हँसाना और लोगों को मनोरंजित करना मेरा पेशा है इसलिए करता हूँ
कविता लिखना मेरा शौक है इसलिए वो भी करता हूँ
लेकिन
न जाने क्यों
कुछ दिनों से मन मेरा बुझा बुझा सा है
ऐसा लगता है मानो देश लुट चुका है और लगातार लुट रहा है
जिन के भरोसे हम अपने सुखी भविष्य के स्वप्न संजोते हैं
जिन के भरोसे हम अपने घर में निश्चिन्त हो कर सोते हैं
वही
लुटेरे निकले
जिन्हें उजाला समझा, वही अन्धेरे निकले
डर है
कहीं मिस्र वाला दृश्य भारत में न बन जाये...........
शोषित जनता की शोषक सत्ता से न ठन जाये
यदि ऐसा हुआ तो कवितायें सब धरीं रह जायेंगी
चुटकुले किसी काम न आयेंगे
काम आएगा सिर्फ़ घर में पड़ा राशन और जेब में रखा पैसा
ये सोच कर बहुत डर रहा हूँ
आजकल कवितायें नहीं केवल चिन्ता कर रहा हूँ
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
10 comments:
बात ही ऐसी है कि चिंता करनी पडती है।
ऎसा होना भी चाहिये , तभी इन कमीने नेताओ को अकल आयेगी, वर्ना हमारी आने वाली नस्ले इन के जुते ही साफ़ करेगी, इन्हे इन की ओकात तो बतानी ही पडेगी...... कहां भाग कर जायेगे यह.बस जनता को जागना चाहिये, अलबेला जी हम भी जनता के साथ ही चलेगे फ़िर चिंता किस बात की जेसे ओर खायेगे वेसे हम भी गुजारा करेगे, अब हमे अपनी नही देश की ओर आने वाली पीढी की फ़िक्र करनी चाहिये ओर इन भेडियो से उन्हे बचाना चाहिये, पेर की जुती पेर मे ही शोभा देती हे, ओर उस जुती को पेर तक ही पहुचाना हे अब
चिन्तन-मनन भी जरूरी है!
शुभकामनाएँ!
सत्य वचन अलबेला जी !
चिंता का समय है ही ...
प्रिय अलबेला जी
नमस्कार !
आजकल कवितायें नहीं केवल चिन्ता कर रहा हूँ
अच्छा कर रहे हैं ।
कविताएं तो कोई भी कर लेगा
और भी बहुत हैं जी … :)
बसंत पंचमी सहित बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
चिन्तन की गहराई से निकली बात.................अन्तर्मन को स्पर्श करती है............................समस्त ज्ञान-विज्ञान का उत्स चिन्तन ही है।
मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।
वाह! क्या बात है, आपकी चिंता वाजिब है ज़नाब!
डर है
कहीं मिस्र वाला दृश्य भारत में न बन जाये...........
शोषित जनता की शोषक सत्ता से न ठन जाये
यदि ऐसा हुआ तो कवितायें सब धरीं रह जायेंगी
haal to albela ji apna bhi kuch kuch aisa hi hai .
chinta ke shivaa kuch hota hi nahi
saargarbhit lekh
चिंतन में भी कविता ! बहुत बदमाश हो अलबेला जी .आपकी बदमाशी बनी रहे,यही दुआ है प्रदीप नील www.neelsahib.blogspot.com
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