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Albela Khatri

मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा आयोजित अखिल भारतीय हास्य कवि सम्मेलन



शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आयोजित अखिल भारतीय हास्य कवि सम्मेलन,,,,, होना ही था, सुनने वाले लोग अच्छे थे, आयोजन स्थल भी ज़बरदस्त सजा हुआ था, यूनिट के प्रबन्ध निदेशक समेत सभी पदाधिकारी ठहाके लगाने के लिए मूड में थे और प्रताप फ़ौजदार, ममता शर्मा, नंदकिशोर अकेला तथा सुन्दर मालेगांवी हंसाने के मूड में भी थे

और हाँ, मैं ये बताना तो भूल ही गया कि मंच संचालन जब अलबेला खत्री के हाथ में होगा तो आनन्द तो आएगा ही, यह कौन सी नई बात है हा हा हा हा हा हा हा

जय हिन्द !
अलबेला खत्री
 






 

zara yaad karo qurbani by albela khatri & art india creation

ZARA YAAD KARO QURBANI



jai hind !
albela khatri

कवि सम्मेलनों के नाम पर कुछ ख़ास कवियों की मार्केटिंग करने वाले तत्वों को इस कार्यक्रम से दूर ही रखा गया था


अन्तर्राष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन सूरत के तत्वाधान में होली के अवसर पर आयोजित विराट हास्य कवि सम्मेलन "हास्य गुलाल" कई मायनों में अनूठा कार्यक्रम था .  लाफ्टर चैम्पियन अलबेला खत्री के अनूठे  मंच संचालन में सूरत के कवि सम्मेलनीय इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि मंच से सिर्फ़ मौलिक और स्वरचित काव्यप्रस्तुति की गयी  तथा सुनेसुनाए  चुटकुलों को संचालक ने सिरे से ही नकार दिया था . पूरी तरह से पारिवारिक मनोरंजन से  परिपूर्ण  इस कार्यक्रम में हास्य-व्यंग्य के साथ साथ राष्ट्रभक्ति के स्वरों को भी पूरे मनोयोग से सुना गया  .

फ़िल्मी संवादों के अलावा फ़िल्म अभिनेता रंजीत ने जब गाना भी गाया तो लोग झूम उठे,  सुन्दर, शालीन, मौलिक और मधुर  स्वर की साम्राज्ञी श्वेता सरगम के गीत और ग़ज़लों की बहार ने महफ़िल को मोहब्बत से महका दिया, वरिष्ठ कवि संदीप सपन  की ऊर्जस्वित प्रस्तुति के  साथ साथ राजेश अग्रवाल का काव्यपाठ तो जैसे एक उपलब्धि थी सूरत वासियों के लिए ,,,ये दोनों पहली  बार सूरत में प्रस्तुति देने आये थे और खूब पसंद किये गए .  नरेंद्र बंजारा और अशोक भाटी ने भी उम्दा काव्यपाठ किया .

रमेश लोहिया, किशोर बिन्दल, राजू खण्डेलवाल, राजेश भारुका,  सुभाष मित्तल,  इन्दिरा  अग्रवाल इत्यादि आयोजकगण के सधे और कुशल नेतृत्व में दर्शकों से ठसाठस भरे सभागार में अभिनेता रंजीत, वरिष्ठ समाजसेवी किशन अग्रवाल, विधायक श्रीमती संगीता पाटील व हर्ष संघवी के अलावा  श्रीमती गंगा पाटिल, राजू देसाई,  मनोज मिस्त्री इत्यादि अनेक विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति समारोह की गरिमा बढ़ा रही थी . लगभग तीन घंटे तक चले इस रंगारंग  काव्यमहोत्सव में सभी दर्शकों के लिए  ड्राईफ्रूट्स और मिनरल वाटर की भी व्यवस्था थी

कवि सम्मेलनों के नाम पर  कुछ ख़ास कवियों की मार्केटिंग करने वाले तत्वों को इस कार्यक्रम से दूर ही रखा गया था ताकि  सूरत के कवि सम्मेलनों की दिशा और दशा बदले तथा  भविष्य में उन्हीं कवि / कवयित्रियों को बुलाया जाये जो खुद लिखते हैं और खुद सुनाते हैं, चोरी का माल बेचने वाले नकली परफॉर्मरों पर अंकुश लगाने में यह कार्यक्रम कितना सफल होता है यह तो समय बतायेगा लेकिन  मंच के हित में अलबेला खत्री के इस प्रयास को  जिस प्रकार दर्शकों ने सराहा है, वह  उजाले की उम्मीद ज़रूर जगाता है

जय हिन्द !
अलबेला खत्री





aajtak walo ! tumhare ghar me maa - bahan nahin hai kya ?


महिलाओं के सम्मान और गौरव की लड़ाई लड़ने का दम भरने वाला कोई महिला मण्डल आज तक की वेब साइट पर इस तरह के फोटो देख कर क्या सोचता है ?

क्या न्यूज़ चैनल वालों द्वारा ऐसे चित्र दिखा कर किसी महिला के शारीरिक ढाँचे का उपहास उड़ाना उचित है ?

कल आजतक ने पूनम पाण्डेय की नंगी पुंगी फ़ोटो लगा कर अपने पाठकों को उसका जन्मदिवस बताते हुए उसे बधाई देने को कहा था " क्यों भाई ये चैनल अब ऐसी लड़कियों की मार्केटिंग कर रहा है क्या ?

जय हिन्द !
अलबेला खत्री



आयोजनों को हथियाने के लिए कोई कवि इतना नीचे भी गिर सकता है, यह पहली बार मुझे पता चला


दिल्ली के उन सभी तथाकथित बड़े कवियों के प्रति आज मेरा मन न केवल वितृष्णा से भर गया है  बल्कि बेहद घृणा से भी भर गया है जिन्होंने आज तक मुझे अँधेरे में रखा और राजेश चेतन के लिए बेहूदा और अनर्गल बातें करके मुझे उनसे दूर रखा

कल जब वड़ोदरा में मुलाकात हुई और उनका मंचीय कार्य कौशल देखा तो सारा झूठ काफूर होगया  और कविवर राजेश चेतन को मैंने न केवल एक मेधावी रचनाकार व  ज़बरदस्त मंच संचालक के रूप में पाया बल्कि  उनके व्यक्तित्व में सौम्य कवित्व से लबालब एक श्रेष्ठ इन्सान भी सामने आया  - हद हो गयी यार !  चार पैसों और तीन आयोजनों को हथियाने के लिए कोई कवि इतना नीचे भी गिर सकता है, यह पहली बार मुझे पता चला

ईश्वर इन दुष्टों को भी सदबुद्धि प्रदान करे

जय हिन्द !
अलबेला खत्री 



आपको सूरत नहीं बदलनी है आपको तो हंगामा खड़ा करना है


आदरणीय  झाड़ूवाल साहेब !
सादर निन्दा प्रस्ताव
अगर आप ये समझते हैं कि अराजकता  मचा कर अपनी महत्वाकांक्षा का  राजनैतिक उल्लू सीधा कर लेंगे तो मेरी समझ में ये आपकी  भूल है क्योंकि हिन्दुस्तान की सारी जनता इतनी वो  नहीं, जितनी आपने  समझ रखा है, या यों समझिये कि पूरा देश दिल्ली नहीं है, जो आपकी  बातों में आ जायेगा   और अपना वोट अराजक तत्वों को दे कर अपने ही हाथों अपने करम फोड़ लेगा  

चन्द सरफ़िरे और टपोरी लोगों के उत्पात मचा देने से अगर सत्ता मिल जाती तो आप से पहले ही कई लोग सत्ता सुंदरी के साथ सुहागरात मना चुके होते, आपश्री का  तो नंबर ही नहीं आता @३$उ*&!06 

श्रीमान घोंचू प्रसाद !  नौकरी मिली तो आप  नौकरी नहीं कर पाये, सत्ता मिली तो उसे सम्हाल नहीं पाये, भगवान् जाने आपकी  गृहस्थी कैसे चल रही है,,,,,किसकी किरपा से चल रही है

जितना ध्यान टीवी पर आने और लोगों का ध्यान खींचने पर लगा रहे हो उतना अगर ईमानदारी से अपने काम पर लगाते और लोगों से किये हुए वायदे पूरे  करते तो आपकी लाज आम चुनाव में भी बच जाती, परन्तु आप तो ठहरे अतिउत्साहीलाल ! आपको सूरत नहीं बदलनी है आपको तो हंगामा खड़ा करना है

राम ही राखे !
जय हिन्द !
अलबेला खत्री







ये चित्र मेरी जन्मभूमि श्रीगंगानगर का है, इसमें सभी पार्टियों के वरिष्ठ नेता शामिल हैं


सच ही कहते हैं  लोग,  राजनीति तोड़ती है और साहित्य जोड़ता है.  इसका एक उदाहरण तो इसी चित्र में देख लीजिये ,,,, ये चित्र मेरी जन्मभूमि श्रीगंगानगर का है  जहाँ  गत दिनों शहर की साहित्यिक संस्था  व नगर परिषद् के साझा तत्वाधान में मेरा नागरिक अभिनन्दन किया गया था - इस समारोह की विशेषता यह थी कि क्षेत्र के तमाम वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार, व्यापारी, उद्योगपति व समाजसेवी बन्धु तो मुझे आशीर्वाद देने के लिए उपस्थित रहे ही, सैद्धांतिक  धरातल पर इक दूजे का सदैव विरोध करने वाली  विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के धुर विरोधी लोग भी एक मंच पर बैठे थे और एक स्वर में मुझे प्यार दे रहे थे

इस चित्र में लगभग सभी पार्टियों के सक्रिय व वरिष्ठ नेता शामिल हैं

जय हिन्द !
अलबेला खत्री


मुझे रजत जयंती महोत्सव मनाने का अवसर मिल गया


लो जी, जो मधुर अवसर अनेक वर्षों से लटका हुआ था आख़िर आज आ ही गया अब आप चाहें तो मुझे और मेरे साथ साथ मोबाइल फोन बेचने वालों को बधाई दे सकते हैं

आज मैं अपने घर में मोबाइल फ़ोन चोरी चले जाने का रजत जयन्ती महोत्सव मना रहा हूँ . 1994 में पहला मोबाइल फ़ोन नोकिया 5110 मैंने ख़रीदा था जो कि मुम्बई में चोरी गया था . कालान्तर में नाम बदलते गए , मॉडल बदलते गए, चोरी स्थल बदलते गए परन्तु न मैंने खरीदना बंद किया, न ही चोरों ने चोरी करना ,,,,,,,,,,19 वर्षों में 24 फोन जा चुके थे, 25 वां बहुत दिन से नहीं जा रहा था क्योंकि मैंने महंगा फोन रखना छोड़ कर काम चलाऊ हैंडसेट से ही काम चला रहा था

मगर हाय रे ,,,,,,,,,,मनोज हिन्दुस्तानी और मुकेश से मेरा ये सुख देखा नहीं गया और उनहोंने ताने मार मार कर मुझे प्रेरित कर ही दिया कि मैं भी ऍण्ड्रॉइड फोन ले लूं ,,,परिणाम यह हुआ कि चार दिन पहले ख़रीदा हुआ नया फोन दो दिन पहले राजस्थान के फालना स्टेशन पर चोरी चला गया और मुझे रजत जयंती महोत्सव मनाने का अवसर मिल गया हा हा हा हा हा

जय हिन्द !
अलबेला खत्री

तीन पत्ती का नशा और जादू लोगों के सर पर चढ़ कर बोलने लगा है


देश के तमाम लोगों को नाकारा करने और आम जनता का ध्यान रोज़मर्रा की समस्याओं के अलावा बड़े बड़े सरकारी घोटालों से हटाने के लिए एक सोची समझी साज़िश के तहत फ़ेसबुक जैसी  लोकप्रिय सोशल साइट पर TEEN PATTI  का अवतरण कराया गया है

तीन पत्ती का नशा और जादू लोगों के सर पर चढ़ कर इतनी ज़ोर से बोलने लगा है कि कुछ ही दिनों मोबाइल फ़ोन बनाने वाली कम्पनियों ने लाखों की संख्या में Android हैण्ड सैट  बेच डाले, लाखों की संख्या में इन्टरनेट कनेक्शन एवं 3G कनेक्शन बिक गए  और facebook  की उपयोगिता व हिट भी करोड़ों गुना बढ़ गयी ,,,,,कुल मिला कर  इन सबको लाभ हुआ ,,लेकिन जनता को क्या मिला बाबाजी का ठुल्लु ?

व्यापारी अपना कामकाज छोड़ कर तीनपत्ती खेल रहे हैं
बच्चे अपनी पढाई छोड़ कर तीन पत्ती  खेल रहे हैं
मुझ जैसे क़लमकार कविताई छोड़ कर तीनपत्ती में लगे हुए हैं

नई उम्र के किशोर - किशोरियां पहले चलती बाइक पर मोबाइल से बात करते थे या कान में स्पीकर घुसेड़ कर गाने सुनते थे तो दुर्घटनाएं होती थीं  अब तो हद्द हो गयी  लड़के लड़कियां आजकल दुपहिया वाहनों पर चलते हुए सड़कों पर  तीनपत्ती खेल रहे हैं जिससे दुर्घटनाओं की आशंकाएं बढ़ गयी हैं

बस बस बस ,,,,,,,,,,,पूरे देश को इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए  और सरकार को तुरन्त संज्ञान लेते हुए इसे बंद कराने का काम करना चाहिए

जय हिन्द !
अलबेला खत्री




mathura wali priytama ke liye


premdivas par aaj
mathura wali priytama ke liye mera prem smaran.........



नि:सन्देह नरेन्द्र मोदी सब से श्रेष्ठ है, सर्वश्रेष्ठ है


कुछ लोग मुझ पर आरोप लगाते हैं और लगा भी सकते हैं कि मैं आजकल कविताकार्य से अधिक राजनैतिक जुमले सोचता,लिखता और प्रकाशित करता हूँ परन्तु मुझे इसकी फ़िक्र नहीं है क्योंकि मैं समझता हूँ  ये समय चुप रहने का नहीं ,,,,,,,, व्यावसायिक नुक्सान हो तो हो,  कुछ लोग नरेन्द्र मोदी का पिट्ठू कहे तो भी चलेगा, परन्तु  मुझे जो जैसा दिख रहा है उसे अभिव्यक्त अवश्य करूँगा

सत्ता के  इस खेल के सभी खिलाड़ी अपने ही हैं,  कोई बाहरी तत्त्व  नहीं है, यहाँ किसी एक को  ज़हरीला बता कर दूसरे को अमृतधारा नहीं कहा जा सकता क्योंकि  सभी पंछी इक डाल के होने के कारण हम सभी कहीं  न कहीं एक ही जगह खड़े हुए दिखाई देते हैं  - ये माना कि  अगर अनेक लोग भ्रष्ट हैं तो नरेन्द्र मोदी भी कोई धर्मराज युधिष्टर नहीं हैं,  परन्तु  हमारी मज़बूरी ये है कि हमें अपना नेता चुनना इन्हीं में से कोई है ----लिहाज़ा  अन्धों में से काणा चुनना है,  कालों में से सांवला चुनना है और  भ्रष्टों में से कम भ्रष्ट चुनना है

ऐसा व्यक्ति चुनना है देश के सिंहासन पर बिठाने के लिए जो उपलब्ध सभी में से श्रेष्ठ हो ___और नि:सन्देह नरेन्द्र मोदी सब से श्रेष्ठ है, सर्वश्रेष्ठ है

जय हिन्द !
अलबेला खत्री 





अपना नाम 'अलबेला खत्री' से बदल कर 'अल्पसंख्यक' रख लूं ?


सोच रहा हूँ
अपना नाम 'अलबेला खत्री' से बदल कर 'अल्पसंख्यक' रख लूं

हो सकता है किरपा यहीं अटकी पड़ी हो ,,,,

जय हिन्द !
अलबेला खत्री



पहली पहली बार का मज़ा,,,,,,,,,,



कवियों को पहली पहली बार किसी जगह कवि-सम्मेलन करने का जो आनन्द  आता है वह अनूठा होता है, अविस्मरणीय होता है और आत्मतुष्टिदायक भी होता है . यह मेरा सौभाग्य व माँ शारदा की अनुकम्पा ही है कि ऐसा आनन्द लूटने का अवसर मुझे अनेक बार मिला है, बार-बार मिला है .  देश - विदेश में ऐसे कई संयोग बने जहाँ आयोजन करने वालों को यह भी पता नहीं था कि कवि सम्मेलन होता क्या है ? क्या कोई ड्रामा, नौटंकी, तमाशा या आर्केस्ट्रा जैसा होता है या शास्त्रीय संगीत जैसा ,,,,,,,,,,किष्किन्धा के गंगावती, कोलार गोल्ड फ़ील्ड, केरला के रमाडा, आंध्र के चिवपल्ली, कोंकण के एलोन इत्यादि जगहों पर तो आयोजकों ने विकल्प के तौर पर कवि गण के साथ साथ वहाँ के मिमिक्री या लोकल गायकों को भी बुला रखा था ताकि कवि सम्मेलन यदि न जमे तो दर्शकों को अन्य कलाओं से खुश किया जा सके - परन्तु  कमाल है कि सभी जगह शानदार आयोजन हुए और तीन  घंटों की जगह पांच पांच घंटे तक चले

खैर, ये सब तो अहिन्दी भाषी क्षेत्र थे, मज़ा तो ये है कि हिन्दी भाषी हरियाणा में दिल्ली के समीपवर्ती  सांपला में भी पहली पहली बार योगेन्द्र मौदगिल के संयोजन में हमने ही कवि सम्मेलन किया था जो आज हर साल होता है

इसी शृंखला में ताज़ा नाम जुड़ा है गुजरात में वलसाड के पास पारडी का ,,,,,,,गणतन्त्र दिवस की पूर्व संध्या पर 25 जनवरी की शाम वहाँ नगर पालिका द्वारा पहली पहली बार एक भव्य हिन्दी हास्य कवि सम्मेलन हुआ जिसमें दर्शकों से खचाखच भरा पण्डाल देर रात तक ठहाकों से गूंजता रहा और नरेंद्र बंजारा के मंच संचालन में सुदीप भोला, गोविन्द राठी, अलबेला खत्री व डॉ कार्तिक भद्रा की कविताओं ने महफ़िल लूट ली

मुख्या मेहमान धारासभ्य कनु भाई एम देसाई सिर्फ़ 10 मिनट के लिए आये थे, परन्तु ऐसे बैठे कि चार घंटे तक हिले भी नहीं, इसी प्रकार पालिका प्रमुख शरद एम देसाई  तथा उप प्रमुख अनीता के पटेल समेत सभी माननीय पार्षद और अधिकारी भी  आखिर तक जमे रहे - कविगण का भव्य सत्कार भी किया गया और उनकी कला को वाहवाही भी खूब मिली --और क्या चाहिए ?

जय हिन्द !
अलबेला खत्री
hindi hasya kavi sammelan in pardi gujarat

hindi hasyakavi sammelan in ahmedabad

 

अपनेराम ने भी एक राजनैतिक पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली


लो जी,  "जब प्यार किया तो डरना क्या" वाले इस्टाइल में आज अपनेराम  ने भी एक राजनैतिक पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली, भावी प्रधानमन्त्री के लिए सहयोग राशि भर दी, पार्टी फण्ड के लिए डोनेशन भी दे दिया और विभिन्न मदों में 1675 रूपया भी भर दिया

अब ये नहीं बताऊंगा कि किस पार्टी की सदस्यता के लिए ऑनलाइन फ़ॉर्म और पैसा भरा है -बताने की ज़रूरत भी क्या है, आपको सब मालूम ही है … हा हा

जय हिन्द !
अलबेला खत्री


इससे पहले कि हर आदमी अपने हाथ में जूता ले ले, तुम लाईन पर आ जाओ

aam aadmi nahin hoon main

मैं आज अपना सीना ठोक के कहता हूं कि मैं भारत गणतंत्र का नागरिक हूं। नागरिक इसलिए हूं क्योंकि नगर में रहता हूं और सीना इसलिए ठोक रहा हूं क्यूंकि एक तो इससे वक्ता की बात में वजन आ जाता है, दूसरे सीना भी अपना है और ठोकने वाले भी अपन ही हैं इसलिए किसी दूसरे की आचार संहिता भंग होने का डर नहीं है। हालांकि मैं सीने के बजाय पीठ भी ठोक सकता हूं, लेकिन ठोकूंगा नहीं, क्यूंकि एक तो वहां तक मेरा हाथ ठीक से नहीं पहुंचता, दूसरे ज्यादा ठुकाई होने से पीठ में दर्द हो सकता है और तीसरे मैं एक कलाकार हूं यार, कोई झाड़ूवाल टाइप नेता थोड़े न हूं जो अपने ही हाथों अपनी पीठ ठोकता रहूं।

सरकारी और गैर सरकारी सूत्र मुझे आम आदमी कह कर चिढ़ाते हैं जबकि मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मैं कोई आम-वाम नहीं हूं। आम क्या, आलू बुखारा भी नहीं हूं, हां चाहो तो आलू समझ सकते हो क्योंकि एक तो मैं जमीन से जुड़ा हुआ हूं। दूसरे मेरी खाल इतनी पतली है कि कोई भी उधेड़ सकता है, तीसरे गरीब से गरीब और अमीर से अमीर, सभी मुझे एन्जॉय कर सकते हैं और चौथे हर मौसम में, हर हाल में सेवा के लिए मैं उपलब्ध रहता हूं। न मुझे गर्मी मार सकती है न सर्दी, लेकिन मुझे आलू नहीं, आम कहा जाता है और इसलिए आम कहा जाता है ताकि मेरे रक्त को रस की तरह पिया जा सके। हालांकि ये रक्त पिपासु भी कोई बाहर वाले नहीं हैं, अपने ही हैं, बाहर वाले तो जितना पी सकते थे, पीकर पतली गली से निकल लिए, अब अपने वाले बचाखुचा सुड़कने में लगे हैं। मजे की बात ये है कि बाहर वाले तो कुछ छोड़ भी गए, अपने वाले पठ्ठे तो एक-एक बून्द निचोड़ लेने की जुगत में है।

कल रात एक भूतपूर्व सांसद से मुलाकात हो गई। हालांकि वे भूतपूर्व होना नहीं चाहते थे लेकिन होना पड़ा क्योंकि भूतकाल में उन्होंने एक अभूतपूर्व काम कर किया था। (लोगों से रुपया लेकर संसद में सवाल पूछने का) जिसके चलते वे एक स्टिंग आप्रेशन की चपेट में आ गए और भूत हो गए। मैंने पूछा, 'भूतनाथजी, ये नेता लोग जनता को आम जनता क्यों कहते हैं? वो बोले, वैसे तो बहुत से कारण हैं लेकिन मोटा-मोटी यूं समझो कि आम जो है, वो फलों का राजा है और हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता ही असली राजा होती है, शासक तो बेचारा सेवक होता है। दूसरा कारण ये है कि आम का सीजन, आम चुनाव की तरह कुछ ही दिन चलता है, बाकी समय तो बेचारा लापता ही रहता है, लेकिन तीसरा और सबसे खास कारण ये है कि आम स्वादिष्ट बहुत होता है। इसे खाने में मजा बहुत आता है, चाहे किसी प्रान्त का हो, किसी जात का हो, किसी रंग का हो अथवा किसी भी साइज का हो।

आम के आम और गुठलियों के दाम तो आपने सुना ही होगा, जनता को आम कहने का एक कारण ये भी है कि इसे खाने में कोई खतरा नहीं क्यूंकि न तो इनमें कीड़े पड़ते है, न इसकी गुठली में कांटे होते हैं और न ही इनसे अजीर्ण होता है, अरे भाई आम तो ऐसी चीज है कि लंगड़ा हो, तो भी चलता है। मैंने कहा, नेताजी आप एक बात तो बताना भूल ही गए कि आम हर उम्र में उपयोगी होता है।

कच्चा हो तो अचार डालने के काम आता है, पका हुआ रसीला हो तो काट-काट के खाया जा सकता है और बूढ़ा, कमजोर व पिलपिला हो तो चूसने के काम आता है लेकिन सावधान विश्वासघाती नेताजी..अब आदमी को आम आम उसका रक्त पीना छोड़ दो, क्योंकि वो अब तुम्हारी कुटिलता को समझ गया है। जिस दिन नरेन्द्र मोदी जैसा कोई दबंग बन्दा राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए दिल्ली में आ जाएगा उस दिन आप जैसे स्वार्थी, मक्कार और दुष्ट नेताओं का राजनीतिक कार्यक्रम, किरिया क्रम में बदल जाएगा। इसलिए सुधर जाओ, अब भी मौका है।

उसने मुझे खा जाने वाली नजरों से घूरा। मैंने कहा, घूरते क्या हो? समय बदल चुका है। जिस जनता को तुम पांव की जूती समझते थे वो अब जूते चलाना सीख गई है। इससे पहले कि हर आदमी अपने हाथ में जूता ले ले, तुम लाईन पर आ जाओ वरना ऐसी ऑफ लाइन पर डाल दिए जाओगे जहां से आगे कोई रास्ता नहीं होगा आपके पास। विश्र्वास नहीं होता तो जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार को ही देख लो जो अब घर बैठ गए हैं। नेताजी मेरी बातों से उखड़ गए और चलते बने। मैं भी अपने काम में व्यस्त हो गया, लेकिन मेरे मन में एक विजेता जैसी सन्तुष्टि है। मैंने सिद्ध कर दिया कि मैं कोई आम नहीं हूं।

जय हिन्द !
अलबेला खत्री

hasya kavi sammelan ahmedabad with albela khatri

hasya kavi sammelan ahmedabad with albela khatri

शहीद हेमराज की पत्नी को पाकिस्तानियों के 26 शीश भेंट करते हुए भारतीय सैनिकों की झाँकी


काश !
गणतन्त्र दिवस समारोह में आज इन झाँकियों का प्रदर्शन भी होता :

# अमर शहीद हेमराज की पत्नी को पाकिस्तानियों के 26 शीश भेंट करते हुए भारतीय सैनिकों की झाँकी

# 26 -01 -2001 के प्रलयंकारी भूकम्प से लहूलुहान हो चुके गुजरात को अपने पुरुषार्थ से उन्नति के अभिनव शिखर तक पहुंचाते हुए नरेन्द्र मोदी के अथक परिश्रम की झाँकी

# 2 G, DLF, CWG, कोयला इत्यादि के महाघोटालों से भारत की जनता को लूटते हुए कांग्रेसियों के काले चेहरों की झाँकी

# दिल्ली में रातदिन हो रहे सामूहिक बलात्कारों और हत्याकाण्डों की झाँकी

# मुजफ्फरनगर के दंगों पर बेशर्मी का नंगा नाच करती यूपी सरकार द्वारा आयोजित सैफई के रासरंगों की झाँकी

____आपका क्या ख्याल है ?

अलबेला खत्री



mulayamsingh ko netaji kahna NETAJI SUBHASHCHANDRA BOSE KA APMAAN HAI


प्यारे मित्रो !
नरेन्द्र मोदीजी का मैं बहुत आदर व सम्मान करता हूँ परन्तु  गोरखपुर की रैली में उन्होंने मुलायमसिंह के लिए  जो सम्बोधन काम में लिया  उससे मुझे बहुत दुःख भी हुआ है.  मुझे कतई उम्मीद नहीं थी कि मोदीजी अपने भाषण में मुलायमसिंह को "नेताजी" कह कर ललकारेंगे ..........  मोदीजी के समर्थकों को मेरा कथन भला लगे या बुरा, परन्तु  मैं मुलायमसिंह को "नेताजी" नहीं कह सकता

"नेताजी" सिर्फ़ एक  हुए हैं अब तक,  इसलिए "नेताजी"  शब्द सुनकर एक ही छवि हमारे सामने उपस्थित होती है और वो छवि है "नेताजी" सुभाषचन्द्र बोस की

"नेताजी" के पाँव की जूती के नीचे लगी धूल में चिपके हुए गन्दे कीटाणु भी मुलायमसिंह जैसे आजकल के नेताओं से कहीं अधिक पवित्र और कहीं अधिक गौरवपूर्ण है - हो सके तो मोदीजी इस भूल को स्वीकार करें और भविष्य में कभी किसी भी नेता को पुकारते हुए "नेताजी" न कहें
जय हिन्द !
अलबेला खत्री


मेनका गांधी ने नरेन्द्र मोदी को शेर और राहुल गांधी को चिड़िया बताया है, ये बहुत गलत बात है


मेनका गांधी ने आज नरेन्द्र मोदी को शेर और राहुल गांधी को चिड़िया बताया है.  ये बहुत गलत बात है.  मुझे उनके इस बयान पर कड़ी आपत्ति है और मैं इस पर अपना क्रोधपूर्ण विरोध दर्ज़ करता हूँ  क्योंकि  चिड़िया तो मासूम होती है और दया की पात्र होती है जबकि कांग्रेस तो घाघ है, मक्कार है और चालाक है .  किसी कांग्रेसी को चिड़िया कहना चिड़िया पर अत्याचार करना है  ये बात मेनका गांधी को नहीं भूलना चाहिए

मेरी आँखों से देखा जाये तो मोदी अगर शेर है तो राहुल लोमड़  है,  मोदी हाथी है तो राहुल लक्कड़बग्घा है,  मोदी गरुड़  है तो राहुल सपोला है और मोदी अगर कप्तान  है तो राहुल चपरासी ………हा हा हा

जय हिन्द !
अलबेला खत्री 




मैंने वज्रपुरुष नरेन्द्र मोदी को देखा है और जल्दी ही प्रधानमन्त्री बनते हुए भी देखूंगा


मुझे अफ़सोस है कि मैंने लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को साक्षात् नहीं देखा, लेकिव मुझे आनन्द है कि मैंने वज्रपुरुष नरेन्द्र मोदी को देखा है और जल्दी ही प्रधानमन्त्री बनते हुए भी देखूंगा

जय हिन्द !
अलबेला खत्री

hasyakavi albela khatri support narendra modi

जो आदमी अपनी मातृभूमि का मज़ाक उड़ा सकता है, वो किसी केजरीवाल का या अमेठी का हो हितैषी हो जाएगा, ऐसा सोचना ही मूर्खता है



वाह रे विष वास !
मेरे मुक्तक को अपने बाप का माल समझ कर बेच रहा है


आज ज़ी न्यूज़ पर DNA कार्यक्रम में कुमार विषवास को नरेन्द्र मोदी की तारीफ़ में बालकवि बैरागी की एक कविता पढ़ते हुए सबने  देखा, साथ ही और भी बहुत कुछ बोलते दिखाया गया - मुझे ये कहना है कि उस बहुत में 'बहुत' तो उसी का था  लेकिन 'कुछ' जो था वो अलबेला खत्री था --- उसने मेरा मुक्तक बिना मेरा नाम लिए, यों अधिकारपूर्वक सुना दिया जैसे वो मेरा गोद लिया हुआ बेटा हो और मैं उसका माना हुआ बाप हूँ

नरेन्द्र मोदी के गुजरात की तारीफ़ करते हुए उसने  खुद की मातृभूमि उत्तर प्रदेश का कितना मज़ाक और  मखौल उड़ाया है, उसका वीडिओ भी मैं आपको दिखाऊंगा लेकिन इस अवसरवादी और कविताचोर को आगे बढ़ाने में नरेन्द्र मोदी का बहुत बड़ा योगदान है, ये बात मुझे तो याद है, भक्कड़जी को भी याद है  और गुजरात हिन्दी समाज वालों को भी याद है, लेकिन वो ऐहसानफ़रामोश भूल गया है ---- वो भूल गया है कि कितने प्रोग्राम, कितनी पब्लिसिटी और कितना धन उसे  गुजरात से सिर्फ़ इस बिना पर मिला कि उस पर मोदीजी की कृपादृष्टि थी

उसके कई सक्रिय चेले चपाटे जो अक्सर फ़ेसबुक पर मुझे मेरी औक़ात याद दिलाते रहते हैं,  मेरा उनसे खुला मशविरा है कि अगर उन्होंने उसके नाम का गंडा न बाँध रखा हो अथवा उससे कोई अनैतिक सम्बन्ध नहीं हों, तो पूछें उससे कि ये मुक्तक किसका है :

निग़ाह उट्ठे तो सुबह हो, झुके तो शाम हो जाए
अगर तू मुस्कुरा भर दे तो क़त्लेआम हो जाए
ज़रूरत ही नहीं तुमको मेरी बाँहों में आने की
जो ख्वाबों में ही आ जाओ तो अपना काम हो जाए


(1998 में प्रकाशित  'सागर में भी सूखा है मन' में शामिल अलबेला खत्री की यह और ऐसी अनेक रचनायें ( जो वह पढता है ) 1993 में फ़िल्म राइटर्स एसोसिएशन में पंजीकृत भी है, कॉपीराइट के बल पर मैंने आज तक कानूनी कार्रवाही केवल इसलिए नहीं की क्योंकि उसके कई चहेते कवि ( जिन्हें वह अपना चिंटू कहता है) मुझ पर आरोप लगाते कि मैं  उसकी सफलता और लोकप्रियता से जलता हूँ

__हालांकि इस मुक्तक को एक और कवि बलवंत बल्लू भी सुनाता है परन्तु वो बेचारा विकलांग है, इसलिए मुझे उसके काम आने में कोई आपत्ति नहीं है परन्तु विषवास तो विकलांग नहीं है फिर क्यों औरों के मसाले बेच कर अपना घर भर रहा है ?

नज़ीर अकबराबादी और इकबाल जैसे पुराने शायरों से ले कर  कुंवर बेचैन, हस्तीमल हस्ती होते हुए अलबेला खत्री तक सबकी कवितायें धड़ल्ले से सुनाता है  कोई उस पर संज्ञान भी नहीं लेता, क्या यह इस बात का द्योतक नहीं है  कि मंच पर बैठे बाकी सभी कवि केवल  इसलिए खामोश रहते हैं कि सबकी अपनी अपनी व्यावसायिक सैटिंग है

जो आदमी अपनी मातृभूमि का मज़ाक उड़ा सकता है, अपनी  बदतमीज़ियों से काव्य मंच को दूषित कर सकता है और जो इतना कुछ हासिल करके भी मोदी का कृतज्ञ न हो पाया, वो किसी  केजरीवाल का या अमेठी का हो हितैषी हो जाएगा, ऐसा सोचना ही मूर्खता है

जय हिन्द !
अलबेला खत्री 




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