वोह उठाईगिरे चुटकुलेबाज़
जो कल तक कवियों के सूटकेस उठाया करते थे
और ईनाम में मंच पर मौका पाया करते थे
आज हॉट केक की तरह बिक रहे हैं
क्योंकि टी वी पर लगातार दिख रहे हैं
अपनी कामयाबी का लोहा वह यों मनवा रहे हैं
कि जिनके साथ बैठने तक की योग्यता नहीं,
उनसे अपने लिए ताली बजवा रहे हैं
कोई तकलीफ़ नहीं ..........
करो ...ऐश करो,
सब को सफल होने का अधिकार है
बस ........
उनका उपहास मत करो
जो सचमुच कवि हैं / कलमकार हैं
जयहिन्द !
-अलबेला खत्री
1 comments:
अलबेला जी , ईशारा तो समझ आ रहा है.
लेकिन आजकल तो ओज के कवि भी चुटकलेबाज़ी का सहारा लेते हैं. :)
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