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Albela Khatri

हास्य कवि अलबेला खत्री इन टेपा सम्मान 2008 उज्जैन

लाफ़्टर चैम्पियन अलबेला खत्री लाइव इन कन्सर्ट..........

अन्दाज़-ए-अलबेला

देख यहाँ हिन्दू कौन है मुसलमान कौन है

देख इतना कि इस भीड़ में इन्सान कौन है

राज भाटिया की पूज्या माताजी के स्वर्गवास पर विनम्र गीतांजलि

हास्य सम्राट अलबेला खत्री और जादू के शहंशाह के . लाल एक साथ

गीत गायेंगे मेरे.................................



आपके भी होंठ इक दिन,

गीत गायेंगे मेरे

नींद होगी आपकी पर

ख्वाब आयेंगे मेरे


आपके भी...


जागेगी जिस दम जवानी, जिस्म लेगा करवटें

रात भर तड़पोगी, बिस्तर पर पड़ेंगी सलवटें

आँखें होंगी आपकी पर

आँसू आयेंगे मेरे

आपके भी...



जब कभी दर्पण में देखोगी ये कुन्दन सा बदन

ख़ूब इतराओगी इस मासूमियत पर मन ही मन

मद तो होगा आप पे, पग

डगमगायेंगे मेरे


आपके भी...



राह चलते आपको गर लग गई ठोकर कभी

ख़ाक़ कर दूंगा जला कर, राह के पत्थर सभी

पांव होंगे आपके पर

घाव पायेंगे मेरे


आपके भी...



जब कभी दुनिया में ख़ुद को तन्हा पाओगी प्रिये

जब शबे-फुर्कत में दिल मचलेगी साथी के लिए

आप अपने आप को तब

पास पायेंगे मेरे



आपके भी...

देशभक्त जूते और देशद्रोही लोग ..................

माहौल बहुत गर्म था। गर्म क्या था, उबल रहा था। वक्ताओं द्वारा लगातार

असंसदीय भाषा का प्रयोग करने से सदन में संसद जैसा दृश्य उपस्थित

हो चुका था। सभी को बोलने की पड़ी थी, सुनने को कोई राजी नहीं था।

गाली-गलौज तक पहुंच चुकी बहस किसी भी क्षण हाथा-पाई में भी तब्दील

हो सकती थी। तभी अध्यक्ष महोदय अपनी सीट पर खड़े हो गए और माइक

को अपने मुंह में लगभग ठूंसते हुए बोले, 'देखिए.. मैं अन्तिम चेतावनी

यानी लास्ट वार्निंग दे रहा हूं कि सब शान्त हो जाएं क्योंकि हम लोग यहां

शोकसभा करने के लिए जमा हुए हैं, मेहरबानी करके इसे लोकसभा

न बनाइए। प्लीज..अनुशासन रखिए और यदि नहीं रख सकते तो

भाड़ में जाओ, मैं सभा को यहीं समाप्त कर देता हूं।


अगले ही पल सब

शान्त हो चुके थे। मानो सभी की लपर-लपर चल रही .जुबानों को

एक साथ लकवा मार गया हो। अवसर था अखिल भारतीय जूता महासंघ

के गठन का जिसकी पहली आम बैठक में भाग लेने हज़ारों जूते-जूतियां

एकत्र हुए थे।


एक सुन्दर और आकर्षक नवजूती ने खड़े होकर माइक संभाला,

'आदरणीय अध्यक्ष महोदय, मंच पर विराजमान विदेशी कंपनियों के

सेलिब्रिटी अर्थात्‌ महंगे जूते-जूतियों और सदन में उपस्थित नए-पुराने,

छोटे-बड़े, मेल-फीमेल स्वजनों.. मेरे मन में आज वैधव्य का दुःख तो

बहुत है, लेकिन ये कहते हुए गर्व भी बहुत हो रहा है कि मेरे पति तीन साल

तक लगातार अपने देश-समाज और स्वामी की सेवा करते हुए अन्ततः

शहीद हो गए। उनका साइज भले ही सात था लेकिन मजबूत इतने थे कि

दस नंबरी भी शरमा जाएं।


सज्जनो, जिस दिन उनका निर्माण हुआ, उसके अगले ही दिन एक बहादुर

फौजी के पांवों ने उन्हें अपना लिया। भारतीय सेना का वो शूरवीर सिपाही

लद्दाख और सियाचीन जैसी बर्फ़ीली जगहों पर तैनात रह कर जब तक

अपनी सीमाओं की रक्षा करता रहा तब तक मेरे पति ने जी जान से उनके

पांवों की रक्षा की। गला कर बल्कि सड़ा कर रख देने वाली बर्फ़ीली

चट्टानों और भीतर तक चीर देने वाली तेज़-तीखी शीत समीर से

जूझते हुए वे स्वयं गल गए, गल-गल कर खत्म हो गए परन्तु अपनी

आख़री सांस तक अपने स्वामी के पांवों को ठंडा नहीं होने दिया। मुझे

अभिमान है उनकी क़ुर्बानी पर और मैं कामना करती हूं कि हर जनम

में मुझे पति के रूप में वही मिले चाहे हर बार मुझे भरी जवानी में ही

विधवा क्यूं न होना पड़े, इतना कह कर वह जूती सुबकने लगी।

पूरा सदन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। किसी ने नारा लगाया,

जब तक सूरज चान्द रहेंगे, जूते जिन्दाबाद रहेंगे।


एक अन्य मंचासीन जूता बोला, 'भाइयो और बहनो, आदिकाल से लेकर

आज तक, मानव और जूतों का गहरा सम्बन्ध रहा है। हमने सदा

मानव की सेवा की है और बदले में मानव ने भी हमारा बहुत ख्याल

रखा है, अपने हाथों से हमें पॉलिश किया है, कपड़ा मार-मार कर

चमकाया है यहां तक कि मन्दिर में भी जाता है तो भगवान से ज्य़ादा

हमारा ध्यान रखता है कि कोई हमें चुरा न ले, उठा न ले। मित्रो, त्रेतायुग

में तो हमारे पूज्य पूर्वज खड़ाउओं ने अयोध्या के सिंहासन पर बैठकर

शासन भी किया है। लेकिन आज हमारी अस्मिता संकट में है।

हम मानवोपकार के लिए सदा अपना जीवन अर्पित करते आए हैं, लेकिन

आज घृणित राजनीति में घसीटे जा रहे हैं और सम्मान के बजाय उपहास

का पात्र बनते जा रहे हैं। कभी कोई असामाजिक तत्व हमारी माला बनाकर

महापुरुषों की प्रतिमा पर चढ़ा देता है तो कभी कोई हमारे तलों में हेरोइन

या ब्राउन शुगर छिपा कर तस्करी कर लेता है। आजकल तो हम हथियार

की तरह इस्तेमाल होने लगे हैं, जब और जिसके मन में आए, कोई भी

हमें किसी नेता पर फेंककर ख़ुद हीरो बन जाता है और हमारे कारण

दो दो वरिष्ठ नेताओं की राजनीतिक हत्या हो जाती है बेचारे सज्जन लोग

टिकट से ही वंचित हो जाते हैं। इतिहास साक्षी है, हम अहिंसावादी हैं।

हम न अस्त्र हैं, न शस्त्र हैं लेकिन ये हमारी प्रतिभा है कि अवसर पड़े तो

हम दोनों तरह से काम आ सकते हैं। हमारी इसी योग्यता का लोगों ने

मिसयूज किया है। हमें......शोषण और अत्याचार के विरूद्ध

आवाज़ उठानी होगी।


हां, हां, उठानी होगी, सबने एक स्वर में कहा


इसी तरह और भी अनेक मुद्दे हैं जिनपर हमें एकजुट होकर काम

करना पड़ेगा और अपने हक के लिए संगठित होकर संघर्ष करना

पड़ेगा। जय जूता, जय जूता महासंघ।


सदन में तालियों के साथ नारे भी गूंज उठे

- जूतों तुम आगे बढ़ो जूतियां तुम्हारे साथ है,

हिंसा से अछूते हैं - हम भारत के जूते हैं....इंकलाब-जिन्दाबाद

मुहम्मद रफ़ी तू बहुत याद आए..... ( आज पुण्य तिथि )

आज 31 जुलाई ....पुण्य तिथि पर विशेष रचना
-----------------

नहीं हमेशा रहेगा सूरज
नहीं हमेशा चाँद रहेगा

लेकिन रहते जहां तलक़
फ़नकार! तू सबको याद रहेगा


जब भी मोहब्बत करवट लेगी, जब भी जवानी आएगी
जब भी समन्दर के साहिल पर शाम सुहानी आएगी
उफ़क़ पे ढ़लते आफ़ताब की जब-जब सुर्ख़ी फैलेगी
इश्क़ के दरिया की मौजों पर और रवानी आएगी
जब भी दो दिल मचल उठेंगे, बेख़ुद-मस्त बहारों में
दहर की त्वारीख़ों में लिखी इक और कहानी जाएगी

उस बेख़ुद-मदहोश घड़ी में
कौन किसी को याद रहेगा

लेकिन रहते जहां तलक़
फ़नकार! तू सबको याद रहेगा


हुस्न की क़ातिल फ़ितरत जब-जब सरे-राह उरियां होगी
इश्क़ के मुंह से एक नहीं, लाखों फ़रियादें बयां होंगी
जब कोई दिल टूटेगा, बेवफ़ा हुस्न की चाहत में
जब भी किसी आशिक के दिल की धड़कन सोज़े-निहां होंगी
उथल-पुथल जब मचेगी दिल में हिज्र का आलम छाएगा
बाहर हवा चलेगी लेकिन दिल में आग जवां होगी

बेशक टूट पड़ेंगे तारे
जब वह दिल नाशाद रहेगा

लेकिन रहते जहां तलक़
फ़नकार! तू सबको याद रहेगा



_________विनम्र श्रद्धान्जलि स्वर व सुरों के सच्चे सम्राट को........................
__________________अलबेला खत्री

ये इतना सेक्स जो भर रखा है दिमाग में ....कहाँ निकालोगी ?

मेरे कुछ शब्दों पर आपत्ति करने वालो !
जिन शब्दों पर आपको एतराज़ था
वे यहाँ भरपूर हैं
दिखाई न दे तो मैं इन्हें बोल्ड भी कर देता हूँ


इस एक आलेख में वे शब्द कितनी बार आते हैं

ये तो छोटी बात है,

किस सन्दर्भ में आते हैं ॥

ये मेरी चिन्ता का विषय है ....

ज़रा इसे पढने की कृपा करेंगे ?


कितना सेक्स भरा होगा इसे लेखनीबद्ध करने वाले

के दिमाग में .....ये सोच कर ही घिन आती है


_______

मेरा कहने का मतलब सिर्फ़ इतना लगाया जाए कि अपनी

शारीरिक कुंठाओं को सामाजिक कुंठा का पात्र न बनाएं

-अलबेला खत्री _______________________________




_________कृपया अधोलिखित व अधोगति को प्राप्त
इस आलेख पर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत करावें

सेक्स? माइंड इट प्लीज!


आज सेक्स सबसे बडा सच है। सेक्स है तो दुनिया है, दुनिया की रीति-नीति है। सेक्स नहीं है तो जीवन में कुछ भी नही है। लेकिन सेक्स तो करो, उसे महसूस भी करो, उसका आनंद भी उठाओ, मगर उस पर किसी को बोलो नहीं, वरना वह अश्लील हो जाएगा। इस अश्लीलता की क्या सीमा है, किसी को नहीं पता। हमारी नज़र में तो भद्दे तरीके से खानेवाला, भद्दे तरीके से बोलने वाला, भद्दे तरीके से हरक़त करनेवाला भी अश्लील है। मगर जैसे पंकज का मतलब केवल कमल ही मान लिया जाता है, वैसे ही अश्लील का मतलब भी केवल यौनजनित प्रक्रिया ही मान ली जाती है।


यह यौनजनित प्रक्रिया भी कैसे अलग-अलग सांचे मे ढल कर निकलती है, वह देखिए। एक ही क्रिया-प्रक्रिया एक समय में जायज़ और दूसरे समय में नाजायज़ बन जाती है। अब देखिए न, हम सबकी पैदाइश इस सेक्स की ही बदौलत है।


14 साल तक तो राम और लक्ष्मण भी जंगल में रहे, वे भी तो कहीं जा सके होंगे, मगर नहीं। यौन शुचिता की परीक्षा पुरुषों के लिए नहीं होती


आज लोगों के लिए यौन संबंध ही सबसे बड़ा सच हो गया है। अब देखिए न, अगर घर की लक्ष्मी अपने पति के अलावा किसी और का ध्यान न करे तो वह देवी की तरह पूजनीया हो जाती है। मगर वही लक्ष्मी अपनी सारी ज़‍िम्मेदारियों को पूरा करते हुए भी अगर यौन इच्छा से प्रेरित हो कर कहीं किसी ओर मुड़ गयी तो उसके लिए लोगों के मनोभाव देख लीजिए। क्या यह संभव नहीं कि कोई स्त्री अपने पति से संतुष्ट न हो? पति से इस बाबत कहने पर भी इसका उस पर कोई असर ना पड़े, उल्टा पति उसे अपने अहम पर चोट मान ले और तब और भी ज्यादा अपने ही मन की करे? ऐसे में अगर वह किसी और जगह अपने मन की संतुष्टि की तलाश करे तो इसे ग़लत क्यों मान लिया जाना चाहिए? भले ही वह घर की तमाम ज़िम्मेदारियों को पूरे तन-मन से निबाहती आ रही हो? क्यों आज भी “भला है, बुरा है, मेरा पति मेरा देवता है” पर ही उसे टिके रहना चाहिए? और क्यों समाज की सारी शुचिता का ठीकरा औरतों, लड़कियों पर ही फूटना चाहिये? क्यों समाज में सेक्स ऐसा तत्व मान लिया जाना चाहिए कि उसके ही ऊपर घर का सारा शिराज़ा टिका दिया जाये? क्यों एक स्त्री अपने अन्य संबंधों की बात करे तो उसे निर्लज्ज, यहां तक कि वेश्या सरीखा मान लिया जाए? संबंधों की सबसे मज़बूत कड़ी सेक्स

महामुनि वेदव्यास को अपने शास्त्र से निकाल फेंकें। सभी कोई मिल जुल कर खजुराहो, कोणार्क आदि की मूर्तियों को नष्ट कर दें। याद रखें, इसे किसी विधर्मियों ने नहीं, हमी लोगों ने बनाया है। संभोग, सेक्स आदि शब्द को अपने जीवन से ही निकाल दें। भूल जाएं कि यह हमारे जीवन का एक अनिवार्य तत्व भी है


हम यह कतई नहीं कहते कि आप सारे समय सेक्स और सेक्स ही करते और कहते रहें। लेकिन सेक्स को आप हौआ न बनाएं, उसे एक मर्यादित रूप में रहने दें। मर्यादित से मतलब, छुपी चीज़ नहीं। यह जीवन की अन्य क्रियाओं की तरह ही उतनी ही सामान्य प्रक्रिया हो कि जब भी आपकी ज़रूरत हो, आप उसे उजागर कर सकें। खराब मानेंगे तो खराब बात तो सडक पर थूक फेंकना और कचरा फेंकना भी है। मगर हममें से कितने लोग इसे अश्लील मानते हैं और दुबारा ऐसा न करने की सोचते हैं?

भगवान विष्णु ने सती का शील भंग किया ? हमने पढा और बधाई की टिप्पणी दे कर आनन्द लिया...............


yaad rakhen yah maine nahin likha .....
kisi aur ne likha
aapne bhi padhaa toh hoga mitro !
-albela khatri

_______कमाल है !

_______किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई

_______बल्कि सराहा गया


बलात्कार तो हमारे हिन्दू धर्म का एक हिस्सा है. उसे लगता है की बलात्कार करके उस महामानव ने हिन्दू धर्म कीरक्षा ही की है. यह कहियेगा की हिन्दू धर्म में ऐसा नही है. हम बचपन से यह कहानी पढ़ते आये हैं सटी वृंदा काशील भगवान विष्णु ने उसके पति का रूप धरकर भंग किया था. इसका पता चलने पर वृंदा ने उन्हें शाप दे दिया थाऔर वे सालीग्राम बन गए थे. गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या का शील भंग देवताओं के राजा इन्द्र ने ही किया था. (सोचिये एक राजा का कृत्य). इसका भी पता चलने पर गौतम ऋषि ने इन्द्र को सहस्त्र योनी का शाप दिया था, जिसे इन्द्र के अनुरोध पर सहस्त्राक्ष में बदल दिया गया था. इसमें भी इन्द्र ने गौतम ऋषि का ही रूप धारण कियाथा. इससे एक बात तो पता चलती है की स्त्रिया अपने पति के अलावा और किसी के बारे में नहीं सोचती थीं, इसलिए उनका शील भंग करने के लिए उनके पति का रूप धारण करना देवताओं की मज़बूरी होजाती थी. छाम्माक्छाल्लो इसलिए भी प्रसन्न है की हम अपने धर्म की रक्षा का पालन बड़ी निष्ठा से कर रहे हैं. लड़कियों काक्या है? वे तो होती ही हैं इन सबको झेलने के लिए. जभी तो प्रकृति ने भी उसकी संरचना ऎसी कर दी. अब प्रकृतिसे तो कोई नही लड़ सकता . इसलिए, हे महानुभावो, आइये, हम सभी हम सभी लूली, लंगडी, कानी, अंधी, पागल, विक्षिप्त- आप सभी के लिए प्रस्तुत हैं. आप तोहम पर अहसान कर रहे हैं, हमें हमारी देह और उसकी ज़रुरत औरउसकी पूर्ती से वाकिफ करा रहे हैं. हम सचमुच


हास्यकवि अलबेला खत्री इन अहमदाबाद कवि सम्मेलन

अब तुम्हें वचन पूरा करना पड़ेगा......................

पत्नी अपने पति की शराबखोरी से बहुत परेशान थी

एक दिन अकड़ गई.................

पत्नी - जो तुम आज भी दारु पियोगे ...तो मुझे मरना पड़ेगा !

पति - ये ले......पी ली....

अब तुम्हें वचन पूरा करना पड़ेगा __________हा हा हा हा हा हा हा

हाथ पीले करदो वरना मुंह काला हो जाएगा ................

महिलाओं का मैं बहुत सम्मान करता हूं। हंसने की बात नहीं है, सचमुच करता हूं,
वाकई करता हूं और मैं तो क्या मेरे पिताजी भी किया करते थे। हो सकता है

उनके पिताजी भी करते हों लेकिन मैं गारंटी से कुछ नहीं कह सकता क्योंकि

उस वक्त मैं था नहीं इसलिए देखा नहीं। पर इतना .जरूर जानता हूं कि आदमी

जिससे डरता है उसका सम्मान करता ही है और करना भी चाहिए

नहीं तो महिलायें इतनी तेज़ तथा आत्म निर्भर होती हैं कि ख़ुद करवा लेती हैं

और अपने तरीके से करवा लेती हैं। इतिहास साक्षी है, जिस-जिस व्यक्ति ने

महिलाओं का सम्मान किया, वह मज़े में रहा और जिसने नहीं किया

वह कहीं का नहीं रहा। कंस, रावण, दुर्योधन और दुःशासन जैसे

महाबलियों की कैसी वाट लगी थी, ये हम बचपन से पढ़ते आए हैं।



पुरानी बात छोड़ो, आज के हालात देख लो....

डॉ. मनमोहन सिंह ने एक महिला का विश्र्वास जीत लिया तो बिना चुनाव

लड़े भी देश के प्रधानमंत्री बन गए जबकि अटल बिहारी वाजपेयी कुंवारे

होकर भी एक अखण्ड कुंवारी को ख़ुश नहीं रख सके और उनकी बनी बनाई

गवर्नमेन्ट सि़र्फ एक महिला यानी महारानी जयललिता के कारण गिर गई थी।

लालू यादव ने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया तो उसके पुण्य-प्रताप से

केन्द्र में रेलमंत्री बनने का गौरव प्राप्त किया जबकि उन्हीं के बिरादरी भाई

मुलायम सिंह ने मायावती से टक्कर ली तो ऐसी मुंह की खाई

कि सारी हवा निकल गई। ऊपर से मतवाला हाथी सायकल पर ऐसा चढ़ा

था कि पुर्ज़ा पुर्ज़ा रगड़ दिया, रायता बनाकर रख दिया।



इसलिए मेरे भाई, नारी का सम्मान करना .जरूरी है, लाज़िमी है, अनिवार्य है।

क्योंकि सारा का सारा माल महिलाएं दबा के बैठी हैं, पुरूष तो बेचारा

अपने मुंह पर थप्पड़ मार कर गाल लाल रखता है ताकि समाज में

उसकी हेकड़ी बनी रहे। धन दौलत लक्ष्मी मां के पास है,

शक्ति-सामर्थ्य दुर्गा मां के पास है, विद्या-बुद्धि शारदा मां के पास है,

अन्न-औषधि धरती मां के पास है, जल की धारा गंगा-यमुना आदि

माताओं के पास है, दूध-दही की व्यवस्था गाय-भैंस माता के पास है

और बाकी जो बचा वो सब प्रकृति मां के पास है। पुरूषों के पास

छोड़ा क्या है? यहां तक कि जिसके कारण हम सांस लेकर .जिन्दा हैं

वो हवा भी माताजी ही हैं। इसलिए मैंने तो कान पकड़ लिए हैं और

क़सम खा ली है कि चाहे में ख़ुद का सम्मान न करूं, पर महिलाओं का

अवश्य करूंगा और मरते दम तक करता रहूंगा।


हालांकि इस मामले में कुछ लोग मेरे भी उस्ताद हैं। इतने उस्ताद हैं कि

दिन-रात महिलाओं के बारे में ही सोचते रहते हैं और उनका सम्मान

करने का सही मौका ढ़ूंढते रहते हैं। ये पठ्ठे इतने उत्साहीलाल हैं कि

सुबह सवेरे ही घर से निकल पड़ते हैं महिलाओं की तलाश में और

शाम होने तक लगे रहते हैं महिलाओं का सम्मान करने में। इनकी गिद्ध दृष्टि

लगातार ऐसी महिलाओं को ढूंढती रहती है जिसका मन सम्मान

करवाने को मचल रहा हो। आम तौर पर ये भले लोग अपने मिशन में

कामयाब हो जाते हैं और सम्मान प्रक्रिया पूर्ण होने पर

शरीफ़ लोगों की तरह अपने घर चले जाते हैं लेकिन जिस दिन इन्हें कोई

सम्मान कराऊ महिला नहीं मिलती उस दिन वे बेचैन हो जाते हैं

और .जबर्दस्ती सम्मान करने पर उतारू हो जाते हैं। इन्हें रोकने के लिए

तब महिलाओं को शक्ति प्रदर्शन करना पड़ता है कई बार तो पुलिस भी

बुलानी पड़ती है। लेकिन ये पठ्ठे इतने मजबूत हैं कि पुलिसिया मार

खाके भी सुधरते नहीं हैं, थाने से छूटते ही फिर किसी महिला को ढ़ूंढऩे

निकल पड़ते हैं सम्मान करने के लिए। असल में ये लोग कुंवारे होते हैं

इसलिए महिलाओं का सम्मान करने के लिए मरे जाते हैं, जो शादीशुदा

लोग हैं वे इस पचड़े में नहीं पड़ते।


शादीशुदा आदमी तो महिला के नाम से ही आतंकित हो जाता है उनका

सम्मान करना तो दूर की बात है। इसलिए हे मेरे देश के औलाद वालो,

अपनी औलाद को सम्हालो, इनकी दिनचर्या का ध्यान रखो और बेटे की

उम्र शादी लायक होते ही उसके हाथ लाल-पीले कर डालो वरना

किसी दिन वह मुंह काला करता पकड़ा जाएगा तो तुम्हारा सारा सम्मान

हवा हो जाएगा। समझ गए ना?


जय हिन्द !

- अलबेला खत्री

स्वागत है आपके आक्रमण का प्यारे बन्धुओ !

आप सब महानुभावों का

और आपकी

मुझ पर लिखित टिप्पणियों का

गर्मजोशी से स्वागत है


____आपश्रीजन नारी ब्लॉग पर फ़रमाते हैं .........

26 Comments:

लवली कुमारी / Lovely kumari said...

कैसे अश्लील शब्दों को सामाजिक (यहाँ ) मान्यता मिल जाती है सभ्य लोगों के बीच ..उन्हें असहमति दर्ज करवानी थी तब भी श्लील शब्दों का प्रयोग कर सकते थे.मेरी भी आपति दर्ज की जाये.

Mohammed Umar Kairanvi said...

साथ ही चेतावनी भी देदी जाती तो अच्छा था, 'नारी का सम्‍मान करें, अन्यथा नारी शक्ति' से आपका परिचय कराया जायेगा, अधिक फिर कभी कहूँगा फिलहाल तो आपने भी कम शब्दों में ही बहुत कुछ कहा है,

मेरी भी आपति दर्ज की जाये,

आर. अनुराधा said...

सबसे पहले इन महाशय के अपशब्दों के खिलाफ मेरी भी सख्त आपत्ति और विरोध दर्ज किया जाए। इसके बाद मुझे कहना है कि ऐसी मानसिकता से लड़ने के लिए ही हम महिला ब्लॉगर मैदान में डटी हुई हैं। और इन चंद हल्के, ओछे, अभद्र शब्दों से डर कर चुप रहने वाले हम नहीं। अपने विचारों को तर्कों और व्यवहार से सही साबित करने का अभियान जारी रहे।

संगीता पुरी said...

ऐसी बातों से भला किसको आपत्ति न होगी .. अपने अपने विचारों की अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता सबों को है .. चाहे वे पुरूष हो या नारी .. पर अश्‍लील शब्‍दों का प्रयोग अनुचित है .. ये सभ्‍य लोगों का मंच है ।

विवेक सिंह said...

हम तो इस ओछी हरकत की निन्दा ही करेंगे,

ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किसी तरह भी सही नहीं कहा जा सकता !

सागर नाहर said...

ऐसे बढ़िया हाय कवि/कलाकार से ये उम्मीद ना थी, पिछली एक दो पोस्ट में उन्होने जो कुछ लिखा देखकर घिन तो आई ही आपके प्रति जो सम्मान था वह भी कम ही हुआ।
आप जैसे वरिष्‍ठ कवि- ब्लॉगर को बी आर पी बढ़ाने के ये नुस्खे शोभा नहीं देते।

रंजना [रंजू भाटिया] said...

लिखने की यहाँ सबको स्वंत्रता है .पर शब्द वह हो जो किसी को आहत न करें ...आप जो भी लिखते हैं वह आपके व्यक्तित्व का आईना होते हैं ..आपकी सोच और उसकी सीमा को दर्शाते हैं ....इस तरह के शब्दों के प्रति मेरी भी असहमति दर्ज की जाए ..

आशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal) said...

काश कि हिन्दी ब्लॉग जगत का लेखन लिंग, जाति, मजहब, पेशे की संकीर्णताओं से ऊपर उठे और इस तरह के लेखन से बचते हुए कुछ सार्थक किया जाए... आमीन।

Suresh Chiplunkar said...

सागर भाई से सहमत,अलबेला खत्री जैसे हास्य कवि को अपने ब्लॉग की TRP बढ़ाने के लिये INDIA TV जैसे तरीके अपनाने की जरूरत नहीं है, पहले भी वे ब्लॉगरों के नाम लेकर चुटकुले बनाकर हास्य पैदा करने की कोशिश कर रहे थे… उन्हें सिर्फ़ अपनी हास्य व्यंग्य रचनायें ही देना चाहिये, इस प्रकार की घटिया भाषा या हेडिंग देने का कोई औचित्य ही नहीं है…

अनिल कान्त : said...

गलत, अश्लील बातों और असमाजिक बातों से किसे आपत्ति नहीं होगी ...ये अनुचित है

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ऐसे संबोधनों से नारी का सम्मान कैसे कायम रहेगा -- ये बताएं -
नारी ही नारीयों का बुरा करतीं हैं
ये भी सच है
परंतु,
२१ वीं सदी के पुरुषों से ये अपेक्षा रखनी भी जायज है कि, नारी दमन या नारी के अपमान सूचक शब्दों और व्यवहार को
अपने मन से निकाल कर,
सदा के लिए ,
तिलांजलि दे देवें --
नारी समाज से भी यही आशा करें -
नारी का सम्मान कीजिये -
पुरुषों और नारियों के बीच चला आ रहा ये विवाद , अब ख़त्म करें --
- लावण्या

Mithilesh dubey said...

बिलकुल सही कहना है आपका, ब्लकी मै तो यहा तक कहना चाहुंगा कि इस प्रकार के ब्लागर के खिलाफ सख्त कार्यवाइ की जानी चाहिये ताकी एसा कोई और ना कर पाये।

Parul said...

आपत्ति भी विरोध भी है !

निशा मधुलिका said...

इस तरह की मानसिकता और शब्दों के उपयोग के विरुद्द मेरी भी आपत्ति है

Anonymous said...

दुखद है .....

Vidhu said...

अश्‍लील शब्‍दों का प्रयोग अनुचित है, such people should not be forgiven!

varsha said...

काश कि हिन्दी ब्लॉग जगत का लेखन लिंग, जाति, मजहब, पेशे की संकीर्णताओं से ऊपर उठे . aasheeshji ki baat se sahmat..

Anonymous said...

मैंने यहां पर http://albelakhari.blogspot.com/2009/07/sunaya-tha.html आपत्‍ती दर्ज की थी । तो मुझे ये http://albelakhari.blogspot.com/2009/07/blog-post_4635.html जवाब मिला था । आज आपके पोस्‍ट से मुझे मजबूती मिली है ।

Neeraj Rohilla said...

उनकी दोनों पोस्ट सरसरी निगाह से देखी थी और नजर में खटकी भी थीं।

अलबेला खत्री जी के अन्य लेखन को देखते हुये उम्मीद है कि वो सम्भवत: अनजाने में हुयी इस (गलती तो नहीं, अलबत्ता Letting his guard down) को अवश्य विचारेंगे।

रंजन said...

अलबेला जी को नियमित पढ़ता हूँ और कमेंट भी करता हूँ... पर ये पोस्ट देख मुझे हैरानी हुई.. मैने दो तीन बार समझने की कोशिस की... मुझे लगा शायद मैं कोई बात पकड़ नहीं पा रहा.. पर आपकी पोस्ट से मुझे लगा की मैं गलत नहीं समझ रहा...

मुझे भी ये उम्मीद नहीं थी..

मेरी भी आपति दर्ज की जाये..

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' said...

कौन यहाँ नर?

नारी कौन?...

शब्द ब्रम्ह के सभी उपासक,

सत-शिव-सुन्दर के आराधक.

मन न दुखाएँ कभी किसी का

बेहतर है रह जाएँ मौन.

कौन यहाँ नर?

नारी कौन?.....

खुसरो मीरां में क्या अंतर?

दोनों पढें प्रेम का मंतर.

सिर्फ एक नर- परम-आत्मा

जाने आत्मा नारी जौन.

कौन यहाँ नर?

नारी कौन?.....

कलम का कमाल यही की जो कहना चाहे इस तरह कहे कि कलाम से किसी को मलाल न हो.
शक्ति-सम्मान का सिपाही मैं भी

Anonymous said...

अलबेला से ये उम्मीद तो कतई नहीं थी. पोस्ट तो वाहियात है ही ... लेकिन पता नहीं आप में से कितने लोगों का ध्यान उनकी इस पोस्ट के लेबल्स की और गया . .... घोर आपत्तिजनक शब्द उन्होंने इस पोस्ट के लेबल में लिखे हैं.

sidheshwer said...

हवा मगरूर दरख्तों को पटक जाएगी .
बचेगी शाख वही जो कि लचक जाएगी.
शब्दों के बरतने में संयम जरूरी है!

vande ishwaram said...

is naari ka apman karne wale ka hamen apni saamarthay anusar bahishkar karna chahiye

Udan Tashtari said...

निश्चित ही आपत्ति योग्य बात है. नर हो या नारी, सम्मान आवश्यक है. शब्दों के चयन हमेशा ही ऐसा हों, कि कोई भी अपमानित न हो.

मैं आपसे सहमत हूँ, एवं अपनी आपत्ति दर्ज करता हूँ.

Arvind Mishra said...

मैंने भी अपनी आपत्ति वहां दर्ज करा दी है -यह अशोभनीय है !

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मैं अलबेला खत्री अपने पूर्ण होशो-हवास में यह लिख रहा हूँ और

लिखते हुए हर्ष व्यक्त करता हूँ कि चलो......सभी सही.....

कम से कम ये मुट्ठी भर लोग तो लेखनी के सच्चे सिपाही हैं

जिनकी आँखों का पानी अभी मरा नहीं है

साधु !

साधु !

आप सभी धन्य हैं .................

धन्य हैं आप क्योंकि आपने


इससे पहले कभी कोई ऐसी पोस्ट पढी ही नहीं जिस में

अभद्र ,गन्दे, ओछे, घटिया वाहियात शब्द प्रयुक्त हुए हों

_____________आपको ये जान कर हैरत होगी

सज्जनों !
कि आपकी टिप्पणियां पढने से पहले ही मैं वे पोस्ट हटा चुका हूँ

जिनमे वे शब्द थे जो आपने कभी नहीं पढ़े ...

खासकर हिन्दी ब्लॉग जगत में

__________________________अरे सज्जनों !


किसके विरुद्ध आँखें तरेर रहे हो ?

उसके विरुद्ध ?

जिसके अन्दाज़--सुखन का आपको अलिफ़ बे तक का

पता नहीं ..............

________________आपकी गलती नहीं है सज्जनों !


अधिकाँश लोग ऐसे ही होते हैं जो हवा के साथ बहने में ही

भला मानते हैं

वे कभी दूसरों को पढ़ते ही नहीं, बस ख़ुद को ही

अदब का मसीहा मानते हैं


__________आप जैसे भले लोगों ने मुझे इस लायक समझा कि

मेरा विरोध किया जा सके....ये जान कर बड़ा आनन्द मिला

बल्कि गर्व कि अनुभूति हुई...

===========यह स्नेह और स्मरण बनाए रखें

सधन्यवाद,

सदैव विनीत

अलबेला खत्री

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आइये आइये रचनाजी, अब तक आप कहाँ थीं ?

आइये आइये रचनाजी, आइये............

आपका स्वागत है


आपका स्वागत है तो आपके झूठ का भी स्वागत है


देखिये .....

आपके स्वागत के लिए मैंने रास्ता साफ़ कर दिया है

वे तमाम पोस्ट और शब्द मैंने हटा लिए हैं जिन पर आपको

अथवा किसी भी सभ्य नारी-पुरूष को आपत्ति हो सकती थी

और हुई भी ....औरों की छोड़ो, स्वयं मुझे बहुत आपत्ति थी

लेकिन अफ़सोस ! कि गन्दगी साफ़ करने के लिए हाथ गन्दे

करने के अलावा कोई उपाय भी तो नहीं था मेरे पास ....


रचनाजी,

एक कुत्ता भी जब बैठता है तो अपनी दुम से वहाँ की जगह

साफ़ करके बैठता है............ फ़िर मैं

हाँजी मैं !

माँ सरस्वती का आराधक

शब्द-ब्रह्म का साधक

कवि अलबेला खत्री

ऐसी जगह कैसे बैठ जाता ...

जहाँ कुछेक लेखिकाओं अथवा तथाकथित लेखिकाओं ने

भरपूर कचरा फैला रखा था...........

बात समझ में आई ?

शायद नहीं आई होगी

क्योंकि जिसे आँखों से दिखाई नहीं देता ,

उसे चश्मा भला क्या दिखा सकता है !


खैर.........आज अगर समय निकाला है तो एक मेहरबानी

और भी करनामैं पिछले तीन महीने से ब्लोगिंग की इस

दुनिया में सक्रिय हूँ और इस दौरान 353 रचनायें मैंने पोस्ट की हैं

जिन में अधिकाँश पोस्ट मैंने नारी के सम्मान में ही लिखी हैं

बल्कि ऐसी लिखी हैं कि पढ़ोगी तो आँखें फटी की फटी रह जायेंगी



जिस व्यक्ति ने कभी एक शब्द भी बिना सोचे बोला हो, जो अभद्र

शब्द लिख ही नहीं सकता ...आख़िर क्यों मजबूर हुआ वह

अश्लील शब्द लिखने के लिए ...इस पर विचार करना



नारी हो कर नहीं, नारीत्व की ध्वजवाहिका बन कर नहीं बल्कि

रचना बन कर .............क्योंकि मैंने वे आलेख पुरूष के रूप में

नहीं बल्कि अलबेला खत्री के रूप में लिखे थे


चलो छोड़ो .........जाने दो.........

मेरी कवितायें पढ़ने के लिए और समझने के लिए तो एक

मानसिक, आत्मिक, आध्यात्मिक और साहित्यिक स्तर की

ज़रूरत पड़ेगी इसलिए सरल काम कीजिये .....छम्मकछल्लो

नाम की कोई लेखिका है उसके पिछले कुछ लेख पढ़ लो ,

इसी से मिलते जुलते कुछ और ब्लौगर लेखिकाओं को पढ़ लो,

यदि वे सब शब्द जिन पर आपको गहरी आपत्ति है, वहाँ मिले

तो मुझे जो चाहे कह देना ........लेकिन ये सारे शब्द और भी

घिनौने रूप में आपको वहाँ मिल जाएँ तो मन ही मन मुझसे

माफ़ी मांग लेना ...माँ शारदा आपका भला करे...........


जय हो !



खाना लग चुका है और एक नारी चाहती है कि पहले मैं भोजन

कर लूँ ........इसलिए कर ही लेता हूँ

शेष ब्रेक के बाद............................











जन्मदिन मुबारक हो समीरलालजी !

प्यार से भी प्यारे

हम सब के दुलारे

__________समीरलालजी समीर

__________उड़न तश्तरी वाले को हार्दिक बधाई

__________बहुत बहुत बधाई !

___जन्म दिवस मुबारक हो भाई !




______________________एक गीत तुम्हारे नाम..........



जब कलियाँ फूल बनीं, गुलशन ने ली अंगड़ाई

तितलियों ने नृत्य किया, भंवरों ने ग़ज़ल गाई

इस मंगल बेला पर मेरे दिल से सदा आई .............बधाई !

...................................................................हो.....बधाई !

जब कलियाँ____



मन करता है

तेरी नज़रें उतार लूँ

अधरों से नहीं

तुझे आँखों से पुकार लूँ

प्यार भरा कोई

अनमोल उपहार दूँ

ब्ल्यू लेबल की बोतल ?

या बाँहों वाला हार दूँ


यारों से मिले यारा, रुत महफ़िल की आई

इस मंगल बेला पर मेरे दिल से सदा आई ............बधाई !

.................................................................हो .....बधाई !

जब कलियाँ_____




यही दुआ मांगते हैं

बजा कर तालियाँ

जीवन में रहे तेरे

सदा खुशहालियाँ

क़दमों में रहे तेरे

वैभव की थालियाँ

बनी रहे सदा तेरे

गालों पर लालियाँ

सौ साल चमकती रहे रंग-रूप की तरुणाई

इस मंगल बेला पर मेरे दिल से सदा आई .........बधाई !

.............................................................हो......बधाई !


जब कलियाँ फूल बनीं

गुलशन ने ली अंगड़ाई !



जय हो ................

समीर लाल की जय हो !





साधो ! ये मुर्दों का गाँव ......................................

सच कहा कबीर ने....................

साधो ! ये मुर्दों का गाँव

________गुरदास मान का एक गीत भी है -

ऐथे तमगे मिलदे मरयां नूं

ऐथे जयोणा सख्त गुनाह सजणा -

सजणा सजणा


__________________ये मैं इसलिए कह रहा हूँ कि

कुछ दिन पहले एक सड़क दुखान्तिका में कविवर

प्रकाश आदित्य, नीरज पुरी, लाड सिंह गुर्जर, व्यास ,

एक फोटोग्राफर वाहन चालक इत्यादि कुल 6 लोग मारे

गए थेबहुत दुःख मनाया गया , श्रद्धांजलियाँ दी गईं लेकिन

किसी को ये याद नहीं रहा कि उस वाहन में

एक मात्र कवि ऐसा भी था जो कि घायल तो हुआ था लेकिन

बच गया............मरा नहीं


जानी बैरागी नाम का वह कवि चूँकि राजोद नाम के एक छोटे से

गाँव का रहने वाला है और मंच पर भले ही कितना जम

जाए, तथाकथित (बड़े) कवियों के किसी ख़ास गुट में

अभी वह नहीं जमा है इसलिए तो किसी ने उसे सार्वजनिक

तौर पर ज़िन्दा बचने पर बधाई दी, ही उसे किसी

तरह की आर्थिक मदद के लिए पूछा ..........


वह क्या कर रहा है ?

कैसे घर चला रहा है ?

शायद उससे हमें सरोकार नहीं है

क्योंकि इस मृत्युलोक में सम्मान श्रद्धा के लिए

मरना पड़ता है

ज़िन्दों को शायद ये अधिकार नहीं है

जीवित लोग यहाँ पर दरकार नहीं है


__________________साधो ! ये मुर्दों का गाँव........

__________________साधो ! ये मुर्दों का गाँव....

साधना सरगम की सुहृदयता और विनम्रता .........

बात तब की है

जब हम करगिल युद्ध जीते थे और मैं

हमारे सूरमा शहीदों के सम्मान में ऑडियो अल्बम

"
तेरी जय हो वीर जवान "

का निर्माण कर रहा था


मैंने सात गीत लिखे थे जिन्हें अलग-अलग गायकों

के स्वर में पिरो कर अल्बम बनाना था

चूंकि इसका सारा खर्च मैं ख़ुद कर रहा था और HMV के

द्वारा रिलीज़ होने पर इसकी सारी रौयल्टी भी शहीद परिवार

फंड के लिए ही व्यय होनी थी इसलिए मेरे पास

बजट भी सीमित था और समय भी................



शेखर सेन ,उद्भव ओझा , जसवंत सिंह और अर्णब की रेकॉर्डिंग

हो चुकी थी सिर्फ़ साधना सरगम का एक गीत बाकी था

संयोग से उस दिन मुंबई में ऐसा बादल फटा कि पानी-पानी

हो गया ............अब मैं घबराया क्योंकि यदि साधना नहीं आती है

तो स्टूडियो अन्य लोगों का खर्च बेकार जाएगा और

बड़ी तकलीफ ये कि उसके बाद 20 दिन तक स्टूडियो

मिलेगा भी नहीं



चूंकि मैं साधना जी को मानधन भी बहुत कम दे पा रहा था

इसलिए मुझे शंका हुई कि साधना शायद भारी बरसात और

जल जमाव के बहाने डंडी मार देगी,

गाने के नहीं आएगी ...............



लेकिन कमाल________कमाल !


साधना तो गई ......


कार पानी में फंस गई तो ऑटो रिक्शा किया,

वह भी फंस गया तो कमर के ऊपर तक सड़क पर भरे

पानी में पैदल - पैदल चल कर आई लेकिन आई और

आते ही कहा- सौरी अलबेलाजी मैं थोड़ा लेट हो गई __

मैं हैरान रह गया कि वह पहुँची कैसे ? और महानता

उस महिला कि ये कि लेट होने के लिए भी सौरी बोल रही है



मैंने कहा- पूरा भीग चुकी हो, पहले गर्म गर्म चाय पी लो,

साधना ने कहा - नहीं टाइम बिल्कुल नहीं है ...

चाय बाद में पियूंगी पहले आपका काम ..........


साधना ने तिरंगे वाला गाना "हम को तुम पर नाज़ है "

गाया और ऐसा गाया कि सबको भाव विभोर कर दिया

विशेषकर गीत के अन्त में जो आलाप लिया उसने तो

पूरी यूनिट को रुला दिया, साधना स्वयं भी सुबक उठी थी ।

बाद में फोन करके बताया कि कल्याणजी भाई

(कल्याणजी आनंदजी) ने भी इस गीत को बहुत पसंद किया



तो मित्रो ! यह थी साधना सरगम की सुहृदयता और विनम्रता

जिसके प्रति मैं सदा कृतज्ञ रहूँगा ...क्योंकि वो इतने पानी में

पैदल चल कर सिर्फ़ इसलिए आई थी कि वह जानती थी

मैं कितनी मुश्किलों में उस अल्बम को बना रहा था

यदि किसी कारण अटक गया तो कई दिनों के लिए लटक

जाएगा ....


धन्यवाद ..साधना !


बहुत बहुत धन्यवाद ! हार्दिक आभार कृतज्ञता.................


-अलबेला खत्री






हमको तुम पर नाज़ है ...............

एक गीत

हमारे राष्ट्र -ध्वज

तिरंगे की ओर से

अमर बलिदानियों के नाम





आज तिरंगे के तीनों रंग देते ये आवाज़ हैं

हिन्द की ख़ातिर मिटने वालो

हमको तुम पर नाज़ है


मातृभूमि के लाड़ले बेटो, आपकी क़ुरबानियां

राह दिखाएंगी नसलों को बन कर अमर कहानियां

आपके दम पर आज सलामत भारत मॉं की लाज है

हिन्द की ख़ातिर मिटने वालो

हमको तुम पर नाज़ है



ना परवाह की भूख की तुमने, ना परवाह की प्यास की

परवाह की तो सिर्फ़ बटालिक, कारगिल की और द्रास की

विजय पताका फहराने का आप ही के सर ताज है

हिन्द की ख़ातिर मिटने वालो

हमको तुम पर नाज़ है


मारते-मारते मरे बहाद्दुर, मरते-मरते मार गए

जब तक सांस रही जूझे वो, बस फिर स्वर्ग सिधार गए

दूध का कर्ज़ चुका देने का ये भी इक अन्दाज़ है

हिन्द की ख़ातिर मिटने वालो

हमको तुम पर नाज़ है


है हमको सौगन्ध तुम्हारी पावन-पावन राख की

हस्ती मिटा कर रख देंगे, अपने दुश्मन नापाक की

प्यार से जब न बात बने तो वार ही सिर्फ़ इलाज है

हिन्द की ख़ातिर मिटने वालो

हमको तुम पर नाज़ है

माताओं की आरती ..................





धन्य-धन्य ये धरती जिस पर ऐसे वीर जवान हुए

मातृ-भूमि की ख़ातिर जो हॅंसते हॅंसते क़ुरबान हुए

जिनकी कोख के बलिदानों पर गर्व करे माँ भारती

आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती

आओ गाएं हम

वन्दे मातरम ...

वन्दे मातरम ...

वन्दे मातरम ...


aanchal
‌‌‌के कुलदीप को जिसने देश का सूरज बना दिया

अपने घर में किया अन्धेरा, मुल्क़ को रौशन बना दिया

जिनके लाल मरे सरहद पर क़ौम की आन बचाने में

जान पे खेल गए जो मॉं के दूध का कर्ज़ चुकाने में

है उन पर बलिहारी, देश की जनता सारी

देश की जनता सारी, है उन पर बलिहारी

जो माताएं इस माटी पर अपने बेटे वारतीं

आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती... आओ गाएं हम...



जिनके दम पर फहर रहा है आज तिरंगा शान से

जिनके दम पर लौट गया है दुश्मन हिन्दोस्तान से

जिनके दम पर गूंजी धरती विजय के गौरव-गान से

जिनके दम पर हमें देखता जग सारा सम्मान से

है उन पर बलिहारी, देश की जनता सारी

देश की जनता सारी, है उन पर बलिहारी

जिनकी सन्तानें दुश्मन को मौत के घाट उतारतीं

आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती ... आओ गाएं हम...



जिन मॉंओं ने दूध के संग-संग राष्ट्र का प्रेम पिलाया

जिन मॉंओं ने लोरी में भी दीपक राग सुनाया

जिन मॉंओं ने निज पुत्रों को सीमा पर भिजवाया

जिन मॉंओं ने अपने लाल को हिन्द का लाल बनाया

है उन पर बलिहारी, देश की जनता सारी

देश की जनता सारी, है उन पर बलिहारी

जिनकी ममता रण-भूमि में सिंहों सा हुंकारती

आओ हम सब करें आज उन माताओं की आरती ... आओ गाएं हम...

वन्दे मातरम ...

वन्दे मातरम ...

वन्दे मातरम ...
‌‌‌

जब घर से चला जवान




जब घर से चला जवान तो माता क्या बोली?


माता बोली लिपटा कर,

छाती से उसे लगाकर

दुश्मन फिर सर पर आया,

सीमा ने तुझे बुलाया

ओ भारत के रखवाले,

अपने हथियार उठा ले

तूने मुझसे जनम लिया है

और मेरा दूध पीया है

तो दूध का कर्ज़ चुकाना,

वर्दी का फ़र्ज़ निभाना

हारा मुंह मत दिखलाना,

अब जीत के ही घर आना

मेरी कोख की लाज बचाना,

रण में मत पीठ दिखाना



जब घर से चला जवान तो बहना क्या बोली?


आंसू जल के फौव्वारे,

बहना की आंखों के धारे

जब फूट पड़े गालों पे,

मुंह ढांप लिया बालों से

ली दस-दस बार बलैयां,

फिर बोली प्यारे भैया

इस घर को भूल न जाना,

तुम वापस लौट के आना

राखी का बॉंध के धागा,

बस एक वचन ये मॉंगा

पीछे मत कदम हटाना,

आगे बढ़ते ही जाना

मेरी राखी की लाज बचाना,

रण में मत पीठ दिखाना



जब घर से चला जवान तो सजनी क्या बोली?


वो बोली कर आलिंगन,

तुम जाओ मेरे साजन

मैं भी अरदास करूंगी,

व्रत और उपवास करूंगी

तुम अपना धर्म निभाओ,

दुश्मन को धूल चटाओ

बैरी की छाती फाड़ो,

फिर उसपे तिरंगा गाड़ो

गर देनी पड़े क़ुरबानी,

मत करना आना-कानी

हॅंसते-हॅंसते मिट जाना,

गोली सीने पे खाना

मेरी मांग की लाज बचाना

रण में मत पीठ दिखाना



जब घर से चला जवान, दिशाएं गूंज उठीं


तेरी जय हो वीर जवान

तेरी जय हो वीर जवान

तेरी जय हो वीर जवान

करगिल विजय की दसवीं वर्ष गाँठ मुबारक !

दुनिया भर में रहने वाले

समस्त

भारतीयों को

करगिल विजय की

दसवीं वर्षगाँठ मुबारक !

_________________आओ संकल्प करें

अपने देश के मान सम्मान और स्वाभिमान

पर बुरी नज़र डालने वाली

हर ताक़त का मुंह काला करेंगे

तथा

अपने तन मन धन श्रम से

समूचे देश में उजाला करेंगे

जय हिन्द !

जय हिन्दी !

जय जय हिन्दुस्तान !


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