मुहब्बत का सदा रसिया रहा हूँ
हसीनों की तरह सजता रहा हूँ
पकौड़े प्यार के स्वादिष्ट लगते
मिठाई हुस्न की खाता रहा हूँ
न आई तू मगर परवाह किस को
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ
बरस उनचास का बुड्ढा न कहना
जवां खुद को समझता आ रहा हूँ
उफ़क पर बादलों की भीड़ लेकिन
मुसलसल आँख से झरता रहा हूँ
सियाही बाल पर आँखों पे चश्मा
गली का रोमियो बनता रहा हूँ
दिलादी है मुझे बाइक, पिता ने
उसे अब ख़ूब मैं दौड़ा रहा हूँ
कभी बीड़ी कभी सिगरेट पीकर
बदन अपना जलाता जा रहा हूँ
कहो कुछ भी मगर अंकल न कहना
जवां ख़ुद को समझता आ रहा हूँ
दिखे हर ओर 'अलबेला' उजाला
ग़ज़ल में मैं दुआ करता रहा हूँ
-अलबेला खत्री
hasyakavi albela khatri love & support narendra modi |
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