सादगी एक शाही शान है जो कि बुद्धि-वैचित्र्य से बहुत ऊँची है
-पोप
सूरज प्रकाश की सदा पोशाक में है । बादल तड़क-भड़क से सुशोभित हैं
-रवीन्द्रनाथ टैगोर
सादगी क़ुदरत का पहला क़दम है और कला का आखरी
-बेली
स्त्रियों में सादगी मनोमुग्धकारी लावण्य है, उतना ही दुर्लभ जितनी कि
वह आकर्षक है
-डी फ़ेनो
स्त्रियों में सादगी मनोमुग्धकारी लावण्य है, उतना ही दुर्लभ जितनी कि वह आकर्षक है
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जो आदमी इरादा कर सकता है, उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं
इन्सान से यह उम्मीद कैसे मुमकिन है कि वह सलाह ले लेगा
जबकि वह चेतावनी तक से सावधान नहीं होता
-स्विफ्ट
सच्ची से सच्ची और अच्छी से अच्छी चतुराई दृढ संकल्प है
-नेपोलियन बोनापार्ट
जो आदमी इरादा कर सकता है, उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं
-एमर्सन
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happy woman - happy world
नारी आनन्द महोत्सव की एक संक्षिप्त video झलक
Labels: happy woman happy world इन चेन्नई , नारी , नारी आनन्द महोत्सव
18 दिसम्बर होगा दुनिया भर में "नारी खुशहाल दिवस"
नारी जगत के लिए गर्व और हर्ष का विषय है कि दुनिया के इतिहास में
पहली बार "happy woman - happy world" का उदघोष करते हुए
चेन्नई के विख्यात कलाप्रेमी समाजसेवी श्री गौतम डी जैन ने एक
ऐसा विराट कार्यक्रम नारी जगत के सम्मान,स्वाभिमान और संरक्षण
के लिए आरम्भ किया है जिसकी कोई मिसाल नहीं है
अधिक जानकारी के लिए कृपया इस लिंक को देखें और इस शानदार
ब्लॉग के अनुसरणकर्ता भी बनें
http://happywoman-happyworld.blogspot.com/2010/12/18-happy-womans-day.html
धन्यवाद,
-अलबेला खत्री
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मूर्खों की संगति में ज्ञानी ऐसा है जैसे अन्धों के बीच ख़ूबसूरत लड़की
झूठे की संगति करोगे तो ठगे जाओगे,
मूर्ख शुभेच्छु होने पर भी अहितकर ही होगा,
कृपण अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को अवश्य हानि पहुंचाएगा,
नीच आपत्ति के समय दूसरे का नाश करेगा ।
-सादिक
मूर्खों की संगति में ज्ञानी ऐसा है
जैसे अन्धों के बीच ख़ूबसूरत लड़की
-शेख सादी
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ख़ुदा किसके प्रति दयालु है ?
दया से लबालब भरा हुआ दिल ही सबसे बड़ी दौलत है;
क्योंकि दुनियावी दौलत तो
नीच आदमियों के पास भी देखी जाती है
-सन्त तिरुवल्लुवर
दया के शब्द संसार के संगीत हैं
-फ़ेवर
जो ख़ुदा के बन्दों के प्रति दयालु है, ख़ुदा उसके प्रति दयालु है
-हज़रत मुहम्मद
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खिदमतेख़ल्क ही तो इन्सानियत का सरमाया है
लाचारी नहीं है
मुझे आडम्बर रचने की
बीमारी नहीं है
इसलिए हौसला जीस्त का कभी पस्त नहीं होता
ऐसा कोई क्षण नहीं, जब मनवा मस्त नहीं होता
किन्तु किसी के घाव पर
मरहम न लगा सकूँ, इतना भी व्यस्त नहीं होता
द्वार खुले हैं मेरे घर के भी और दिल के भी सब के लिए
भले ही वक्त बचता नहीं आजकल याद-ए-रब के लिए
किन्तु मैं जानता हूँ
इसीलिए मानता हूँ
कि रब की ही एक सूरत इन्सान है
जो रब जैसा ही अज़ीम है, महान है
वो मुझे ख़िदमत का मौका देता है
ये उसका मुझ पर बड़ा एहसान है
ज़िन्दगी के तल्ख़ तज़ुर्बों ने हर पल यही सिखाया है
दहर में कोई नहीं अपना, हर शख्स ग़ैर है, पराया है
मगर रूह की मुक़द्दस रौशनी से एक आवाज़ आती है
कि खिदमतेख़ल्क ही तो इन्सानियत का सरमाया है
ये सरमाया मैं छोड़ नहीं सकता
जो चाहो कह लो
रुख अपना मैं मोड़ नहीं सकता
-अलबेला खत्री
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मुझे इसका गहरा अवसाद है, फिर भी आपका धन्यवाद है
जैसे
उजाला
छूने की नहीं, देखने चीज़ है
वैसे
आनन्द
देखने की नहीं, अनुभव की चीज़ है
और
हम मानव
अनुभव की नहीं, आज़माइश की चीज़ हैं
यदि आपको इस प्रकार की तमीज़ है
तो शेष सभी बातें बेकार हैं, नाचीज़ हैं
क्योंकि
व्यक्ति एक ऐसी इकाई है
जो दहाई से लेकर शंख तक विस्तार पा सकती है
इसी प्रकार
आस्था एक ऐसी कली है
जो कभी भी सतगुरु रूपी भ्रमर का प्यार पा सकती है
धर्म और धार्मिकता
एक नहीं
दो अलग अलग तथा वैयक्तिक उपक्रम हैं
जिन्हें लेकर समाज में बहुत सारे भ्रम हैं
जब तक इन पर माथा नहीं खपाओगे
जीवन क्या है ? कभी नहीं जान पाओगे
तुमने अनुभव किया है मानव को, आज़माया नहीं
इसलिए
मुझ मानव का वास्तविक रूप समझ में आया नहीं
काश तुम ज़ेहन से नहीं, जिगर से काम लेते
तो आज ज़िन्दगी में यों खाली हाथ नहीं होते
मुझे इसका गहरा अवसाद है
फिर भी आपका धन्यवाद है
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सहवाग नहीं था लेकिन आग का बवन्डर था
सचिन नहीं था न तो सही..........आज दिन था अपना
कल मैंने जो देखा, आज पूरा होगया वो सुन्दर सपना
सहवाग नहीं था लेकिन आग का बवन्डर था
जोश गज़ब का गौतम गम्भीर के अन्दर था
टीम इण्डिया ने आज ऐसा धो दिया
कि न्यू ज़ीलैंड फूट फूट कर रो दिया
घड़ी ख़ुशी की हम भारतीयों के घर आई
श्रृंखला पर आज विजय पाई
बधाई ! बधाई !! बधाई !!!
जय हिन्द
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अब हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैयालाल की
"तू सोलह बरस की, मैं सत्रह बरस का"
ऐसे गीत और गाने तो अपने बहुत सुने होंगे
परन्तु हमारा हीरो ज़रा हट के है, क्योंकि ये सत्रह का नहीं,
सत्तर साल का है जिसकी हीरोइन सोलह की नहीं, पैंसठ की है,
लेकिन आज उसके दिल में कुछ कुछ हो रहा है ......मजबूरन हीरो को
ये कहना पड़ता है :
आस पास हूँ मैं सत्तर के, तू है पैंसठ साल की
अब हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैयालाल की
सूख गई सारी सरितायें, रस का सागर सूख गया
सूख गई है गगरी तुम्हारी, मेरा गागर सूख गया
रोज़ मचलने वाला सपनों का सौदागर सूख गया
तन की राधा सूखी, मन का नटवरनागर सूख गया
ख़्वाब न देखो हरियाली के..........
ख़्वाब न देखो हरियाली के, ये है घड़ी अकाल की
अब हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैयालाल की-
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मत रोको रुख हवाओं के तिरपालों से, आबरू इन्सानियत की नीलाम होने दो
चन्द सरफिरे लोग
भारत में
भ्रष्टाचार मिटाने की साज़िश कर रहे हैं
यानी
कीड़े और मकौड़े
मिल कर
हिमालय हिलाने की कोशिश कर रहे हैं
मन तो माथा पीटने को हो रहा है काका
लेकिन मैं फिर भी लगा रहा हूँ ठहाका
क्योंकि इस आगाज़ का अन्जाम जानता हूँ
मैं इन पिद्दी प्रयासों का परिणाम जानता हूँ
सट्टेबाज़ घाघ लुटेरे
दलाल स्ट्रीट में बैठ कर
तिजारत कर रहे हैं
और
जिन्हें चम्बल में होना चाहिए था
वे दबंग सदन में बैठ कर
वज़ारत कर रहे हैं
देश के ही वकील जब देशद्रोहियों के काम आ रहे हों
और
गद्दारी में जहाँ सेनाधिकारियों तक के नाम आ रहे हों
पन्सारी और हलवाई जहाँ मिलावट से मार रहे हों
डॉक्टर,फार्मा और केमिस्ट
रूपयों के लालच में इलाज के बहाने संहार रहे हों
ठेकेदारों द्वारा बनाये पुल
जब उदघाटन के पहले ही शर्म से आत्मघात कर रहे हों
जिस देश में
पण्डित और कठमुल्ले
अपने सियासी फ़ायदों के लिए जात-पात कर रहे हों
और
दंगे की आड़ में
बंग्लादेशी घुसपैठिये निरपराधों का रक्तपात कर रहे हों
वहां
जहाँ
मुद्राबाण खाए बिना
दशहरे का कागज़ी दशानन भी नहीं मरता
और पैसा लिए बिना
बेटा अपने बाप तक का काम नहीं करता
सी आई डी के श्वान जहाँ सूंघते हुए थाने में आ जाते हैं
कथावाचक-सन्त लोग जहाँ हवाला में दलाली खाते हैं
भ्रष्टाचार जहाँ शिष्टाचार बन कर शिक्षा में जम गया है
और रिश्वत का रस धमनियों के शोणित में रम गया है
वहां वे
उम्मीद करते हैं कि
घूस की जड़ें उखाड़ देंगे
अर्थात
निहत्थे ही
तोपचियों को पछाड़ देंगे
तो मैं सहयोग क्या,
शुभकामना तक नहीं दूंगा
न तो उन्हें अन्धेरे में रखूँगा
न ही मैं ख़ुद धोखे में रहूँगा
बस
इत्ता कहूँगा
जाने भी दो यार...........छोड़ो
कोई और बात करो
क्योंकि
राम फिर शारंग उठाले
कान्हा सुदर्शन चलाले
आशुतोष तांडव मचाले
भीम ख़ुद को आज़माले
तब भी भ्रष्टाचार का दानव मिटाये न मिटेगा
वज्र भी यदि इन्द्र मारे, चाम इसका न कटेगा
तब हमारी ज़ात ही क्या है ?
तुम भ्रष्टाचार मिटाओगे
भारत से ?
तुम्हारी औकात ही क्या है ?
अभी, मुन्नी को और बदनाम होने दो
जवानी शीला की गर्म सरेआम होने दो
मत रोको रुख हवाओं के तिरपालों से
आबरू इन्सानियत की नीलाम होने दो
जय हिन्द !
-अलबेला खत्री
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मौजूदा क्षण के कर्तव्य का पालन करने से आने वाले युगों तक का सुधार हो जाता है
बड़ा काम यह नहीं है कि हम दूर की धुंधली हक़ीकत को देखें,
बल्कि यह है कि
हम उस फ़र्ज़ को बजाएं जो हमारी नज़र के सामने है
-कार्लाइल
मौजूदा क्षण के कर्तव्य का पालन करने से
आने वाले युगों तक का सुधार हो जाता है
-एमर्सन
Labels: एमर्सन , कार्लाइल , महापुरूषों के अमृत वचन और अनुभव , हास्यकवि अलबेला खत्री
न्यू ज़ीलैंड को लिटा दिया पूरी तरह से लैंड पर
गम्भीर, विराट और श्रीसंत ने कमाल कर दिया
इण्डिया की टीम ने जयपुर में धमाल कर दिया
न्यू ज़ीलैंड को लिटा दिया पूरी तरह से लैंड पर
इत्ता ज़ोर से मारा कि पिछवाड़ा लाल कर दिया
जय हो !
इण्डिया जय हो !
Labels: अलबेला खत्री , इण्डिया क्रिकेट , गम्भीर , जयपुर वन डे , विराट , श्रीसंत
क्या कण्डोम लगाने मात्र से बचाव हो जायेगा समाज का ? क्या व्यभिचार व दुराचार से मुक्ति मुद्दा नहीं है आज का ?
आज 1 दिसम्बर है
यानी विश्व एड्स दिवस
एड......जी हाँ एड ! यानी विज्ञापन
यानी पूर्ण व्यावसायिक आयोजन
दिन भर होगा कण्डोम का " बिन्दास बोल " टाइप प्रचार
यानी आज मनेगा निरोध निर्माताओं का वार्षिक त्यौहार
यानी बदनाम बस्तियों में जायेंगे नेता,क्रिकेटर और फ़िल्म स्टार
यानी कण्डोम कम्पनियां करेंगी आज अरबों - खरबों का व्यापार
सरकार द्वारा जनता को आज जागरूक बनाया जायेगा
यानी कण्डोम का प्रयोग कित्ता ज़रूरी है, ये बताया जायेगा
आज मीडिया में एच आई वी का विरोध दिखाया जाएगा
यानी टेलीविज़न पे खुल्लमखुल्ला निरोध दिखाया जायेगा
मैं पूछना चाहता हूँ इन तथाकथित एच आई वी विरोधियों से
यानी इन सरफ़िरे कण्डोमवादियों से और इन निरोधियों से
क्या कण्डोम लगाने मात्र से बचाव हो जायेगा समाज का ?
क्या व्यभिचार व दुराचार से मुक्ति मुद्दा नहीं है आज का ?
क्या इन्तेज़ाम किया आपने उन बेचारियों के इलाज का ?
लुटाया है जीवन भर जिन्होंने खज़ाना अपनी लाज का
तुमने हालत देखी नहीं कमाटीपुरा की बस्तियों में जा कर
इसलिए सो जाओगे आज स्कॉच पी कर, चिकन खा कर
लेकिन मैं नहीं सो पाऊंगा उनकी मर्मान्तक पीड़ा के कारण
भले ही कर नहीं सकता मैं उनकी वेदना का कोई निवारण
परन्तु प्रार्थना अवश्य करूँगा उन बूढ़ी- बीमार वेश्याओं के लिए
यानी रोटी और दवा को तरसती लाखों लाख पीड़िताओं के लिए
कि अक्ल थोड़ी इस समाज के कर्णधारों को आये
और उन गलियों में निरोध नहीं, रोटियां पहुंचाये
सच तो ये है कि नैतिक ईमानदारी के सिवा दूजा कोई रास्ता नहीं है
लेकिन नैतिकता का इन नंगे कारोबारियों से कोई वास्ता नहीं है
इसलिए लोक दिखावे को ये आज एड्स का विरोध करते रहेंगे
यानी दिन-रात चिल्ला-चिल्ला कर "निरोध निरोध" करते रहेंगे
-अलबेला खत्री
Labels: hasyakavi , कण्डोम , कारोबार , देह व्यापार , निरोध , विश्व एड्स दिवस