धर्मेन्द्र जब कहते हैं, "कुत्ते मैं तेरा ख़ून पी जाऊंगा" या "बसन्ती, इन कुत्तों के
सामने मत नाचना" तो किसी को कोई तकलीफ़ नहीं होती, राजीव गाँधी जब
राम जेठमलानी को कुत्ता कहते हैं तो किसी हरामखोर को शर्म नहीं आती और
तो और पुरखों द्वारा बनाई गई कहावतों - कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होती,
धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का, कुत्ते की मौत मरना, तेरे नाम का कुत्ता पालूं,
कुत्ते को हड्डी डालना और हाथी चलते रहते हैं कुत्ते भोंकते रहते हैं इत्यादि से भी
किसी के पिछवाड़े में कोई काँटा नहीं चुभता परन्तु नरेन्द्र मोदी के मुंह से कुत्ता
शब्द निकल गया तो कुछ शरीफ़ लोगों की तशरीफ़ में बड़े बड़े गूमड़ उग आये ......
....है न हैरानी की बात .........
वे लोग कहते हैं - कुत्ते का नाम क्यों लिया ? बकरी का ले लेते, बिल्ली का ले लेते .
अरे भाई, नरेन्द्र मोदी ने कुछ गलत नहीं कहा . जो कहा ठीक कहा . ये और कोई
जाने या न जाने, मैं भली भान्ति जानता हूँ . और अगली पोस्ट में बताऊंगा भी
लेकिन पहले मैं आप सब मित्रों की राय जानना चाहता हूँ कि मोदी जी ने बिल्ली
और बकरी का नाम न लेकर कुत्ते का नाम ही क्यों लिया . आइये, फटाफट बताइए .....
-अलबेला खत्री
2 comments:
शायद इसलिये कि कार के नीचे कुत्ते ही आया करते हैं।
कुछ लोगों को तकलीफ कुते से नहीं बल्कि मोदी से है और वो उसी के चक्कर में अपना मानसिक संतुलन खो रहे हैं !
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