वोह उठाईगिरे चुटकुलेबाज़
जो कल तक कवियों के सूटकेस उठाया करते थे
और ईनाम में मंच पर मौका पाया करते थे
आज हॉट केक की तरह बिक रहे हैं
क्योंकि टी वी पर लगातार दिख रहे हैं
अपनी कामयाबी का लोहा वह यों मनवा रहे हैं
कि जिनके साथ बैठने तक की योग्यता नहीं,
उनसे अपने लिए ताली बजवा रहे हैं
कोई तकलीफ़ नहीं ..........
करो ...ऐश करो,
सब को सफल होने का अधिकार है
बस ........
उनका उपहास मत करो
जो सचमुच कवि हैं / कलमकार हैं
जयहिन्द !
-अलबेला खत्री
2 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 13/09/2013 को
आज मुझसे मिल गले इंसानियत रोने लगी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः17 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
अलबेला जी , ईशारा तो समझ आ रहा है.
लेकिन आजकल तो ओज के कवि भी चुटकलेबाज़ी का सहारा लेते हैं. :)
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