क्या हो रहा है भाई, ये क्या चल रहा है इस देश में? जिसे देखो वही हमारे प्रधानमन्त्री का मज़ाक उड़ा रहा है और उन्हें मैडम के हाथों की कठपुतली बता रहा है। न कोई आव देख रहा है न ताव, सब के सब लठ्ठ लेकर पीछे पड़े हैं और एक ही बात सिद्घ करने पर तुले हैं कि मनमोहनजी कमज़ोर हैं, मजबूत नहीं हैं। पहले इस प्रकार की बातें सिर्फ भाजपा वाले ही कर रहे थे, अब तो यूपीए के कुछ सदस्यों ने भी इसे बाहरी समर्थन देना शुरु कर दिया है। हालांकि सोनिया भाभी, राहुल बाबा और प्रियंका बेबी के साथ-साथ सिब्बल, संघवी और शर्मा जैसे महारथी बारम्बार देश को भरोसा दिला रहे हैं कि चिन्ता की कोई बात नहीं, सिंह साहब पर्याप्त मजबूत हैं, लेकिन लोग हैं कि टस से मस नहीं हो रहे, बस एक ही गाना गा रहे हैं कि देश को मजबूत प्रधानमन्त्री चाहिए इसलिए लौहपुरूष लालकृष्ण अडवाणी या नरेन्द्र मोदी ही चाहिए।
अब अडवाणीजी या मोदीजी लौहपुरूष हैं या नहीं ? और हैं तो कितने बड़े लौहपुरूष हैं अथवा कितना लोहा उनसे यह देश निकाल पायेगा इस मसले पर माथाफोड़ी करने का यह सही समय नहीं है। अभी तो चर्चा के हीरो डॉ. मनमोहन सिंह हैं। जो कि बाइपास सर्जरी के बावजूद जगह-जगह घूमकर देश-विदेश में भाषण दे रहे हैं तथा रात-दिन देश की चिन्ता में दुबले हुये जा रहे हैं जबकि विरोधी लोग हैं कि उन्हें मजबूत ही नहीं मान रहे हैं। भई कमाल है। ये तो सरासर ज़्यादती है, ज़्यादती ही नहीं ज़ुल्म है।
अरे जिस आदमी के राज में कभी बनारस, कभी जयपुर, कभी असम, कभी अहमदाबाद, कभी मालेगांव तो कभी मोडासा में बम फूटते रहे लेकिन सैकड़ों लाशें देखकर भी जिसका दिल नहीं पसीजा, उसे आप मजबूत नहीं मान रहे?
सूरत में तापी, बिहार में कोसी, असम में ब्रहमपुत्र और यूपी में गंगा नदियों के कहर ने जो कोहराम मचाया था उससे न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया की आँखें नम हो गयी थी। हजारों लोग मरे, लाखों मवेशी और पक्षी मरे, लाखों करोड़ रूपये का नुकसान हुआ लेकिन सिंह साहब और उनकी मण्डली का ध्यान सेंसेक्स में ही रमा रहा। इस तबाही पर भी जिसकी आँखें नहीं भीगी, उसे आप कमज़ोर बता रहे हैं ? केदारनाथ की जिस लोमहर्षक विभीषिका पर पहाड़ों के पथरीले सीने भी फट पड़े........रब की आँखें भी हज़ारों शव एक साथ देख भीग गयी होंगी ... वहां मरने वालों के अन्तिम संस्कार तक की प्रक्रिया को भी जिस व्यक्ति के राज में क्रूरता और अमानवीयता के साथ किया गया, उसे आप कमज़ोर मान रहे हैं ?
कुछ दिन पहले पाकिस्तानियों ने हमारे जवानों के सिर काट डाले थे, कल रात को फिर पाकिस्तानियों ने हमारे 5 जवान मौत के घाट उतार दिए जिस पर किसी तरह की जवाबी कार्रवाही अभी तक नहीं की गई, चीन हमारे इलाके में घुसा चला जा रहा है लेकिन मौनी बाबा का मौन व्रत कायम है . दामिनी के साथ जो दरिन्दगी हुई या छतीसगढ़ में जो रक्तपात हो रहा है उसे देख कर जो बन्दा तनिक भी विचलित नहीं है और लगातार वैश्विक स्तर पर भारत व भारतीय रूपये की वाट लगाने में जुटा हुआ है, उसे कमज़ोर कहना उचित नहीं .......अरे यह तो हीरा है हीरा ...बल्कि उससे भी कहीं ज़्यादा कठोर .
मुंबई में इतना बड़ा आतंकवादी हमला हुआ। पूरा देश जाग गया और पाकिस्तान के विरूद्घ कार्यवाई की मांग करने लगा, लेकिन इनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगी, तब भी आप इनको कमज़ोर बता रहे हो। अरे पाकिस्तान के रास्ते तालिबानी हत्यारे लगातार हमारे लिए खतरा बने हुये हैं और सारी सुरक्षा एजेन्सियां व गुप्तचर संस्थाएं सतर्कता बरतने की हिदायत दे रही हैं इसके बावजूद वे चुनाव प्रचार में जुटे हुये हैं। जिस आदमी को डर और भय नाम की चीज नहीं है, उसे आप मजबूत नहीं समझते? और तो और, आम आदमी आमतौर पर एक ही महिला से परेशान हो जाता है जबकि ये भला मानस घर में तो जो सहता है वो सहता है, घर से बाहर भी दिनभर एक महिला के इशारों पर नाचता है फिर भी आप उसे मजबूत नहीं कहते। अटल बिहारी वाजपेयी कुंवारे थे इसके बावजूद उनके घुटने खराब हो गये थे, इस आदमी का सामर्थ्य तो देखो, शादीशुदा है और इस उम्र में भी जनपथ पर उठक-बैठक लगाता है, लेकिन अभी तक उसके घुटने सही सलामत हैं...बोलो...और कितना मजबूत प्रधानमन्त्री चाहिए ?
चारों तरफ मौत नाच रही है। गुजरात में हीरा कारीगरों के परिवार आत्महत्याएं कर रहे हैं, महाराष्ट्र में किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं, बिहार में नक्सलवादी हत्याएं कर रहे हैं, पूंजी बाज़ार की गिरावट न जाने कितनी जानें ले चुकी है, उड़ीसा में अकाल और भुखमरी का ताण्डव हो रहा है और ऐसे में भी जो प्रधानमन्त्री पब्लिक के आंसू पोंछने के बजाय मुद्रास्फीति में कमी पर खुश हो रहा है और जीडीपी में वृद्घि बता-बताकर स्वयं ही अपनी पीठ ठोंक रहा है,
इतना मजबूत प्रधानमन्त्री मैंने तो आजतक नहीं देखा। भारत की क्या, पूरी दुनिया में नहीं देखा। इसलिए मेरा मानना है कि देश का नेता मजबूत नहीं चाहिए, अब तो जनता मजबूत चाहिए। नेता तो कमज़ोर ही चाहिए कमज़ोर यानी कम-ज़ोर अर्थात जो पब्लिक पर ज़ोर कम करे, ज़ुल्म कम करे, प्रधानमन्त्री ऐसा लाओ। कहीं ऐसा न हो, सरकार तो मजबूत बन जाए और जनता निर्बल बनी रहे।
प्लीज... जनता मजबूत बनाओ और अगली बार नरेन्द्र मोदी जैसा कोई ढंग का आदमी दिल्ली पहुँचाओ ताकि ये देश बचा रहे ...देश की अस्मिता बची रहे और देश की एकता व अखंडता बची रहे .
जय हिन्द !
अलबेला खत्री
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