प्रति,
पूजनीय गजानन गणपति श्री गणेशजी महाराज,
मुख्य अतिथि, सार्वजनिक गणेशोत्सव
सूरत
प्रसंग : आपश्री के अनुयाइयों को सामाजिक लज्जा एवं बुद्धि वितरण कराने हेतु
सन्दर्भ : आपश्री का आगमन और शोभायात्रायें
हे प्रभु,
आप तो बुद्धि के देवता हैं, मंगलमूर्ति हैं और सृष्टि के विघ्नहर्ता हैं परन्तु आपके अनेक उन्मादी अनुयाइयों की वजह से न केवल आपका उपहास हो रहा है बल्कि हमारे दैनन्दिन जीवन में विघ्न भी पड़ रहा है, अमंगल भी हो रहा है और श्रद्धा का पतन भी हो रहा है .
आपकी बड़ी बड़ी विशालकाय मूर्तियाँ ले कर जब लोग सैकड़ों की संख्या में पूरी सड़क को घेर कर चलते हैं और "ढिंका चिका ढिंका चिका, फेविकोल से तथा मुन्नी बदनाम हुई" इत्यादि गानों पर डांस करते हैं तो बड़ा ही भद्दा दृश्य दिखाई देता है . शराब पी कर मस्ती और अश्लील संकेत करने वालों की हरकतें देख कर साफ़ लगता है कि उन्हें आपसे कोई लेना देना नहीं हैं वे तो आपकी आड़ में अपनी मस्ती और एन्जॉय करते हैं . जिसके कारण सच्चे श्रद्धालुओं को आत्मिक पीड़ा होती है . पूरा ट्रैफिक ठप्प हो जाता है और सड़क पर चलना मुहाल हो जाता है . इसके अलावा बुजुर्ग और बीमार व्यक्ति तथा नन्हें शिशु इस घनघोर शोर से बहुत परेशान हो जाते हैं .
कृपया अपने अनुयाइयों को इत्ती सी अक्ल आप प्रदान करें कि वह अपने एन्जॉय के लिए दूसरों को दुखी न करे . क्योंकि आपकी बेढंगी मूर्तियाँ देख कर हमें दुःख होता है, मज़े मज़े में लोग आपके ऐसे ऐसे रूप बना देते हैं कि देखने भर से मन व्यथित हो उठता है . आपके सिंगार और सजाव के लिए रूप बनाये जाएँ तो अच्छी बात, लेकिन केवल कुछ अलग करने की चाहत में ऐसे ऐसे कुरूप रूप भी आपको दे दिए जाते हैं कि क्रोध आता है
आशा है, आप हमारे मन की वेदना समझेंगे और उसका निराकरण करेंगे
आपकी जय हो !
जय हिन्द !
-अलबेला खत्री
2 comments:
मित्रों।
तीन दिनों तक नेट से बाहर रहा! केवल साइबर कैफे में जाकर मेल चेक किये।
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आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (09-09-2013) को हमारी गुज़ारिश :चर्चा मंच 1363 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
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