड़ाई है



सर पे चिट्टे बाल देख कर, काहे को शरमाऊं मैं


कितने साल घिसा है ख़ुद को, तब ये दौलत पाई है



प्यार-मोहब्बत, यारी-वारी, अपने बस की बात नहीं


जब भी कोशिश की "अलबेला" चोट करारी खाई है



____जय हिन्द !


2 comments:

Shah Nawaz February 20, 2013 at 9:44 AM  

वाह। बेहतरीन ग़ज़ल लिखी अलबेला जी।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' February 20, 2013 at 5:45 PM  

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी साधना का फल है यह!

Post a Comment

My Blog List

myfreecopyright.com registered & protected
CG Blog
www.hamarivani.com
Blog Widget by LinkWithin

Emil Subscription

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

Followers

विजेट आपके ब्लॉग पर

Blog Archive