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Albela Khatri

इन्हीं कुँवारों के दम पर पलते हैं सारे नीम-हकीम, नियमपूर्वक सुबह -शाम जो इकसठ बासठ करते हैं



महिलाओं
से नैन मटक्का लोग फटाफट करते हैं

नहीं चाहिए ऐसा करना, जानते हैं, बट करते हैं


हम पर आँख उठाने वाले याद रखें इस जुमले को

जो हमको ऊँगली करता है, हम उसको लट्ठ करते हैं


इन्हीं कुँवारों के दम पर पलते हैं सारे नीम-हकीम

नियमपूर्वक सुबह -शाम जो इकसठ बासठ करते हैं


सत्य कथा और डेबोनेयर को लोग सफ़र में पढ़ लेते

ग़ालिब का दीवान तो घर में तिलचट्टे चट करते हैं


हो जाते होंगे भवसागर पार राम के सुमिरन से

उसी प्रभु श्रीराम को सरयू पार तो केवट करते हैं















www.albelakhatri.कॉम

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' May 18, 2010 at 11:01 AM  

हो जाते होंगे भवसागर पार राम के सुमिरन से

उसी प्रभु श्रीराम को सरयू पार तो केवट करते हैं


सुन्दर भावों से सजी अर्वाचीन रचना के लिए बधाई!

शिवम् मिश्रा May 18, 2010 at 11:57 PM  

"इन्हीं कुँवारों के दम पर पलते हैं सारे नीम-हकीम

नियमपूर्वक सुबह -शाम जो इकसठ बासठ करते हैं"


शायद इन पंक्तियों के बिना भी काम चल जाता !!

अविनाश वाचस्पति May 19, 2010 at 5:36 AM  

अलबेला भाई पसंद नहीं आई यह तुकबंदी। हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को मंचीय तिलिस्‍म से बाहर निकालिये। प्रख्‍यात होने के रास्‍ते और भी हैं। कभी मेरी भी रचनाएं पढि़ए और ऐसा तलाश कर दिखलाइये। चाहे बहुत प्रख्‍यात नहीं हूं परंतु ऐसा लिखकर कुख्‍यात भी नहीं होना चाहता हूं। टी वी ने जितना प्रदूषण फैलाया है, अन्‍य माध्‍यम भी फैला रहे हैं। समझ नहीं आता आप इस तरह लिखकर क्‍या हासिल करना चाहते हैं, किनसे वाह वाही चाहते हैं। यह सब प्रोपोगंडे आते हैं मुझे भी। और कौन नहीं परिचित हैं इन इकसठ बासठ या अन्‍य द्विअर्थीय तरीकों से। पर इनसे नए माध्‍यम को प्रदूषित मत कीजिए। विनम्र अनुरोध है एक बड़े भाई का।

अविनाश वाचस्पति May 19, 2010 at 5:36 AM  

अलबेला भाई पसंद नहीं आई यह तुकबंदी। हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को मंचीय तिलिस्‍म से बाहर निकालिये। प्रख्‍यात होने के रास्‍ते और भी हैं। कभी मेरी भी रचनाएं पढि़ए और ऐसा तलाश कर दिखलाइये। चाहे बहुत प्रख्‍यात नहीं हूं परंतु ऐसा लिखकर कुख्‍यात भी नहीं होना चाहता हूं। टी वी ने जितना प्रदूषण फैलाया है, अन्‍य माध्‍यम भी फैला रहे हैं। समझ नहीं आता आप इस तरह लिखकर क्‍या हासिल करना चाहते हैं, किनसे वाह वाही चाहते हैं। यह सब प्रोपोगंडे आते हैं मुझे भी। और कौन नहीं परिचित हैं इन इकसठ बासठ या अन्‍य द्विअर्थीय तरीकों से। पर इनसे नए माध्‍यम को प्रदूषित मत कीजिए। विनम्र अनुरोध है एक बड़े भाई का।

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