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Albela Khatri

खिदमतेख़ल्क ही तो इन्सानियत का सरमाया है

विनम्रता मेरा स्वभाव है
लाचारी नहीं है

मुझे आडम्बर रचने की
बीमारी नहीं है

इसलिए हौसला जीस्त का कभी पस्त नहीं होता
ऐसा कोई क्षण नहीं, जब मनवा मस्त नहीं होता
किन्तु किसी के घाव पर
मरहम न लगा सकूँ, इतना भी व्यस्त नहीं होता

द्वार खुले हैं मेरे घर के भी और दिल के भी सब के लिए
भले ही वक्त बचता नहीं आजकल याद-ए-रब के लिए
किन्तु मैं जानता हूँ
इसीलिए मानता हूँ
कि रब की ही एक सूरत इन्सान है
जो रब जैसा ही अज़ीम है, महान है
वो मुझे ख़िदमत का मौका देता है
ये उसका मुझ पर बड़ा एहसान है


ज़िन्दगी के तल्ख़ तज़ुर्बों ने हर पल यही सिखाया है
दहर में कोई नहीं अपना, हर शख्स ग़ैर है, पराया है
मगर रूह की मुक़द्दस रौशनी से एक आवाज़ आती है
कि खिदमतेख़ल्क ही तो इन्सानियत का सरमाया है

ये सरमाया मैं छोड़ नहीं सकता
जो चाहो कह लो
रुख अपना मैं मोड़ नहीं सकता

-अलबेला खत्री


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16 comments:

Anonymous December 7, 2010 at 10:35 AM  

waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaah !

Manish aka Manu Majaal December 7, 2010 at 10:36 AM  

वाह साहब, आज तो जोरदार कविताई ;)
जारी रखिये ....

Rachana Rawalwasiya December 7, 2010 at 10:37 AM  

gahri aur marmik poem

arora om December 7, 2010 at 10:40 AM  

satnam shri waheguru !

very nice

albelaji kabhi ambala bhi aao, aapke deedar hame bhi ho jave

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι December 7, 2010 at 10:50 AM  

भले ही व्क़्त बचता नहीं आजकल यादे-रब के लिये।

अच्छी अभिव्यक्ति। बधाई।

Aruna Kapoor December 7, 2010 at 12:10 PM  

...बहुत उमदा विचार....सुंदर अभिव्यक्ति!

परमजीत सिहँ बाली December 7, 2010 at 2:59 PM  

बहुत बढ़िया रचना है।बधाई स्वीकारें।

निर्मला कपिला December 7, 2010 at 6:54 PM  

मगर रूह की मुक़द्दस रौशनी से एक आवाज़ आती है

कि खिदमतेख़ल्क ही तो इन्सानियत का सरमाया है
बहुत सुन्दर सार्थक रचना। बधाई।

राज भाटिय़ा December 8, 2010 at 12:18 AM  

अलबेला जी बहुत दिनो के बाद आया हुं,ओर आते ही सुंदर रचना पढने को मिली, वेसे आप ने दिल जीत लिया हमारा, जल्द ही आप को फ़ोन करुंगा, धन्यवाद

योगेन्द्र मौदगिल December 8, 2010 at 7:10 AM  

wahwa.....

vijay kumar sappatti December 8, 2010 at 8:51 AM  

bahut hi acchi rachna albela ji .. kavita ke maadhyam se aapne jo insaniyat aur rab se judne ka sandesh diya hai , uske liye dil badhayi ..

vijay
poemsofvijay.blogspot.com
09849746500

अनुपमा पाठक December 8, 2010 at 5:50 PM  

किसी के घाव पर
मरहम न लगा सकूँ, इतना भी व्यस्त नहीं होता
waah!
bahut sundar rachna!

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) December 8, 2010 at 7:21 PM  

bahut khoob! wah!

S.M.Masoom December 8, 2010 at 7:40 PM  

बहुत खूब अलबेला जी

रचना दीक्षित December 8, 2010 at 8:54 PM  

अच्छी अभिव्यक्ति।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " December 9, 2010 at 2:39 PM  

vyang aur gambhirta saath-sath...
swabhiman to kya kahna!

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