जैसे
उजाला
छूने की नहीं, देखने चीज़ है
वैसे
आनन्द
देखने की नहीं, अनुभव की चीज़ है
और
हम मानव
अनुभव की नहीं, आज़माइश की चीज़ हैं
यदि आपको इस प्रकार की तमीज़ है
तो शेष सभी बातें बेकार हैं, नाचीज़ हैं
क्योंकि
व्यक्ति एक ऐसी इकाई है
जो दहाई से लेकर शंख तक विस्तार पा सकती है
इसी प्रकार
आस्था एक ऐसी कली है
जो कभी भी सतगुरु रूपी भ्रमर का प्यार पा सकती है
धर्म और धार्मिकता
एक नहीं
दो अलग अलग तथा वैयक्तिक उपक्रम हैं
जिन्हें लेकर समाज में बहुत सारे भ्रम हैं
जब तक इन पर माथा नहीं खपाओगे
जीवन क्या है ? कभी नहीं जान पाओगे
तुमने अनुभव किया है मानव को, आज़माया नहीं
इसलिए
मुझ मानव का वास्तविक रूप समझ में आया नहीं
काश तुम ज़ेहन से नहीं, जिगर से काम लेते
तो आज ज़िन्दगी में यों खाली हाथ नहीं होते
मुझे इसका गहरा अवसाद है
फिर भी आपका धन्यवाद है
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
10 comments:
खाली हाथ तो सभी को ही हो जाना है ,केवल एक की बात क्यों ? दार्शनिक भाव की रचना ...सारी कविता !
काश ज़ेहन से नही जिगर से काम लेते तो,
आज ज़िन्दगी में खाली हाथ न होते।
सुन्दर अभिव्यक्ति।
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिये हैं। बधाई।
आनन्द
देखने की नहीं, अनुभव की चीज़ है
xxx
अलबेला जी
दर्शन समाहित कर दिया आपने ...क्या कहें ...शुक्रिया
काफी दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ! देर से आने के लिए माफ़ी चाहती हूँ! बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार कविता लिखा है आपने! आनन्द देखने की नहीं, अनुभव की चीज़ है..ये बात आपने बिल्कुल सही कहा है!
आपकी टिपण्णी और उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
....बहुत ही सुंदर शब्दों में आपने विचार व्यक्त किए है!..पढ कर बहुत अच्छा लग रहा है!
sampoorn manav jeeva ka hi vishleshan kar diya apne..
rachnadarm ki vividhta to aapki vishishtata hai hi ...
सुन्दर अभिव्यक्ति।ापका भी धन्यवाद है।
sundar kavita
alfaz nahin mere pas aapko shukriya kahne bke liye lekin itna zarur kahungi ki sukoon mila ek achi nazm padh kar
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