विनम्रता मेरा स्वभाव है
लाचारी नहीं है
मुझे आडम्बर रचने की
बीमारी नहीं है
इसलिए हौसला जीस्त का कभी पस्त नहीं होता
ऐसा कोई क्षण नहीं, जब मनवा मस्त नहीं होता
किन्तु किसी के घाव पर
मरहम न लगा सकूँ, इतना भी व्यस्त नहीं होता
द्वार खुले हैं मेरे घर के भी और दिल के भी सब के लिए
भले ही वक्त बचता नहीं आजकल याद-ए-रब के लिए
किन्तु मैं जानता हूँ
इसीलिए मानता हूँ
कि रब की ही एक सूरत इन्सान है
जो रब जैसा ही अज़ीम है, महान है
वो मुझे ख़िदमत का मौका देता है
ये उसका मुझ पर बड़ा एहसान है
ज़िन्दगी के तल्ख़ तज़ुर्बों ने हर पल यही सिखाया है
दहर में कोई नहीं अपना, हर शख्स ग़ैर है, पराया है
मगर रूह की मुक़द्दस रौशनी से एक आवाज़ आती है
कि खिदमतेख़ल्क ही तो इन्सानियत का सरमाया है
ये सरमाया मैं छोड़ नहीं सकता
जो चाहो कह लो
रुख अपना मैं मोड़ नहीं सकता
-अलबेला खत्री
लाचारी नहीं है
मुझे आडम्बर रचने की
बीमारी नहीं है
इसलिए हौसला जीस्त का कभी पस्त नहीं होता
ऐसा कोई क्षण नहीं, जब मनवा मस्त नहीं होता
किन्तु किसी के घाव पर
मरहम न लगा सकूँ, इतना भी व्यस्त नहीं होता
द्वार खुले हैं मेरे घर के भी और दिल के भी सब के लिए
भले ही वक्त बचता नहीं आजकल याद-ए-रब के लिए
किन्तु मैं जानता हूँ
इसीलिए मानता हूँ
कि रब की ही एक सूरत इन्सान है
जो रब जैसा ही अज़ीम है, महान है
वो मुझे ख़िदमत का मौका देता है
ये उसका मुझ पर बड़ा एहसान है
ज़िन्दगी के तल्ख़ तज़ुर्बों ने हर पल यही सिखाया है
दहर में कोई नहीं अपना, हर शख्स ग़ैर है, पराया है
मगर रूह की मुक़द्दस रौशनी से एक आवाज़ आती है
कि खिदमतेख़ल्क ही तो इन्सानियत का सरमाया है
ये सरमाया मैं छोड़ नहीं सकता
जो चाहो कह लो
रुख अपना मैं मोड़ नहीं सकता
-अलबेला खत्री
16 comments:
waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaah !
वाह साहब, आज तो जोरदार कविताई ;)
जारी रखिये ....
gahri aur marmik poem
satnam shri waheguru !
very nice
albelaji kabhi ambala bhi aao, aapke deedar hame bhi ho jave
भले ही व्क़्त बचता नहीं आजकल यादे-रब के लिये।
अच्छी अभिव्यक्ति। बधाई।
...बहुत उमदा विचार....सुंदर अभिव्यक्ति!
बहुत बढ़िया रचना है।बधाई स्वीकारें।
मगर रूह की मुक़द्दस रौशनी से एक आवाज़ आती है
कि खिदमतेख़ल्क ही तो इन्सानियत का सरमाया है
बहुत सुन्दर सार्थक रचना। बधाई।
अलबेला जी बहुत दिनो के बाद आया हुं,ओर आते ही सुंदर रचना पढने को मिली, वेसे आप ने दिल जीत लिया हमारा, जल्द ही आप को फ़ोन करुंगा, धन्यवाद
wahwa.....
bahut hi acchi rachna albela ji .. kavita ke maadhyam se aapne jo insaniyat aur rab se judne ka sandesh diya hai , uske liye dil badhayi ..
vijay
poemsofvijay.blogspot.com
09849746500
किसी के घाव पर
मरहम न लगा सकूँ, इतना भी व्यस्त नहीं होता
waah!
bahut sundar rachna!
bahut khoob! wah!
बहुत खूब अलबेला जी
अच्छी अभिव्यक्ति।
vyang aur gambhirta saath-sath...
swabhiman to kya kahna!
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