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ताज़ा टिप्पणियां

Albela Khatri

स्त्रियों में सादगी मनोमुग्धकारी लावण्य है, उतना ही दुर्लभ जितनी कि वह आकर्षक है




सादगी एक शाही शान है जो कि बुद्धि-वैचित्र्य से बहुत ऊँची है

-पोप



सूरज प्रकाश की सदा पोशाक में है बादल तड़क-भड़क से सुशोभित हैं

-रवीन्द्रनाथ टैगोर



सादगी क़ुदरत का पहला क़दम है और कला का आखरी

-बेली



स्त्रियों में सादगी मनोमुग्धकारी लावण्य है, उतना ही दुर्लभ जितनी कि

वह आकर्षक है

-डी फ़ेनो




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जो आदमी इरादा कर सकता है, उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं





इन्सान से यह उम्मीद कैसे मुमकिन है कि वह सलाह ले लेगा

जबकि वह चेतावनी तक से सावधान नहीं होता


-स्विफ्ट



सच्ची से सच्ची और अच्छी से अच्छी चतुराई दृढ संकल्प है


-नेपोलियन बोनापार्ट



जो आदमी इरादा कर सकता है, उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं


-एमर्सन



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happy woman - happy world

नारी आनन्द महोत्सव की एक संक्षिप्त video झलक

18 दिसम्बर होगा दुनिया भर में "नारी खुशहाल दिवस"




नारी
जगत के लिए गर्व और हर्ष का विषय है कि दुनिया के इतिहास में

पहली बार "happy woman - happy world" का उदघोष करते हुए

चेन्नई के विख्यात कलाप्रेमी समाजसेवी श्री गौतम डी जैन ने एक

ऐसा विराट कार्यक्रम नारी जगत के सम्मान,स्वाभिमान और संरक्षण

के लिए आरम्भ किया है जिसकी कोई मिसाल नहीं है



अधिक जानकारी के लिए कृपया इस लिंक को देखें और इस शानदार

ब्लॉग के अनुसरणकर्ता भी बनें


http://happywoman-happyworld.blogspot.com/2010/12/18-happy-womans-day.html


धन्यवाद,

-
अलबेला खत्री


युद्ध के मैदान में ठहाकों की महफ़िल................

हास्य कवि सम्मेलन की धूम मची पानीपत में

देखिये आप भी झलकियाँ :












































मूर्खों की संगति में ज्ञानी ऐसा है जैसे अन्धों के बीच ख़ूबसूरत लड़की





झूठे की संगति करोगे तो ठगे जाओगे,

मूर्ख शुभेच्छु होने पर भी अहितकर ही होगा,

कृपण अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को अवश्य हानि पहुंचाएगा,

नीच आपत्ति के समय दूसरे का नाश करेगा


-सादिक



मूर्खों की संगति में ज्ञानी ऐसा है

जैसे अन्धों के बीच ख़ूबसूरत लड़की

-शेख सादी



ख़ुदा किसके प्रति दयालु है ?

दया से लबालब भरा हुआ दिल ही सबसे बड़ी दौलत है;

क्योंकि दुनियावी दौलत तो

नीच आदमियों के पास भी देखी जाती है

-सन्त तिरुवल्लुवर




दया के शब्द संसार के संगीत हैं

-फ़ेवर



जो ख़ुदा के बन्दों के प्रति दयालु है, ख़ुदा उसके प्रति दयालु है

-हज़रत मुहम्मद



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खिदमतेख़ल्क ही तो इन्सानियत का सरमाया है

विनम्रता मेरा स्वभाव है
लाचारी नहीं है

मुझे आडम्बर रचने की
बीमारी नहीं है

इसलिए हौसला जीस्त का कभी पस्त नहीं होता
ऐसा कोई क्षण नहीं, जब मनवा मस्त नहीं होता
किन्तु किसी के घाव पर
मरहम न लगा सकूँ, इतना भी व्यस्त नहीं होता

द्वार खुले हैं मेरे घर के भी और दिल के भी सब के लिए
भले ही वक्त बचता नहीं आजकल याद-ए-रब के लिए
किन्तु मैं जानता हूँ
इसीलिए मानता हूँ
कि रब की ही एक सूरत इन्सान है
जो रब जैसा ही अज़ीम है, महान है
वो मुझे ख़िदमत का मौका देता है
ये उसका मुझ पर बड़ा एहसान है


ज़िन्दगी के तल्ख़ तज़ुर्बों ने हर पल यही सिखाया है
दहर में कोई नहीं अपना, हर शख्स ग़ैर है, पराया है
मगर रूह की मुक़द्दस रौशनी से एक आवाज़ आती है
कि खिदमतेख़ल्क ही तो इन्सानियत का सरमाया है

ये सरमाया मैं छोड़ नहीं सकता
जो चाहो कह लो
रुख अपना मैं मोड़ नहीं सकता

-अलबेला खत्री


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मुझे इसका गहरा अवसाद है, फिर भी आपका धन्यवाद है



जैसे

उजाला

छूने की नहीं, देखने चीज़ है


वैसे

आनन्द

देखने की नहीं, अनुभव की चीज़ है


और

हम मानव

अनुभव की नहीं, आज़माइश की चीज़ हैं

यदि आपको इस प्रकार की तमीज़ है

तो शेष सभी बातें बेकार हैं, नाचीज़ हैं


क्योंकि

व्यक्ति एक ऐसी इकाई है

जो दहाई से लेकर शंख तक विस्तार पा सकती है


इसी प्रकार

आस्था एक ऐसी कली है

जो कभी भी सतगुरु रूपी भ्रमर का प्यार पा सकती है


धर्म और धार्मिकता

एक नहीं

दो अलग अलग तथा वैयक्तिक उपक्रम हैं

जिन्हें लेकर समाज में बहुत सारे भ्रम हैं

जब तक इन पर माथा नहीं खपाओगे

जीवन क्या है ? कभी नहीं जान पाओगे


तुमने अनुभव किया है मानव को, आज़माया नहीं

इसलिए

मुझ मानव का वास्तविक रूप समझ में आया नहीं


काश तुम ज़ेहन से नहीं, जिगर से काम लेते

तो आज ज़िन्दगी में यों खाली हाथ नहीं होते

मुझे इसका गहरा अवसाद है

फिर भी आपका धन्यवाद है



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सहवाग नहीं था लेकिन आग का बवन्डर था

सचिन नहीं था तो सही..........आज दिन था अपना

कल मैंने जो देखा, आज पूरा होगया वो सुन्दर सपना

सहवाग नहीं था लेकिन आग का बवन्डर था

जोश गज़ब का गौतम गम्भीर के अन्दर था


टीम इण्डिया ने आज ऐसा धो दिया

कि न्यू ज़ीलैंड फूट फूट कर रो दिया


घड़ी ख़ुशी की हम भारतीयों के घर आई

श्रृंखला पर आज विजय पाई

बधाई ! बधाई !! बधाई !!!


जय हिन्द



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अब हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैयालाल की




"तू सोलह बरस की, मैं सत्रह बरस का"

ऐसे गीत और गाने तो अपने बहुत सुने होंगे

परन्तु हमारा हीरो ज़रा हट के है, क्योंकि ये सत्रह का नहीं,

सत्तर साल का है जिसकी हीरोइन सोलह की नहीं, पैंसठ की है,

लेकिन आज उसके दिल में कुछ कुछ हो रहा है ......मजबूरन हीरो को

ये कहना पड़ता है :




आस
पास हूँ मैं सत्तर के, तू है पैंसठ साल की

अब हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैयालाल की



सूख गई सारी सरितायें, रस का सागर सूख गया

सूख गई है गगरी तुम्हारी, मेरा गागर सूख गया

रोज़ मचलने वाला सपनों का सौदागर सूख गया

तन की राधा सूखी, मन का नटवरनागर सूख गया

ख़्वाब देखो हरियाली के..........


ख़्वाब देखो हरियाली के, ये है घड़ी अकाल की

अब हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैयालाल की-


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मत रोको रुख हवाओं के तिरपालों से, आबरू इन्सानियत की नीलाम होने दो





चन्द सरफिरे लोग

भारत में

भ्रष्टाचार मिटाने की साज़िश कर रहे हैं


यानी

कीड़े और मकौड़े

मिल कर

हिमालय हिलाने की कोशिश कर रहे हैं


मन तो माथा पीटने को हो रहा है काका

लेकिन मैं फिर भी लगा रहा हूँ ठहाका

क्योंकि इस आगाज़ का अन्जाम जानता हूँ

मैं इन पिद्दी प्रयासों का परिणाम जानता हूँ


सट्टेबाज़ घाघ लुटेरे

दलाल स्ट्रीट में बैठ कर

तिजारत कर रहे हैं

और

जिन्हें चम्बल में होना चाहिए था

वे दबंग सदन में बैठ कर

वज़ारत कर रहे हैं



देश के ही वकील जब देशद्रोहियों के काम आ रहे हों

और

गद्दारी में जहाँ सेनाधिकारियों तक के नाम आ रहे हों


पन्सारी और हलवाई जहाँ मिलावट से मार रहे हों

डॉक्टर,फार्मा और केमिस्ट

रूपयों के लालच में इलाज के बहाने संहार रहे हों


ठेकेदारों द्वारा बनाये पुल

जब उदघाटन के पहले ही शर्म से आत्मघात कर रहे हों

जिस देश में

पण्डित और कठमुल्ले

अपने सियासी फ़ायदों के लिए जात-पात कर रहे हों

और


दंगे की आड़ में

बंग्लादेशी घुसपैठिये निरपराधों का रक्तपात कर रहे हों


वहां

जहाँ

मुद्राबाण खाए बिना

दशहरे का कागज़ी दशानन भी नहीं मरता

और पैसा लिए बिना

बेटा अपने बाप तक का काम नहीं करता


सी आई डी के श्वान जहाँ सूंघते हुए थाने में आ जाते हैं

कथावाचक-सन्त लोग जहाँ
हवाला में दलाली खाते हैं


भ्रष्टाचार जहाँ शिष्टाचार बन कर शिक्षा में जम गया है

और रिश्वत का रस धमनियों के शोणित
में रम गया है


वहां वे

उम्मीद करते हैं कि

घूस की जड़ें उखाड़ देंगे

अर्थात

निहत्थे ही

तोपचियों को पछाड़ देंगे


तो मैं सहयोग क्या,

शुभकामना तक नहीं दूंगा

न तो उन्हें अन्धेरे में रखूँगा

न ही मैं ख़ुद धोखे में रहूँगा


बस

इत्ता कहूँगा


जाने भी दो यार...........छोड़ो

कोई और बात करो


क्योंकि

राम फिर शारंग उठाले

कान्हा सुदर्शन चलाले

आशुतोष तांडव मचाले

भीम ख़ुद को आज़माले


तब भी भ्रष्टाचार का दानव मिटाये न मिटेगा

वज्र भी यदि इन्द्र मारे, चाम इसका न कटेगा


तब हमारी ज़ात ही क्या है ?

तुम भ्रष्टाचार मिटाओगे

भारत से ?

तुम्हारी औकात ही क्या है ?


अभी, मुन्नी को और बदनाम होने दो

जवानी शीला की गर्म सरेआम होने दो

मत रोको रुख हवाओं के तिरपालों से

आबरू इन्सानियत की नीलाम होने दो


जय हिन्द !


-अलबेला खत्री


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मौजूदा क्षण के कर्तव्य का पालन करने से आने वाले युगों तक का सुधार हो जाता है





बड़ा काम यह नहीं है कि हम दूर की धुंधली हक़ीकत को देखें,

बल्कि यह है कि

हम उस फ़र्ज़ को बजाएं जो हमारी नज़र के सामने है


-कार्लाइल



मौजूदा क्षण के कर्तव्य का पालन करने से

आने वाले युगों तक का सुधार हो जाता है


-एमर्सन




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न्यू ज़ीलैंड को लिटा दिया पूरी तरह से लैंड पर






गम्भीर, विराट और श्रीसंत ने कमाल कर दिया

इण्डिया की टीम ने जयपुर में धमाल कर दिया

न्यू ज़ीलैंड को लिटा दिया पूरी तरह से लैंड पर

इत्ता ज़ोर से मारा कि पिछवाड़ा लाल कर दिया

जय हो !


इण्डिया जय हो !

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क्या कण्डोम लगाने मात्र से बचाव हो जायेगा समाज का ? क्या व्यभिचार व दुराचार से मुक्ति मुद्दा नहीं है आज का ?

आज 1 दिसम्बर है

यानी विश्व एड्स दिवस

एड......जी हाँ एड ! यानी विज्ञापन

यानी पूर्ण व्यावसायिक आयोजन



दिन भर होगा कण्डोम का " बिन्दास बोल " टाइप प्रचार

यानी आज मनेगा निरोध निर्माताओं का वार्षिक त्यौहार

यानी बदनाम बस्तियों में जायेंगे नेता,क्रिकेटर और फ़िल्म स्टार

यानी कण्डोम कम्पनियां करेंगी आज अरबों - खरबों का व्यापार



सरकार द्वारा जनता को आज जागरूक बनाया जायेगा

यानी कण्डोम का प्रयोग कित्ता ज़रूरी है, ये बताया जायेगा

आज मीडिया में एच आई वी का विरोध दिखाया जाएगा

यानी टेलीविज़न पे खुल्लमखुल्ला निरोध दिखाया जायेगा


मैं पूछना चाहता हूँ इन तथाकथित एच आई वी विरोधियों से

यानी इन सरफ़िरे कण्डोमवादियों से और इन निरोधियों से


क्या कण्डोम लगाने मात्र से बचाव हो जायेगा समाज का ?

क्या व्यभिचार दुराचार से मुक्ति मुद्दा नहीं है आज का ?

क्या इन्तेज़ाम किया आपने उन बेचारियों के इलाज का ?

लुटाया है जीवन भर जिन्होंने खज़ाना अपनी लाज का


तुमने हालत देखी नहीं कमाटीपुरा की बस्तियों में जा कर

इसलिए सो जाओगे आज स्कॉच पी कर, चिकन खा कर


लेकिन मैं नहीं सो पाऊंगा उनकी मर्मान्तक पीड़ा के कारण

भले ही कर नहीं सकता मैं उनकी वेदना का कोई निवारण


परन्तु प्रार्थना अवश्य करूँगा उन बूढ़ी- बीमार वेश्याओं के लिए

यानी रोटी और दवा को तरसती लाखों लाख पीड़िताओं के लिए


कि अक्ल थोड़ी इस समाज के कर्णधारों को आये

और उन गलियों में निरोध नहीं, रोटियां पहुंचाये


सच तो ये है कि नैतिक ईमानदारी के सिवा दूजा कोई रास्ता नहीं है

लेकिन नैतिकता का इन नंगे कारोबारियों से कोई वास्ता नहीं है


इसलिए लोक दिखावे को ये आज एड्स का विरोध करते रहेंगे

यानी दिन-रात चिल्ला-चिल्ला कर "निरोध निरोध" करते रहेंगे


-अलबेला खत्री



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राष्ट्रभक्त राजीव दीक्षित का असामयिक निधन भारतीय स्वाभिमान की अपूर्णीय क्षति है






समय नदी की धार,

जिसमे सब बह जाया करते हैं

पर होते हैं कुछ लोग ऐसे

जो इतिहास बनाया करते हैं




प्रखर राष्ट्रभक्त और मुखर वक्ता राजीव दीक्षित अब हमारे बीच

नहीं रहेयह हृदयविदारक समाचार पढ़ कर मेरा मन विषाद

से भर गया हैराजीव दीक्षित भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक

पुरूष बन गये थे, करोड़ों लोग उनके वक्तव्यों के प्रशंसक ही

नहीं बल्कि अनुयायी भी हैंराजीव दीक्षित से भले ही मेरा

सीधा कोई सरोकार नहीं था परन्तु एक भारतीय होने के नाते

और एक देशभक्त स्वाभिमानी नागरिक होने के नाते मैं उन्हें

बहुत पसन्द करता थाराजीव दीक्षित का रहना एक बड़ा

शून्य छोड़ गया है, यह एक ऐसी क्षति है भारत की जो अपूर्णीय

हैपरमपिता परमात्मा राजीव दीक्षित की पवित्र आत्मा को

परम शान्ति प्रदान करे, आइये ऐसी प्रार्थना हम सब करें-



सजल नेत्रों और भारी मन से विनम्र श्रद्धांजलि !



.............ओम शान्ति ! शान्ति ! शान्ति !

लो जी हो गये एक तीर से दो दो शिकार.... पहले पोस्ट पर टिप्पणी, फिर टिप्पणी से पोस्ट तैयार

ये भी ख़ूब रही...........


परिकल्पना ब्लॉग पर रवीन्द्र प्रभात जी ने आज की पोस्ट में पूछा था

कि " वर्ष २०१० में हिन्दी ब्लोगिंग ने क्या खोया, क्या पाया ?"


इस पर मैंने भी एक टिप्पणी की है,

वही यहाँ भी चिपका रहा हूँ

यानी करके दिखा रहा हूँ एक तीर से दो दो शिकार

पहले की टिप्पणी, फिर टिप्पणी से पोस्ट तैयार



_______2010 में क्या खोया, क्या पाया ?


तो जनाब खोने को तो यहाँ कुछ था नहीं,

इसलिए पाया ही पाया है .

नित नया ब्लोगर पाया है,

संख्या में वृद्धि पायी है

और रचनात्मक समृद्धि पाई है



लेखकजन ने एक नया आधार पाया है

मित्रता पाई है, निस्वार्थ प्यार पाया है

दुनिया भर में फैला एक बड़ा परिवार पाया है

इक दूजे के सहयोग से सबने विस्तार पाया है

नूतन टैम्पलेट्स के ज़रिये नया रंग रूप और शृंगार पाया है

रचनाओं की प्रसव-प्रक्रिया में परिमाण और परिष्कार पाया है

नये पाठक पाए हैं,

नवालोचक पाए हैं

लेखन के लिए सम्मान और पुरस्कार पाया है

नयी स्पर्धाएं, नयी पहेलियों का अम्बार पाया है


लगे हाथ गुटबाज़ी भी पा ली है, वैमनस्य भी पा लिया है

टिप्पणियाँ बहुतायत में पाने का रहस्य भी पा लिया है

बहुत से अनुभव हमने वर्ष 2010 में पा लिए

इससे ज़्यादा भला 11 माह में और क्या चाहिए


-हार्दिक मंगलकामनाओं सहित,

-अलबेला खत्री




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सबसे ज़लील व शर्मनाक बात है अपने से परास्त हो जाना



जो
बल से पराजित करता है

वह अपने शत्रुओं को सिर्फ़ आधा जीतता है

सबसे शानदार विजय है अपने पर विजय प्राप्त करना

और सबसे ज़लील शर्मनाक बात है अपने से परास्त हो जाना


-प्लेटो

प्रस्तुति : अलबेला खत्री


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बड़ी निराशा हुई सोनिया गांधी का चुनाव क्षेत्र देख कर

ऊंचाहार जाते समय राय बरेली रास्ते में पड़ता है जो कि श्रीमती सोनिया

गांधी का चुनाव क्षेत्र है, लेकिन नगर की हालत देख कर लगा नहीं कि वह

सचमुच सोनियाजी का चुनाव क्षेत्र है ।



जगह जगह गन्दगी, बेतरतीब बसावटें, संकरी गलियां और बेकायदा

यातायात देख कर तो निराशा हुई ही....वहां का घंटाघर देख कर भी

हँसी छूट पड़ी.........क्योंकि जिसे वहां घंटाघर कहा जाता है, वो घंटीघर

कहलाने के काबिल भी नहीं


सड़कों की हालत तो तौबा ! तौबा !


जय हो वहां के निवासियों की और उनकी सम्माननीया सांसद की ।

N T P C ऊंचाहार के स्थापना दिवस समारोह में ख़ूब जमा हास्य कवि सम्मेलन - अलबेला खत्री ने मचाई धूम




अभी दो दिन पहले उत्तर प्रदेश के सुन्दर क्षेत्र ऊंचाहार में एन टी पी सी

के स्थापना दिवस समारोह में आयोजित अखिल भारतीय हास्य कवि-

सम्मेलन में बहुत आनन्द आया



देश के कोने कोने से आये कवि और कवयित्रियों ने अपने रचनापाठ से

श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया



महाप्रबंधक श्रीमान राव ने स्वागत सम्भाषण में ही अत्यन्त परिष्कृत

हिन्दी और संस्कृत में कविता की व्याख्या की तथा कविगण का स्वागत

कियातत्पश्चात हिन्दी अधिकारी श्री पवन मिश्रा ने कमान कवियों को

सौंप दी और एक के बाद एक रचनाकार ने अपनी प्रस्तुति से जन का मन

मोहा



चूँकि कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता के लिए संचालक ने मेरा नाम प्रस्तावित

कर दिया ..लिहाज़ा मुझे सबसे बाद में ही आना था ..मगर शुक्र है कि मेरा

नम्बर आने तक लोग डटे रहे, जमे रहे और मैंने भी फिर खुल कर काम

कियाउस दिन 26-11 वारदात की दूसरी बरसी थी इसलिए पहले मैंने

उस अवसर पर कुछ कहा .एक गीत शहीदों के नाम पढ़ा और बाद में

हँसना-हँसाना आरम्भ किया


जलवा हो गया जलवा !


दर्शकों का ख़ूब स्नेह और आशीर्वाद मिला .........तालियाँ और ठहाके गूंज उठे

.....कुल मिला कर बल्ले बल्ले हो गई


इसका वीडियो जल्दी ही मिलेगा तो आपको दिखाऊंगा


-अलबेला खत्री


रचनायें सादर आमन्त्रित हैं स्पर्धा क्रमांक - 5 के लिए ...... कृपया इस बार बढ़-चढ़ कर हिस्सा लीजिये




स्नेही स्वजनों !

सादर नमस्कार


लीजिये एक बार फिर उपस्थित हूँ एक नयी स्पर्धा का श्री गणेश करने के


लिए और आपकी रचना को निमन्त्रण देने के लिए


स्पर्धा क्रमांक - 5 के लिए www.albelakhatri.com पर आपकी रचना


सादर आमन्त्रित हैजैसा कि पहले ही बता दिया गया था कि इस बार


स्पर्धा हास्य-व्यंग्य पर आधारित होगी


नियम एवं शर्तें :


स्पर्धा क्रमांक -५ का शीर्षक है :

लोकराज में जो हो जाये थोड़ा है

स्पर्धा में सम्मिलित करने के लिए कृपया उपरोक्त शीर्षक के

अनुसार ही रचना भेजें . विशेषतः इस शीर्षक का उपयोग भी

रचना में अनिवार्य होगा अर्थात रचना इसी शीर्षक के इर्द गिर्द

होनी चाहिए .


हास्य-व्यंग्य में हरेक विधा की रचना इस स्पर्धा में सम्मिलित की


जायेगीआप हास्य कविता, हज़ल, पैरोडी, छन्द, दोहा, सोरठा, नज़्म,

गीत, मुक्तक, रुबाई, निबन्ध, कहानी, लघुकथा, लेख, कार्टून अर्थात कोई


भी रचना भेज सकते हैं



एक व्यक्ति से एक ही रचना स्वीकार की जायेगी


रचना मौलिक और हँसाने में सक्षम हो यह अनिवार्य है


स्पर्धा क्रमांक - 5 के लिए रचना भेजने की अन्तिम तिथि है


15 दिसम्बर 2010



सभी साथियों से निवेदन है कि इस स्पर्धा में पूरे उत्साह के साथ सहभागी


बनें और हो सके तो अपने ब्लॉग पर भी इसकी जानकारी प्रकाशित करें


ताकि अधिकाधिक लोग लाभान्वित हो सकें



मैं और भी बातें विस्तार से लिखता लेकिन कल कानपुर में काव्य-पाठ


करना है इसलिए थोड़ी नयी रचनाएँ तैयार कर रहा हूँइस कारण

व्यस्तता बढ़ गई हैआप सुहृदयता पूर्वक क्षमा कर देंगे ऐसा मेरा


विश्वास है



तो फिर निकालिए अपनी अपनी रचना और भेज दीजिये

........all the best for all of you !


-अलबेला खत्री





जी हाँ मैंने रात भर आनन्द लिया रचना का, किसी को ऐतराज़ हो तो वो भी आनन्द ले ले "अलबेला खत्री " का





"चोर की दाढ़ी में तिनका" होता है, ये तो मैंने सुना था परन्तु कुछ लोगों

की पूरी दाढ़ी ही तिनकों की होती है जिसकी झाड़ू बना कर "वे" लोग

अपने घर की सफाई करने के बजाय दूसरों के घोच्चा करने में ज़्यादा

मज़ा लेते हैं, ये मुझे तिलियार ब्लोगर्स मीट के बाद ललित शर्मा की पोस्ट

पर आई टिप्पणियों से ही पता चला . और ये सारा बखेड़ा इसलिए खड़ा

होगया क्योंकि मैंने उसमे अपनी टिप्पणी में स्वीकार किया था कि मैंने

रात भर रचना का मज़ा लिया . अब तो रचना कोई बुरी चीज़ है, ही

मज़ा लेना कोई पाप है, लेकिन चूँकि मज़ा मैंने लिया था और रात भर

लिया था सो कुछ अति विशिष्ट ( बैल मुझे मार ) श्रेणी के गरिमावान

( सॉरी हँसी रही है ) लोगों को अपच हो गया और उन्होंने आनन्द

जैसी परम पावन पुनीत और दुर्लभ वस्तु को भी अश्लील कह कर 'आक थू'

कर दियाये देख कर ललित जी की बांछें भी उदास हो गईं होंगी चुनांचे

मेरा धर्म है कि मैं बात स्पष्ट करूँलिहाज़ा ये पोस्ट लिख रहा हूँ ताकि

सनद रहे और वक्त ज़रूरत प्रमाण के तौर पर काम ( काम से मेरा मतलब

कामसूत्र वाला नहीं है ) ली जा सके :



तो जनाब ! सबसे पहले तो मैं धन्यवाद देता हूँ उन लोगों का जिन लोगों

ने तिलियार में मुझ से मिल कर, प्रसन्नता प्रकट की और मेरी "रचना"

को झेला अथवा मेरी प्रस्तुति का आनन्द लियातत्पश्चात ये भी स्पष्ट

कर दूँ कि मैं एक रचनाकार हूँ और रचनाकारी करना मेरा दैनिक कार्य

है, कार्य क्या है कर्त्तव्य है और मुझे गर्व है कि केवल मैं अपनी रचना

की सृष्टि कर सकता हूँ अपितु दूसरों की रचनाएं सुधारने का काम भी

बख़ूबी करता हूँ, जो लोग on line मुझसे सलाह लेते हैं अथवा अपनी

रचना मुझसे सुधरवाते हैं उनमे नर भी कई हैं और नारियां भी अनेक हैं

परन्तु मैं किसी का नाम नहीं लूँगा, क्योंकि ये केवल मैत्रीवश होता है

अस्तु-



उस रात 9 बजे जो महफ़िल जमी, वह करीब 3 बजे तड़के तक चली

...........और इस दौरान वो सब हुआ जो यारों की महफ़िल में होता है

महफ़िल जब पूरी जवानी पर गई, तब ललित जी को अपनी रचनाएं

सुनाने का भूत लग गयाअब लग गया तो लग गया ......कोई क्या कर

सकता है ...कहीं भाग भी नहीं सकते थे..........नतीजा ये हुआ कि ललित

शर्मा एक के बाद एक रचना पेलते गये और हम सहाय से झेलते गये

............जल्दी ही मुझे इसमें आनन्द आने लगा और मैं पूर्णतः सजग

हो कर सुनने लगानि:सन्देह ललित जी रात भर सुनने की चीज हैं

यह अनुभव मुझे पहली ही रात में हो गया ..हा हा हा



तो साहेब ये कोई ज़रूरी तो नहीं कि परायी रचना" में सभी को उतनी रुचि

हो, जितनी कि मुझे रहती है, इसलिए बन्धुवर केवलराम, नीरज जाट,

सतीश और स्वयं मेज़बान राज भाटिया जी भी एक एक करके निंदिया के

हवाले हो गये, बस..........मैं ही बचा रहा सो मैं ही सुनता रहा और आनन्द

लेता रहा



सुबह जब उठा, तो ललितजी फिर जाग्रत हो गये और लिख मारी पोस्ट

..........साथ ही सबसे कह भी दिया कि अपने अपने कमेन्ट दो.........

भाटियाजी बोले - मैं तो जर्मनी जा कर करूँगा, तब भी उनसे ज़बरन

टिप्पणी करायी गई क्योंकि पोस्ट को हॉट लिस्ट में लाने का और कोई

उपाय है ही नहीं.......लिहाज़ा मैंने भी अपनी टिप्पणी कर दी जिसमे

स्वीकार किया कि रात भर "रचना" का आनन्द लिया ........अब इस

"रचना" से मेरा अभिप्राय: ललित जी कि काव्य-रचना से थालिहाज़ा

मैंने कोई गलत तो किया नहींगलत तो तब होता जब मैं ये लिखता

कि मुझे "रचना" में कोई मज़ा नहीं आया..........



अब संयोगवश रचना नाम किसी नारी का हो जिसे मैंने कभी देखा नहीं,

जाना नहीं, जिसका मैंने कोई क़र्ज़ नहीं देना और जिससे मुझे कोई

सम्बन्ध बनाने की लालसा भी नहीं, कुल मिला कर जिसमे मेरा कोई

इन्ट्रेस्ट ही नहीं,

वो अगर इस टिप्पणी में ज़बरदस्ती ख़ुद को घुसेड़ ले तो मैं क्या करूँ यार ?

मैंने कोई ठेका ले रखा है सबके नामों का ध्यान रखने का ...और वैसे भी

" रचना " शब्द क्या किसी के बाप की जागीर है ? बपौती है किसी की ?

क्या रचना नाम की एक ही महिला है दुनिया में ? मानलो एक भी है तो

क्या मैंने ये लिखा कि "इस" विशेष रचना का आनन्द लिया ?



जाने दो यार क्या पड़ा है इन बातों में..............मेरी रचनाओं के तो सात

संकलन प्रकाशित हो चुके हैं, रचनाकारी करते हुए 28 साल हो गये मुझे

जबकि ब्लोगिंग तो जुम्मा जुमा डेढ़ साल से कर रहा हूँरचना शब्द

को मैं जब, जैसे, जितनी बार चाहूँ, प्रयोग कर सकता हूँ .....किसी को

ऐतराज़ हो तो मेरे ठेंगे से !


आप भी स्वतन्त्र हैं " अलबेला " शब्द से खेलने के लिएचाहो तो आप

भी लिखो " रात भर अलबेला का आनन्द लिया " और आनन्द ले भी सकते

हो । "अलबेला " नाम की फ़िल्म चार बार बनी है............उसे रात भर देखो

और सुबह पोस्ट लिखो कि रात भर "अलबेला" का मज़ा लिया .... मैं कभी

कहने नहीं आऊंगा कि ऐसा क्यों लिखा......क्योंकि जैसे "रचना" शब्द

किसी कि बपौती नहीं, वैसे ही "अलबेला" शब्द भी किसी की बपौती नहीं है



विनम्रता एवं सद्भावना सहित इससे ज़्यादा नेक सलाह मैं अपने घर का

अनाज खा कर आपको फ़ोकट में नहीं दे सकता


-अलबेला खत्री




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